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महावीर की निष्पक्षता का
एक प्रसंग
परम्परोपपही जीवानाम
-श्री अगरचंद नाहटा, बीकानेर
भगवान महावीर भारत की ही नहीं, विश्व की एक महान विभूति थे। उनके जैसी कठोर और महान साधना करने वाला विश्व में और कोई दूसरा व्यक्ति इतिहास के पृष्ठों में खोजने पर भी नहीं मिलेगा। उनके साढ़े बारह वर्षों की साधना का सबसे प्राचीन विवरण जो आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुत-स्कन्ध के नवमें अध्ययन में पाया जाता है, उसको पढ़कर रोमांच हो जाता है, साधना की चरमोत्कर्षता स्पष्ट हो जाती है। ध्यान में उनकी
ता बड़ी अद्भुत थी। वे महान तपस्वी थे । जहाँ तक पूर्ण ज्ञान की सिद्धि प्राप्त नहीं की, वहाँ तक वे प्रायः मौन ही रहे, वीतरागता जब पूर्ण रूप से प्राप्त हो गयी तभी उन्होंने उपदेश देना प्रारम्भ किया था।
उनके प्रथम उपदेश में इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह गणधर प्रतिबद्ध हुये। साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका रूप चविध संघ की स्थापना हई। तीस वर्षों तक उन्होंने निरन्तर धर्मोपदेश देकर लाखों व्यक्तियों माग में अग्रसर किया। उनके प्रमुख श्रावकों में आनन्द गाथापति बहुत ही उल्लेखनीय है, जिसने उनसे बा रूप श्रावक धर्म स्वीकार करके और अन्त में ग्यारह-श्रावक प्रतिमाओं का वहन करके अवधि ज्ञान नामक एक विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि की । अन्त में उसने समाधि मरण के लिये संलेखना स्वीकार की। संयोगवश उसी समय वहाँ श्रमण भगवान महावीर भी पधारे, उनके दर्शन और उपदेशों से अनेक लोग प्रभावित हए ।
भगवान महावीर के प्रथम और प्रधान शिष्य गणधर गौतम भी अपने दो उपवासों के पारणा के लिये तीसरे पहर में गोचरी के लिये निकले और वाणिज्यग्राम में उच्च, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा ग्रहण की। उसके बाद जब वे कुल्लाक सन्निवेश के निकट पहंचे तब बहुत से लोगों को श्रमणोपासक आनन्द ने पोषधशाला में मरणान्तिक संलेखना की है, इस विषय में वार्तालाप करते सुना। तब गौतम स्वामी को विचार हुआ कि मैं भी आनन्द श्रावक को देख आऊँ।
वह आन्नद श्रावक की पौषधशाला मै पहुंचे तो आनन्द उन्हें देखकर बहुत ही प्रसन्न हआ और वन्दना नमस्कार करके बोला कि उदार तप आदि से अब मेरे शरीर में इतनी शक्तिं नही रही है कि मैं आप के पास में आकर चरणों पर मस्तक रखते हुए वन्दना कर सकें। यह जानकर गौतम स्वामी जहाँ आनन्द संस्तारक की शैया में स्थित था वहाँ पहुंचे तो आनन्द श्रावक ने उनक पैरो में तीन बार मस्तक झुका के नमस्कार किया। तदनन्तर गौतम स्वामी को उसने पूछा कि भगवन् ? क्या गृहस्थ को अवधि श्रमण विशिष्ट ज्ञान प्राप्त हो सकता है ?
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