SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० ] उसके बाद उन्हें लगा कि प्रश्न केवल आत्मविजय का ही नहीं है, मुझे उन कारणों का भी पता लगाना है, जो संसार में संघर्ष के लिये उत्तरदायी हैं और जिनकी वजह से आत्म-उन्नति का मार्ग अवरुद्ध है। उन्होंने अनुभव किया कि इसके लिए ध्यान, चिन्तन, मनन, अनुभूति और तपस्या का मार्म अपनाना होगा। वे उठकर परीक्षण के लिए चल दिये। उनके व्यक्तित्व को देखकर ऐसा लगता था, मानों साक्षात् सूर्य पृथ्वी पर चल रहा है। वे पूरे साढ़े बारह वर्ष तक परिव्राजक की तरह घूमते रहे। इसी बीच उन्होंने केवल ३४९ दिन अन्न-जल ग्रहण किया। कर-तल भिक्षा, तरुतल वास' की वृत्ति को अपनाते हुए उन्होंने समस्त देश की परिक्रमा की। इस बीच उन्हें क्या-क्या नहीं सहना पड़ा? उनके अवधूत की तरह नग्न शरीर और मलिन देह को देखकर लोगो ने उन्हें गालियाँ दी, पत्थर मारे, ध्यानावस्था में उनको नोचा और उनके कानों में लकड़ी तक ठोंक दी। सरकारी कर्मचारियों ने भी उन्हें पकड़कर तरह-तरह की यातनाएँ दीं। लेकिन वे सबको समान रूप से प्यार करते हुए अपनी साधना में लीन रहे। पूरे साढ़े बारह वर्षों के बाद उन्हें रिजुवालिका नदी के तट पर शाल्मलि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हई। उन्हें लगा कि उनका स्वप्न विशाल दृष्टि बनकर आलोकित हो उठा है। अनन्त ज्ञान उनके अन्तःकरण में हिलोरे ले रहा है। अनन्त वीर्य उनके दुर्बल शरीर में समा गया है और असीम सूख की अनभूति से उनकी आत्मा अभिभूत हो उठी है। अब वे श्रमण महावीर न होकर "तीर्थकर महावीर" थे, साधक न होकर, सर्वज्ञ थे। 卐 महापुरुष महावीर 卐 -डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन मानव-जाति के उन महापुरुषों में से जिन्होंने अपना ध्यान बाह्य प्रकृति से हटाकर मनुष्य की आत्मा के अध्ययन पर केन्द्रित किया, एक हैं महावीर। उन्हें 'जिन' अर्थात विजेता कहा गया है। उन्होंने राज्य और साम्राज्य नहीं जीते, अपितु आत्मा को जीता, सो उन्हें महावीर कहा गया है। सांसारिक युद्धों का नहीं, अपितु । संग्रामों का महावीर । तप, संयम, आत्मशुद्धि और विवेक की अनवरत प्रक्रिया से उन्होंने अपना उत्थान करके दिव्यपुरुष का पद प्राप्त कर लिया। उनका उदाहरण हमें भी आत्मविजय के उस आदर्श का अनुसरण करने की प्रेरणा देता है। जो संयम द्वारा, निष्कलंक जीवन द्वारा इस स्थिति को प्राप्त कर ले, वह परमेष्ठी है। जो पूर्ण मुक्ति प्राप्त कर ले वह अहंत् है । वह पुनर्जन्म की संभावना से, काल के प्रभाव से पूर्णतया मुक्त है। महावीर के रूप में हमारे समक्ष ऐसे व्यक्ति का उदाहरण है जो सांसारिक वस्तुओं को त्याग देता है, जो भौतिक बन्धनों में नहीं फंसता, अपितु जो मानव-आत्मा की आंतरिक महिमा को अधिगत कर लेता है। संयम की आवश्यकता, अहिंसा और दूसरे के दृष्टिकोण एवं विचार के प्रति सहिष्णता और समझ का भाव, ये उन शिक्षाओं में से कुछ हैं, जो महावीर के जीवन से हम ले सकते हैं। यदि इन चीजों को हम स्मरण रक्खें और हृदय में धारण करें तो हम महावीर के प्रति अपने महान ऋण का छोटा-सा अंश चुका रहे होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy