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ख-४
तथा केवल मिट्टी की स्थिति मानने पर उत्पाद-व्यय के बिना स्थिति सम्भव नहीं है। इसी तरह सभी पदार्थों की स्थिति अकेली सम्भव नहीं है।
यहाँ यह शंका होती है कि एक ही वस्तु को एक ही समय में उत्पाद व्यय और स्थिति कैसे हो सकते हैं। इसके उत्तर में कहा है कि उत्पाद व्यय और ध्रौव्य पदार्थों में होते है। और पर्याय द्रव्य में होती है । अतः वे सब एक ही द्रव्य हैं, द्रव्यान्तर नहीं हैं, जैसे वृक्ष स्कन्ध मूल और शाखाओं का समुदाय रूप है उसी तरह द्रव्य पर्यायों का समुदायरूप है। और पर्याय उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप हैं क्योंकि उत्पाद व्यय ध्रौव्य अंशों के धर्म है अंशी के नहीं, जैसे अंशी वृक्ष के बीज अंकुर और वृक्षत्व रूप तीन अंश अपने धर्म विनाश उत्पाद और ध्रौव्य के साथ ही प्रतिभासित होते हैं उसी तरह अंशी द्रव्य के नष्ट होने वाला, उत्पन्न होने वाला, और स्थिति रहने वाला ये तीन अंश विनाश उत्पाद और ध्रौव्य के साथ ही प्रतिभासित होते हैं। यदि द्रव्य का ही विनाश, उत्पाद और ध्रौव्य माना जाये तो सब गड़बड़ हो जायेगा। इसलिये उत्पाद व्यय ध्रौव्य पर्यायों में होते हैं और पर्याय द्रव्य में होती है । अतः ये सब एक द्रव्य है।
आमतौर पर लोग ऐसा समझते हैं कि विश्व में जिस क्षण में वस्तु का जन्म होता है उस क्षण में केवल जन्म ही होता है, विनाश और स्थिति नहीं होते । जिस क्षण में वस्तु की स्थिति है उस क्षण में उत्पाद विनाश नहीं होते, और जिस क्षण में विनाश होता है उस क्षण में उत्पाद और स्थिति नहीं होते। इस तरह तीनों में कालभेद माना जाता है।
किन्तु यह तभी सम्भव है जब ऐसा माना जाये कि द्रव्य स्वयं ही उत्पन्न होता है, स्वयं ही ध्रौव्य रहता है और स्वयं ही नाश को प्राप्त होता है, किन्तु ऐसा नहीं माना जाता । उत्पाद आदि पर्यायों के ही होते हैं तब काल भेद क्यों ?
जैसे कुम्हार, दण्ड, चक्र, चीवर के द्वारा अरोपित संस्कार के होने पर जिस क्षण में घट की उत्पत्ति होती है उसी क्षण में मिट्टी की पिण्ड पर्याय का नाश है और उसी क्षण में मिट्टीपने की स्थिति है। इसी तरह अन्तरंग और बहिरंग कारण कलाप के द्वारा आरोपित संस्कार के होने पर जिस क्षण में उत्तरपर्याप का उत्पाद होता है उसी क्षण में पूर्वपर्याय का विनाश होता है और उसी क्षण में द्रव्यत्व की स्थिति भी है, जैसे घट, मिट्टी का पिण्ड और मिटटीपना प्रत्येक में होने वाले उत्पाद व्यय ध्रौव्य इन तीनों स्वभावों को स्पर्श करने वाली मिट्टी में समस्त रूप से एक समय में ही देखे जाते हैं। उसी प्रकार उत्तर पर्याय पूर्व पर्याय और द्रव्यत्व इनमें से प्रत्येक में होने वाले उत्पाद व्यय ध्रौव्य इन तीनों को स्पर्श करने वाले द्रव्य में समस्त रूप से एक समय में ही देखे जाते हैं, और जैसे घट, मिट्टी पिण्ड और मिट्टीपना में होने वाले उत्पद व्यय ध्रौव्य मिट्टीरूप ही हैं, अन्य वस्तु नहीं है। उसीप्रकार उत्तरपर्याय पूर्वपर्याय और द्रव्यत्व में होने वाले उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य द्रव्य ही हैं, अन्य पदार्थ नहीं है।
इस प्रकार द्रव्य की अन्य पर्याय उत्पन्न होती है, अन्य पर्याय नष्ट होती है, फिर भी द्रव्य न उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है। जैसे आम हरे से पीला होता है, तो वह पीत भाव से उत्पन्न होता है, हरितपने से नष्ट होता है और आमफल रूप से स्थिर रहता है, इसलिये आमफल एक वस्तु की पर्यायद्वारा उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप है। उसी प्रकार उत्तरपर्याय से उत्पन्न, पूर्वपर्याय में नष्ट और द्रव्यत्व से स्थिर होने से द्रव्य एक द्रव्यपर्याय द्वारा उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक है।
इस तरह जो उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक है वह सत् है और जो सत् है वह द्रव्य है । इस प्रकार द्रव्य स्वयं सत् है। द्रव्य को स्वयं सत् न मानने पर दो ही बाते हो सकती हैं-या तो वह असत् होगा या सत्ता से भिन्न
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