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________________ ज्ञातपुत्र की अज्ञात साधना सुकरात ने उत्तर दिया, "मेरे लिये शांति मेरा धर्म और दर्शन है। यह बाहर नहीं अपितु मेरे अन्दर है।" आचारांग सूत्र में कहा गया है, "सुत्ता अमुणी सया मुणिणो जागरंति" अर्थात अनि सोते और मुनि सदा जागते हैं। कबीरदास जी ने कहा है सुविधा सब संसार, खावे अरू सोवे। दुखिया दास कबीर, जागे अरू रोवं ॥ Jain Education International - श्री धनराज शामसुखा शास्त्रों के अवलोकन से उपधान-श्रुत ज्ञात होता है कि महावीर इसी स्थिति में सदा निमग्न रहा करते थे । उपधान में उनकी कठोर साधना का वर्णन है। लाढ़ देश में जब वे बच्चभूमि और सुम्मभूमि नामक स्थानों में विहार कर रहे थे तो उन्हें अनेक उपसर्ग सहन करने पड़े। वहाँ के निवासी उन्हें मारते और दांतों से काट लेते । आहार भी उन्हें रूखा सूखा ही मिलता । वहाँ कुत्ते उन्हें बहुत कष्ट देते। लोग डंडे, मुष्टि, भाले की नोक, मिट्टी के ठेले अथवा कंकड़ पत्थरों से मारते और बहुत शोर मचाते कितनी ही बार उनके शरीर का मांस नोच लेते और अनेक प्रकार से कष्ट देते वे उन पर धूल बरसाते ऊपर उछाल कर नीचे पटक देते। लेकिन शरीर 1 की ममता छोड़कर सहिष्णु महावीर अपने लक्ष्य के प्रति अचल रहते । ऐसी स्थिति योग निष्णात साधकों के जीवन में पायी जाती है। बहिर्मुख संसार के वातावरण से पूर्णतः असंपृक्त रहकर साधक अन्तर्मुख होकर आन्तरिक जगत में विचरण करता रहता है। भगवान महावीर दधीचि की भाँति उस कोटि में पहुंच चुके थे जहाँ शरीर का परित्याग करने की नौबत आए तो भी मुंह से उफ तक न निकले। महावीर विभिन्न आसनों ओर ध्यान की क्रियाओं की साधना करते थे, यह शास्त्रसम्मत तथ्य है। जैसा कि - "मनोनुशसानम्" की भूमिका में मुनि नयमल जी ने कहा है, "महावीर ने आसन को तप का एक प्रकार बताया है। उनकी भाषा में आसन का नाम कायक्लेश है। आसन के द्वारा शरीर को कुछ कष्ट होता है और उस कष्ट से मानसिक धयं और सहिष्णुता का विकास होता है ।" हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि स्थिर होने के लिये आसनों का अभ्यास करना चाहिए - "कुर्यात्तदासन स्वयं मारोग्यं चांगला स्त्रनम" यह स्थिरता ही ध्यान की जननी है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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