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________________ T KUMAONENT V-NONAV तुमंसि नाम, सच्चेवं जं हंतव्वंति मनसि, तुमंसिनामसच्चेवं जं अज्जावेयव्वंति मनसि, तुमंसि नाम सच्चेवं जं परियावेयव्वंति मन्नसि, एवं जं परिधितव्वंति मनसि, जं उद्दवेयव्वंति मनसि, अंजू चेय पडिबुद्धजीवी तम्हा न हंता न विघायए, अणुंसवेयणमप्पाणणं णं हन्तव्वं नाभिपत्थए । जिसे तुम मारना चाहते हो, वह भी तुम्हारे जैसा सुख-दुःख का अनुभव करने वाला प्राणी है। जिस पर शासन करना चाहते हो, वह भी तुम्हारे जैसा प्राणी है। जिसे दुःख पहुँचाना चाहते हो, वह भी तुम्हारे जैसा प्राणी है। जिसे अपने वश में करने की इच्छा करते हो, वह भी तुम्हारे जैसा प्राणी है । जो सज्जन ऐसा जान कर विवेक पूर्वक जीवन बिताते हैं, वे न तो किसी का घात स्वयं करते हैं और न दूसरों से कराते हैं । जो हिसा करता है, उसका फल उसे भोगना पड़ता है । अतएव किसी भी प्राणी की हिंसा की कामना मत करो। सयं तिवायए पाण, अदुबडन्नहिं घायए। हणन्तं वाणुजाणाइ, वेरं वड्ढइ अप्पणो ॥ जो स्वयं प्राणिहिंसा करता है, दूसरों से कराता है, अथवा करने वालों की अनुमोदना करता है, वह संसार में अपने लिए वैर ही बढ़ाता है। से हु पन्नाणमंते बुद्ध आरंभोवरए जो हिंसक प्रवृत्ति से विरत रहता है वही ज्ञानी है, वही बुद्ध है। को धम्मो, जीवदया धर्म क्या है.? जीवों पर दया करना । सव्वेहि भूएहिं दयाणुकंपी सभी प्राणियों पर दया करनी चाहिये । दयासमो न य धम्मो, अन्नसमं नत्थि उत्तमंदाणं । सच्चसमा न य कित्ती, सीलसमो नत्थि सिंगारो॥ दया समान धर्म नहीं है, अन्नदान से उत्तम दान नहीं है, सत्य समान कीत्ति नहीं, और शील से अधिक श्रेष्ठ कोई श्रंगार नहीं है। जीववहो अप्पवहो, जीवदया होइ अप्पणोहुदया किसी भी प्राणी का घात करना स्वयं अपना ही घात करना है । दूसरों पर दया करना स्वयं अपने ऊपर दया करना है। __ असंगिहीय परिजणस्स संगिण्हणयाए अब्भुट्ट्यव्वंभवइ । अनाश्रित और असहाय व्यक्तियों को आश्रय एवं सहयोग-सहायता देने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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