SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० ] ख-५ जो बात पशु-पक्षियों के सम्बन्ध में ऊपर कही गई है, वही बात मनुष्यों के बारे में भी सत्य है। मांसाहारी व्यक्ति प्रायः तामसी वृत्ति के पाये जाते हैं। इस दृष्टि से भी मांसाहार त्याज्य ही समझना चाहिये। किसी भी दृष्टि से मांसाहार का पक्ष सबल नहीं ठहरता है, फिर भी अनेक देशों में मांसाहार प्रचलित है और कुछ देश तो सर्वथा आमिषभोजी ही हैं । जो देश पूर्णतः मांसाहार पर निर्भर हैं, उनकी भौगोलिक परिस्थितियों ने वहां के लोगों को मांसाहार करने पर विवश कर दिया है, फिर भी ऐसे देशों में ऐसे लोग पाये जाते हैं जो पूर्णरूप से शाकाहारी हैं और शाकाहार पर विश्वास रखते हैं। कहते हैं कि हिटलर पक्का शाकाहारी था । विदेशों में भी ऐसे व्यक्तियों की संख्या काफी है, जो शाकाहार के पक्षपाती हैं । खलील जिब्रान ने एक बार कहा था-हे ईश्वर, खरगोश को पेट में भेजने के पहले खुद मुझे ही शेर के पेट में भेज दे। भारत शस्य-श्यामलाभूमि है। विविध प्रकार के अन्नों की यहां कमी नहीं है। कन्द-मूल फल-फूल भी यहाँ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होते हैं । दूध-दही की भी कमी नहीं । इन सभी पदार्थों का उत्पादन यहां बढ़ाया भी जा सकता है। भारत की भौगोलिक परिस्थितियां भी मांसाहार करने के लिये विवश नहीं करती। तब कोई कारण नहीं कि हमारी प्रवृत्ति मांसाहार की हो । और अन्यत्र भी भौगोलिक बाधाएं शेष नहीं रहीं। यातायात विकास से अब किसी स्थान पर भी सभी चीज सुलभ की जा सकती हैं । भारतीय संस्कृति सात्विक संस्कार प्राप्त करने की ओर प्रेरित करती है। हमारा प्रयास दानव नहीं, देव बनने का होना चाहिये इसलिए तामसी भोजन मांस त्याज्य रहना ही चाहिये । है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy