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________________ महावीर-युग में समाज और धर्म की स्थिति -डा. ज्योति प्रसाद जैन वर्धमान महावीर श्रमण परम्परा के चौबीस तीर्थंकरों में अन्तिम थे। ईसा पूर्व ५९९ में उनका जन्म हुआ था, और बहत्तर वर्ष की आयु में, ईसा पूर्व ५२७ में उनका निर्वाण हुआ था। ईसा मसीह के जन्म से पूर्व की वह छठी शताब्दी ऐसी युगान्तरकारी शती थी जो मानव जाति के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। उस काल में प्रायः सम्पूर्ण सभ्य संसार का वातावरण एक अभूतपूर्व ज्ञान जागृति, दार्शनिक चिन्तन एवं भावुक उत्साह से विद्युताक्रान्त था, प्रायः सर्वत्र एक अद्भुत आध्यात्मिक व्यग्रता और बौद्धिक क्षोभ दृष्टिगोचर हुआ। एक नवीन युग का आविर्भाव हो रहा था। पश्चिमी सभ्य जगत के केन्द्र यूनान में आयोनियन दार्शनिक विश्व संरचना के आद्य उपादान तत्व के विषय में वाद-प्रतिवाद कर रहे थे, तो वहीं पाइथेगोरस महान अपने 'सामंजस्य सिद्धान्त' का प्रतिपादन कर रहे थे और पुनर्जन्म एवं शाकाहार का प्रचार कर रहे थे। परमेडीज और एम्पिडोक्लीज जैसे युनानी दार्शनिक भी प्रायः तभी हए। उसी युग में महादेश चीन में लाउत्सु और कनफशस नाम के दो महापुरुष उत्पन्न हुए-लाउत्सु ने अपने 'प्रकृति शास्त्र' को रचना की, जो ताओ धर्म एवं विचारधारा का सर्वमहान आप्त ग्रन्थ माना जाता है, और नीतिज्ञ शिरोमणि कनफशस ने अपने सुप्रसिद्ध 'स्वर्ण सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया। ईरान (फारस देश) में जरथरत महान ने 'प्रकाश' एवं 'अन्धकार' की शक्तियों के मध्य चलने वाले द्वन्द्व को अपने सिद्धान्त का आधार बनाया, तो मेसोपोटामिया में पैगम्बर मूसा अपने अनुसर्ताओं को परमपिता जेहोवा तक पहुँचने का मार्ग दिखा रहे थे। स्वयं पुण्यभूपि भारतवर्ष में, उस काल में, एक नहीं, दर्जनों श्रेष्ठ चिन्तकों, धर्मसुधारकों, एवं दर्शन संस्थापकों · का उदय हआ था। इन चिन्तकों एवं दृष्टाओं ने अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान की विरासत को आगे बढ़ाया और अपनी ओर से उसे नई भंगिमाएँ प्रदान की। वस्तुतः भारतीय समाज के लिए तो वह अनेक दृष्टियों से एक महान क्रान्ति-युग था, और राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में जिन परिवर्तनों की नींव उस समय पड़ी, उनका चिरव्यापी एवं दूरव्यापी प्रभाव हुआ। सुप्रसिद्ध महाभारत युद्ध और तदनन्तर भी चलती रही आत्मघाती गृहकलहों ने वैदिक क्षत्रियों की सार्वसत्ता को प्रायः धराशायी कर दिया था। उनका स्थान अब प्रागार्य राज्यवंशो की बची-खुची सन्तानों ने, अथवा अज्ञात कुलशील साहसिक व्यक्तियों ने लेना प्रारम्भ कर दिया था। कट्टर वैदिक धर्मी उन्हें धर्मबाह्य एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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