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________________ ११४ ] "नमो अरहतो वर्धमानस्य गोतिपुत्रस्य .........'' इसमें भी वर्द्धमान का नमन है। इन अपूर्ण लेखों के बाद आता है जे-१ (i) नमो अरहतो वधमानस । (ii) स्वमिस महाक्षत्रपससोडासस संवत्सरे ७२ हेमन्तमासे २ दिवसे ९ हारीति पुनस पलस भायाये समसिविना। (ii) काछीये अमोहिनी सहापुत्रहिपालघोष पोथघोषेन धनघोषेन, आयावती प्रतिथापिता । (iv) आयवत अरहतोपूजाये । अर्थात वर्धमान को नमस्कार है। महाक्षत्रपशोडास के संवत्सर ७२ के हेमन्त मास में अमोहिनी ने आर्यावती अरहतो की पूजा हेतु स्थापित की। जे-२०-(i) सं ४०, व ४ दि २० एतस्य पूर्वायं कोट्टिये गणो वरराया शाखाया । (ii) को अय॑वृधहस अरहतो मुनिसुव्रतस्यप्रतिमा निवययति । (iii). "भयाये श्रविकाये दिनस दान प्रतिमा वोकै थूपे देवनिर्मितो पु..........।। अर्थात सं० ४९ में श्राविका दिन ने मुनिसुव्रत की प्रतिमा स्थापित की। 'वोद्वे' को बाद में 'देव' पढ़ा गया। प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित देव निर्मित स्तूप की पुष्टि में यह अकाट्य प्रमाण है। जे-२४--(i) [सि] द्ध सवं ५०,४ हेमन्त मासे चतुरथ ४ दिवस १० अ (ii) स्य पूर्वया कोट्टिय तो गणतो स्थानियतो कुलतो। (iii) वैरतोशाखातो श्री गृहीतो संभोगतो वाचकस्या(iv) ...इसिस्यं श्रीष्य गणिस्य आर्यमस्तिस्य सधाचारी वाचकस्य [आ] (v) र्य देवस्य निर्वत्तनो गोवस्य सीह पुत्रस्य लोहिकाकारू कस्य दानं । (vi) [स] व सत्त्वान हित सुख एक सरस्वती प्रतिमा स्थापितो अवतले रंगनतनो । (vi) मे ।। अर्थात संवत ५४ में एक सरस्वती की प्रतिमा एक लोहिककारक के दान से स्थापित हई। यह विश्व की सर्वप्राचीन सरस्वती प्रतिमा है, पुस्तक अक्षमाला लिए है। वीणा हंस बाद के हैं । ऐसा इस प्रतिमा के देखने से स्पष्ट ज्ञात होता है। जे-३४--(i) नमो अर्हतो महावीरस्य सं० ९० (३)... " (ii ) शिष्य गणिस्य नन्दिये निवतन देवसस्य हैरण्यकस्यधित (iii) ... नि ..."वतो वद्धमान प्रतिमा (iv) प्रति...."पूजाये ॥ इसमें 'महावीर' संवत के साथ है तथा नीचे वर्धमान प्रतिमा स्पष्ट लिखा है। क्या यह नहीं हो सकता कि महावीरस्य संवत ९३ हो । यदि मान लें तो महावीर संवत का प्रयोग उस काल में प्रचलित था, इसका पता चलता है। तदुपरान्त गुप्त लिपिका मूत्ति लेख आता है जे-३६ (i) सिद्धम परम भट्टारक महाराजाधिराज श्री कुमारगुप्तस्य विजयराज्य स १००, १०, ३क ..."मस "दिवस २० अस्य पूवाय कोट्टियगण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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