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________________ निष्ठा, आस्था एवं विश्वास में परिणत कर देना। जप साधना में चक्रों एवं उपत्यकाओं (नाड़ी संस्थानां) में एक विशिष्ट स्तर का इन्हीं सब प्रयोजनों को पूरा करना पड़ता है। व्यक्ति को समष्टि शक्ति संचार होता है। इस प्रकार के विशिष्ट शक्ति-संचार की सत्ता से अथवा आत्मा को परमात्म-सत्ता से जोड़ने के लिए मन अनुभूति जपकर्ता अपने भीतर में करता है, जबकि बाहरी को बार-बार स्मरण दिलाना, उसे अपने स्वभाव में बुन लेना, प्रतिक्रिया यह होती है कि लगातार एक नियमित क्रम से किए उससे संबंधित आध्यात्मिक एवं मानसिक बौद्धिक लाभों को याद जाने वाले विशिष्ट मंत्र के जप से विशिष्ट प्रकार की ध्वनि तरंगे करके सजीव कर लेना तथा उस पर निष्ठा एवं आस्था में दृढ़ता निकलती है, जो समग्र अन्तरिक्ष में विशेष प्रकार का स्पन्दन लाना, ये ही तो जपयोग के मूल उद्देश्य हैं। उत्पन्न करती है, वह तरंग स्पंदन प्राणिमात्र को और समूचे जपयोग का महत्व क्यों? वातावरण को प्रभावित करता है। वास्तव में जपयोग अचेतन मन को जागृत करने की एक मंत्रजाप से दोहरी प्रतिक्रिया : विकार निवारण, प्रतिरोधशक्ति वैज्ञानिक विधि है। आत्मा के निजी गुणों के समुच्चय को प्राप्त प्रत्येक चिकित्सक दो दिशाओं में रोगी पर चिकित्सा कार्य करने के लिए परमात्मा से तादात्म्य जोड़ने का अद्भुत योग है। करता है। एक ओर वह रोग के कीटाणुओं को हटाने की दवा इससे न केवल साधक का मनोबल दढ होता है. उसकी आस्था देता है, तो दूसरी ओर रोग को रोकने हेतु प्रतिरोधात्मक शक्ति परिपक्व होती है उसके विचारों में विवेकशीलता और समर्पण बढ़ाने की दवा देता है। क्योंकि जिस रोगी में प्रतिरोधात्मक वृत्ति आती है, बुद्धि भी निर्मल एवं पवित्र बनती है। जप से मनुष्य शक्ति बढ़ाने की दवा देता है। क्योंकि जिस रोगी में प्रतिरोधात्मक भौतिक ऋद्धि-सिद्धियों का स्वामी बन जाता है, यह इतना महत्पूर्ण । शक्ति कम होती है, उसे दी जाने वाली दवाइयां अधिक नहीं, उससे भी बढ़कर है, आध्यात्म्कि समृद्धियों का स्वामी . लाभदायक नहीं होती। जिस शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बनना। जपयोग एक ऐसा विधान है, जिससे मनुष्य प्रेरणा प्राप्त होती है, वही दवाइयां ठीक काम करती हैं। इसीलिए डॉक्टर या कर भव-बन्धनों से मुक्त होने की दिशा में तीव्रता से प्रयाण कर चिकित्सक इन दोनों प्रक्रियाओं को साथ-साथ चलाता है। इसी सकता है, साथ ही वह व्यक्तिगत जीवन में शांति, कषायों की प्रकार मंत्रजप से भी दोहरी प्रतिक्रिया होती है- १. मन के उपशांति, वासनाओं से मुक्ति पाने का अधिकारी हो जाता है। विकार मिटते हैं, २. आन्तरिक क्रोधादि रोगों से लड़ने की प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है। मंत्र जाप से ऊर्जाशक्ति शरीर पर मैल चढ़ जाता है तो उसे धोने के लिए लोग स्नान करते हैं। इसी तरह मन पर भी वातावरण में नित्य उड़ती प्रबल हो जाती है, फलत: बाहर के आघात-प्रत्याघातों को फिरने वाली दुष्प्रवृत्तियों की छाप पड़ती है, उस मलिनता को समभावपूर्वक झेलने और ठेलने की प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ धोने के लिए जप ही सर्वश्रेष्ठ सुलभ एवं सरल उपाय है। जाती है। मन पर काम, क्रोध, लोभ तथा राग-द्वेषादि विकारों का नामजप से इष्ट का स्मरण, स्मरण से आह्वान, आह्वान से हृदय प्रभाव प्राय: नहीं होता। मंत्रजाप से इस प्रकार की प्रतिरोधात्मक में स्थापना और स्थापना से उपलब्धि का क्रम चलना शास्त्रसम्मत शक्ति के अभिवर्धन के लिए तथा मन को इस दिशा में अभ्यस्त भी है और विज्ञान-सम्मत भी अनभ्यस्त मन को जप द्वारा सही करने के लिए शास्त्रीय शब्दों में संयम और तप से आत्मा को रास्ते पर लाकर उसे प्रशिक्षित एवं परमात्मा के साथ जुड़ने के भावित करने के लिए मंत्रजाप के साथ तदनुरूप भावना या अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना चाहिये। ऐसा होने पर वह मंत्रजाप लिए अभ्यस्त किया जाता है। परमात्म (शुद्ध आत्म) चेतना को वज्रपंजर या सुदृढ़ कवच होता जाता है, जिससे मंत्र जपसाधक जपकर्ता अपने मानस पटल पर जप द्वारा प्रतिष्ठित कर लेता है। जपयोग की प्रक्रिया से ऐसी चेतनशक्ति का प्रादुर्भाव हो जाता पर बाहर के आघातों का कोई असर नहीं होता और न ही कामहै, जो साधक के तन-मन-बुद्धि में विचित्र चैतन्य हलचलें पैदा क्रोधादि विकार उसके मन को प्रभावित कर सकते हैं। कर देती है। जप के द्वारा अनवरत शब्दोच्चारण से बनी हुई जपयोग में शब्दों के अनवरत पुनरावर्तन का लाभ लहरें (Vibrations) अनन्त अन्तरिक्ष में उठकर विशिष्ट विभूतियों, बार-बार रगड़ से गर्मी अथवा बिजली पैदा होने पर पानी व्यक्तियों और परिस्थितियों को ही नहीं, समूचे वातावरण को के बार-बार संघर्षण से बिजली (हाइड्रो इलैक्ट्रिक) पैदा होने के प्रभावित कर देती है। सारे वातावरण में जप में उच्चरित शब्द सिद्धांत से भौतिक विज्ञानवेत्ता भली भंति परिचित हैं। जपयोग गूंजने लगते हैं। में अमुक मंत्र या शब्दों का बार-बार अनवरत उच्चारण एक जपयोग से सबसे बड़ा प्रथम लाभ प्रकार का घर्षण पैदा करता है। जप से गतिशील होने वाली उस घर्षण प्रक्रिया से साधक अन्तर में निहित दिव्य शक्ति संस्थान . जपयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी प्रक्रिया उत्तेजित और जागृत होते हैं, तथा आन्तरविद्युत (तेजस् शक्ति) दोहरी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है- एक भीतर में, दूसरी बाहर अथवा ऊर्जाशक्ति की वृद्धि होती है। श्वास के साथ शरीर के में. जप के ध्वनि प्रवाह से शरीर में यत्र-तत्र सन्निहित अनेक भीतर शब्दों के आवागमन से तथा रक्ताभिसरण से गर्मी उत्पन्न ० अष्टदशी / 2140 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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