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________________ [ ११५ (i) दविद्याधरितो शाखातो दतिलाचार्य प्रणापतिये समाढाये भट्टिभावस्य धितु ग्रहमित्र पालित प्रतिरिक स्य [कुटुम्बिनी ये प्रतिमा प्रतिस्थापित । शुभपरम भट्टारक महाराजाधिराज कुमारगुप्त के विजयराज्य ११३ में भक्तिभाव से श्यामाढ़या के परिवार वालों ने प्रतिमा स्थापित कराई, विधाधरिशाखा के दतिलाचार्य की आज्ञा से । इस स्वर्णयुगीन प्रतिमा लेख के बाद हमें मध्य एवं आधुनिक युग के मूर्ति लेख मिलते हैं जिनमें महोबा से प्राप्त संवत १२११ का जे-८२९-गोलापुर्वान्वये साधुसाढेतपुर लाखूतस्य पुत्र वागल्ह देव कतले (?) जाल्ह श्री जील्हणपते नित्य प्रणमति । (ii) श्री मन्मदनवम्मदेवर्व है सं० १२११ आषाढ़ सुदि ३ (iii) सनो ११ देव श्री॥)( ॥ देव श्री नेमिनाथ ॥ रूपकार लाषण ॥ अर्थात चंदेल शासक मदनवर्मदेव के समय नेमिनाथ की प्रतिमा बनी है । चौकी मात्र काले पत्थर की है गोलापूर्वान्वये का उल्लेख आहार की कुन्युनाथ एवं अरनाथ की प्रतिमाओं पर जो संवत १२०३ व १२०९ की हैं, पाते हैं। ८ (जे० ८२९) में रूपकार लाषण-लषन था जिसका उसने उल्लेख स्वयं किया है। इसके बाद आती है गाहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र कालीन प्रतिमा जे-८८४, जो उन्नाव से प्राप्त जे-८८४ (i) संवत १२१० ज्येष्ठ सुदि ३ श्रीमगोविन्द चन्द देवस्यराज्ये (i) वामवास्तव्य-अवये ? अनेक मुलग (गु) नालंकृत विग्रह चतुनैव [?] निरत.""कुमोहि-कुंभोत्पामक कमथर । (iii) श्री साधु सोजन सुधरम नैक [?] इलाचन्द्र नैकपवोव [?] साधु जाल्हण तनक [?] जिननाय (व)[व] प्रतिस्थापिनि । अर्थात साधु जाल्हण ने संवत १२१० में मुनिसुव्रत की प्रतिमा स्थापित कराई। यद्यपि लेख में उनका नाम नहीं है किन्तु कच्छप मूर्तिपीठिका पर अंकित है । भगवान नेमिनाथ मन्दिर चौक लखनऊ से प्राप्त पद्मासनस्थ दिगम्बर जिनप्रतिमा [७२-५] जो अखंण्डित, मनोज्ञ एवं तीन तरफ से लेखांकित है। [७२-५] (i) संवत १६८८ वर्षेफाल्गुण सुदि ८ श्री मूल सं......... (ii).. भट्टरक श्री णानभूषण देवा तिभट्टारक श्रीवन्दापा। (ii) . 'तुवा जातियोपमाने भार्या थाणागयोपु [२] (iv)..'पासुभा मथुरा [रा] प पष्ठे पुन ४ उये चितामनि पीछे हावचन्द से निमाहिनातात पजामावा व पवनापुत्र भयापरिमगज सुतयो पुनवा लेववङ्ग पहीरामपूतप्र प्रेमवाराम नित्य प्रमति । ___अर्थात संवत १६८८ फाल्गुण सुदि ८, मूलसंघ, भट्टारक, श्रीज्ञानभूषण, पहीराम एवं चिन्तामनि (ये शब्द विचार करने योग्य हैं), यद्यपि लाञ्छन का स्थान क्षतिग्रस्त है किन्तु लेख में "चिंतामनि" से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह पार्श्वनाथ प्रतिमा होगी, यद्यपि यह ध्यान देने योग्य है कि सर्पफण का नितान्ताभाव है। ९-जैन, हीरालाल, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० ३५ १०-जैन, कस्तुरचन्द, तीथंकरों की प्राचीनता, अनेका०६९, पृ०९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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