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खंतीमदवअज्जवलाघव तवसंजमो अकिंचणदा ।
तह होइ बम्हचेरं सच्चं चागो य दस धम्मा ॥ क्षमा, माईव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य, ये दस धर्म हैं।
अहिंसाहिलक्खणो धम्मो, जीवाणं रक्खणो धम्मो धर्म का लक्षण अहिंसा है, जीवों की रक्षा करना धर्म है।
धम्मो दयाविसुद्धो धर्म दया से विशुद्ध होता है ।
विणओ धम्मस्स मूलं
धर्म का मूल विनय (मानरहित होना) है। जइ जर-मरण-करालियउ, तो जिय धम्म करेहि ।
धम्म रसायणु पियहि तुहुँ, जिमि अजरामर होहि ॥ हे जीव ! यदि तू जरा-मरण स भयभीत है तो धर्म कर, धर्म-रसायन का पान कर, जिससे तू अजर-अमर हो सके।
धम्मु ण पढियइँ होइ, धम्मु ण पोत्था-पिच्छियइं ।
धम्मु ण मढिय पएसि, धम्मु ण मत्था-लुचियइं ॥ बहुत पढ़लेने से ही धर्म नहीं होता, पोथियों और पिच्छिी से भी धर्म नहीं होता, मठ में रहने से भी धर्म नहीं होता, और शिर का केशलौंच करने से भी धर्म नहीं होता।
रायरोस वे परिहरिवि, जो अप्पाणि वसेइ । ___ सो धम्मु वि जिण-उत्तियउ, जो पंचम-गइ इ ॥ राग और द्वेष को छोड़ कर अपनी आत्मा में ही निवास करने को जिनदेव ने 'धर्म' कहा है, और यही धर्म निर्वाण प्राप्त कराता है।
धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई शुद्ध-पवित्र आत्मा में धर्म निवास करता है ।
विवेग्गे धम्म माहियं मनुष्य का धर्म उसका सद्असद् विवेक है। जरामरणवेगणं बुज्झमाणाण पाणिणं ।
धम्मो दीवो पइट्ठाय गई सरणमुत्तमं ॥ जरा और मृत्यु के वेगवान प्रवाह में बहते हुए जीवों को धर्म ही एक मात्र द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है।
TOTTON
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