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________________ अहिंसा के मूर्तस्वरूप -श्री रामनारायण उपाध्याय महावीर स्वामी का सम्पूर्ण जीवन अहिंसा की एक सतत साधना थी। यदि आप अहिंसा को मूर्त स्वरूप में देखना चाहें, तो महावीर स्वामी का स्मरण कीजिये। महावीर अजातशत्र थे। जो उनका विचार मानते थे, जो न्यायी थे और जो अन्यायी थे, वे उनको सबको समान रूप से प्यार करने वाले महामानव थे। उनकी आँखों में ऐसी करुणा थी कि एक बार जब वे जंगलों में से जा रहे थे, एक महाभयंकर विषधर उन्हें काटने दौड़ा। महावीर स्वामी ने उसकी आँखों में आँख डालकर कहा-'चण्ड कौशिक सोच तू यह क्या कर रहा है ?' और वह महाभयंकर विषधर लौट गया था। महावीर स्वामी वस्त्र नहीं पहनते थे । क्या उन्होंने अपने वस्त्रों को उतारकर त्यागने का अभिनय किया था? वे तो इतने विदेह थे, इतने वीतराग थे कि अपने साधना-काल में जब जंगलों में भटक रहे थे, तो वृक्षों से उलझ कर उनके वस्त्र फटते चले गये और जब वे फट ही गये तो उन्हें पुनः पहनने की सुध किसे थी? जैसे सांप अपनी केंचल को सहज भाव से छोड़ देता है, वैसे ही वस्त्र उनसे सहज भाव से छूट गये थे। उनके जैसे तपस्या और ज्ञान की साधना करने वाले विरले ही मिलेंगे। अट्ठाइस वर्ष की अवस्था में जब उनके माता-पिता का देहान्त हुआ, तो उन्हें लगा कि "यह शरीर तो पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है। अतएव इसके प्रति आसक्ति छोड़ने में तनिक भी आलस्य नहीं करना चाहिए।" तीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने गह त्याग की घोषणा कर दी । अपनी समस्त सम्पत्ति दीन-दुखियों में वितरित करके, गुरुजनों का आशीर्वाद लेकर एक पालकी में बैठकर वन को ओर चल दिये। वहाँ पहुँचकर महावीर पालकी से उतरे और उन्होंने कहा, "आप लोगों के स्नेह ने मेरे हृदय को जीत लिया है। मैं किसी स्वर्ग की कामना से, स्नेह की कमी से, क्रोध की अधिकता से, या कर्तव्यों की उपेक्षा से गहत्याग नहीं कर रहा है। असल में आत्मविजय ही मेरा लक्ष्य है। मैं अपने शरीर रूपी नौका के सहारे ही भव. सागर को पार करना चाहता हूँ।" ऐसा कहकर उन्होंने अपने समस्त आभूषण उतार डाले और अपनी सहसशक्ति की परीक्षा लेते हुए अपने सुन्दर धुंधराले बालों को पांच मुट्टियों में कसकर उखाड़ डाला। फिर समस्त सिद्धों को प्रणाम करते हुए उन्होंने कहा-"मैं आज से जीवन पर्यन्त समतावृत्ति से रहने का व्रत लेता है", ऐसा कहकर वे ध्यानस्थ हो गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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