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है, जो ग्रन्थियां सुलझती नहीं है, वे भी इन सूक्ष्म उच्चारणों में सुलझ जाती है।
निष्कर्ष यह है कि जब हमारा संकल्प सहित मंत्रजप स्थूलवाणी से होगा, तो इतना पावरफुल नहीं होगा, न ही हम यथेष्ट लाभ प्राप्त कर सकेंगे, हमारा जप तभी शक्तिशाली और लाभदायी होगा, जब हमारा संकल्पयुक्त जप सूक्ष्म वाणी से होगा। भावना, शुद्ध उच्चारण और तरंगों से मंत्रजप शक्तिशाली एवं लाभदायी
मंत्र शक्तिशाली और अभीष्ट फलदायी तभी होता है, जब मंत्र के शब्दों के साथ भावना शुभ और उच्चारण शुद्ध होता है। उससे विभिन्न तरंगें पैदा होती जाती हैं। अतः मंत्रों की शब्दशक्ति के साथ तीन बातें जुड़ी हुईं १. भावना, २ . उच्चारण और ३. उच्चारण से उत्पन्न हुई शक्ति के साथ पैदा होने वाली तरंगें। किसी शब्द के उच्चारण से अल्फा तरंगे, किसी शब्द के उच्चारण से थेटा या बेटा तरंगें पैदा होती हैं। ॐ के भावनापूर्व उच्चारण से अल्फा तरंगे पैदा होती है, जो मस्तिष्क को प्रभावित एवं शिथिलीकरण करती हैं। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं, ब्लू, एं, अर्हम्, असि आउ सा आदि जितने भी मंत्र या बीजाक्षर हैं, उनसे उत्पन्न तरंगे ग्रंथि संस्थान को प्रभावित करती हैं तथा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को संतुलित एवं व्यवस्थित करती है।
मंत्र जप के लिए शब्दों का चयन विवेकपूर्वक हो
जैनाचार्यों ने वाक्सूक्ष्मत्व, वाग्गुप्ति तथा भाषासमिति का ध्यान रखते हुए उन शब्दों का चयन किया है जो मंत्ररूप बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि साधक को यतनापूर्वक उन शब्दों का चुनाव करना चाहिए, जिनसे बुरे विकल्प रुक जाएं, जो उसकी संयम यात्रा को विकासशील और स्व-पर कल्याणमय बनाएं एवं विघ्नबाधाओं से बचाएँ जीवन में सुगन्ध भर जाए, दुर्गन्ध मिट जाए, जीवन मोक्ष के श्रेयस्कर पथ की ओर गति प्रगति करे, प्रेय के पथ से हटे, उसी प्रकार से संकल्प एवं स्वप्न हृदयभूमि में प्रादुर्भूत हों, जिनसे आत्म स्वरूप में या परमात्मभाव में रमण हो सके, परभावों और विभावों से दूर रहा जा सके। "णमो अरिहंताणं" आदि पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र तथा नमो नाणस्स, नमो दंसणरस नमो चरितस्स और नमो तबस्स" आदि नवपद ऐसे शक्तिशाली शब्दों का संयोजन है भावना और श्रद्धा के साथ उनके उच्चारण (जप) से आधि-व्याधि और उपाधि मिट कर अन्तरात्मा में समाधि प्राप्त हो सकती है। शब्दशक्ति का चमत्कार
पहले बताया जा चुका है कि शब्द शक्ति के द्वारा विविध रोगों की चिकित्सा होती है। अब तो शब्द की सूक्ष्म तरंगों के द्वारा ऑपरेशन होते हैं, चीर-फाड़ होती है। ध्वनि की सूक्ष्म तरंगों
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के द्वारा अल्पसमय में हीरा काटा जाता है। शब्दों की सूक्ष्म ध्वनि से वस्त्रों की धुलाई होती है। मकान के बंद द्वार, फाटक भी आवाज से खुलते और पुनः आवाज से बंद हो जाते हैं। यह है शब्दशक्ति का चमत्कार। जप में शब्द शक्ति का ही चमत्कार है।
अश्राव्य शब्द के आघात का चमत्कार
एक क्रम, सरीखी गति से सतत किए जाने वाले सूक्ष्म, अश्राव्य शब्द के आघात का चमत्कार वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में देखा जा चुका है। इसी प्रकार प्रयोगकर्ताओं ने अनुभव करके बताया है कि एक टन भारी लोहे का गार्डर किसी छत के बीच में लटका कर उस पर सिर्फ ५ ग्राम वजन के कार्क का लगातार शब्दाघात एक क्रम व गति से कराया जाए तो कुछ ही समय के पश्चात् लोहे का गार्डर कांपने लगता है। पुलों पर से गुजरती सेना के लेफ्ट राइट के ठीक क्रम से तालबद्ध पैर पड़ने से उत्पन्न हुई एकीभूत शक्ति के प्रहार से मजबूत से मजबूत पुल भी टूटकर मिट सकता है इसलिए सेना को पैर मिलाकर पुल पर चलने से मना कर दिया जाता है। मंत्रजप के क्रमबद्ध उच्चारण से इसी प्रकार का तालक्रम उत्पन्न होता है। मंत्रगत शब्दों के लगातार आघात से शरीर के अंतः स्थानों में विशिष्ट प्रकार की हलचलें उत्पन्न होती हैं, जो आन्तरिक मूर्च्छना को दूर करती हैं एवं सुषुप्त आन्तरिक क्षमताओं को जागृत कर देती है।
जप के साथ योग शब्द जोड़ने के पीछे आशय
जप के साथ योग शब्द जोड़कर अध्यात्मनिष्ठों ने यह संकेत किया है कि जप उन्हीं शब्दों और मंत्रों का किया जाए, जो आध्यात्मिक विकास के प्रयोजन को सिद्ध करता हो, जिससे व्यक्ति में परमात्मा या मोक्ष रूप ध्येय की प्रति तन्मयता, एकाग्रता, तल्लीनता एवं दृढ़निष्ठा जगे, आंतरिक, सुषुप्त शक्तियां जगेता, जपयोग में मंत्रशक्ति के इसी आध्यात्मिक प्रभाव का उपयोग किया जाता है तथा आत्मा में निहित ज्ञानदर्शन- चारित्र सुख (आनंद) आत्मबल आदि शक्तियों को अभिव्यक्त करने का पुरुषार्थ किया जाता है।
नामजप से मन को प्रशिक्षित करने हेतु चार भूमिकाएँ
नाम जप से मन को प्रशिक्षित करने हेतु मनोविज्ञान शास्त्र में चार स्तर बताए हैं, १. लर्निंग का अर्थ बार-बार स्मरण करना, दोहराना है। इस भूमिका में पुनरावृत्ति का आश्रय लिया जाता है। दूसरी परत हैं रिटेंसन अर्थात् प्रस्तुत जानकारी या कार्यप्रणाली को स्वभाव का अंग बना लेना। तीसरी भूमिका हैरिकॉल, उसका अर्थ है भूतकाल की उस संबंध में अच्छी बातों को पुनः स्मृतिपथ पर लाकर सजीव कर लेना, चौथी भूमिका है रिकाम्बिशन अर्थात् उसे मान्यता प्रदान कर देना, उसे
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