SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुर्गाप्रसाद जोशी में अन्यत्र कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। अपने संघ में त्यागियों और गृहस्थों के पृथक-पृथक नियमों और उनके पारस्परिक सम्बन्ध के विधि-विधानों के द्वारा भगवान महावीर ने अपने संघ को ऐसा श्रृंखला बद्ध किया है जो कभी छिन्न-भिन्न नहीं हो सकता। संघ व्यवस्था की इस महान शक्ति के कारण ही जैन धर्म अनेक संकट-कालों में से गुजरने पर भी सुरक्षित और सुव्यवस्थित रह सका है। इस तरह विचार में अनेकांत दर्शन, आचार में अहिंसा, समाज रचना के लिए अचौर्य और अपरिग्रह तथा इन सबके लिए सत्य की निष्ठा और जीवन शुद्धि के लिए ब्रह्मचर्य यानी इन्द्रिय विजय आदि धर्मतीर्थ का प्रवर्तन महावीर ने किया। आई.टी.आई. मार्ग, करौदी, वाराणसी प्रणति समर्पित 'स्थानक वासी जैन सभा' में गुरु प्रेमामृत झरता है। महावीर का मुक्ति मंत्र प्राणों में मस्ती भरता है।। यह 'सेवा साधना' का आसव पीने वाले ही पीते हैं। 'श्वेताम्बर' सा जाग्रत जीवन जीने वाले ही जीते हैं।। 'विविध जैन विद्यालयों ने, शिक्षा में अलख जगाई है। 'श्री हरखचन्द कांकरिया' ने इसमें बहु ख्याति पाई है।। 'दुग्गड़' सिंघवी अरु 'कोचर' ने 'करुणा खूब लुटाई है। पाठ्य-पुस्तकें पा-पा कर, छात्रों ने कीर्ति गाई है।। जिन:लोक के महाकाश में, ये सब दानी छाये। 'पंच महाव्रत' की ज्योति में, स्नान कराने आये। बन 'अनन्त की अनुकम्पा' ये जिन शासन को लाये। 'स्थानकवासी जैन सभा को धन्य बनाने धाये।। 'श्री जैन हॉस्पिटल के स्थापन ने, पीड़ित को सरसाया है। 'करुणाकर की करुणा' ने मानव का मान बढ़ाया है। विकलांगों की सेवाओं में, दया-भाव दरसाया है। दृष्टि हीन के संबल बनकर, सम्यक् रूप दिखाया है।। आध्यात्मिक उत्थान किया है, वीतराग वैराग्य धरा पर। उपकारी बन 'जैन-सभा' ने कर्ज चढ़ाया जन्म जरा पर।। कृतज्ञता के भाव-सुमन ये 'महावीर मय मन' को अर्पित। सेवा-भावी दान-प्रदाता, तुम को मेरी, प्रणति समर्पित।। नित्यानन्द निकेतन, निम्बाहेडा (राज) ० अष्टदशी / 2340 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy