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________________ ५५ प्रतिशत भाव उसके संकेतों का होता है। चार्ली चेपलीन ने रहे हों तो बोलने वाले के पैर पर अंगूठा जिधर है वह उस व्यक्ति भी इस बात को विस्तृत समझाया। सन् १९६० में ज्यूलियस से बात करने की इच्छा वाला बन जाता है। ने इसे और आगे बढ़ाकर संकेतों के अर्थ को व्यवस्थित रूप से सदियों से भारतीय संस्कृति में हाथ उठाकर हथेली सामने प्रतिष्ठापित किया। करते हुए आशीर्वाद देने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह जैनागमों में बॉडी लेग्वेंज को अपने ढंग से अच्छे तरीके भीतरी निर्मलता, सादगी, सरलता का प्रतीक है। यही स्थिति से समझाया है। यही नहीं जैन शास्त्रों में मन के एक्शन को भी व्यावहारिक जीवन में भी देखी जा सकती है। जब कोई व्यक्ति समझाया है। जैसे किसी व्यक्ति को धीरे से कहा जाय कि यह किसी का सम्मान करता है तो वह दोनों हाथ खोलकर हथेलियां काम तुम्हें करना है और यही बात तेज शब्दों में कहा जाय कि उसके सामने घुमाता हुआ पधारो-सा बोलता है। यह सम्मान का यह काम तुम्हें ही करना है तो सामने वाले के समझने में भारी परिचायक है। यदि भीतर में सामने वाले के प्रति सम्मान नहीं फर्क आ जाता है। रेडियो से टी०वी० देखने में व्यक्ति को हो तो वह ऐसा एक्शन न करके अंगुली से इशारा करता हुआ ज्यादा अच्छा समझ में आता है क्योंकि उसमें आवाज और बोलेगा। इधर आ, उधर आ। जिससे लग जायेगा कि सामने लहजे के साथ ही एक्शन भी साफ नजर आते हैं। णमोत्थुणं में वाले के प्रति सम्मान की भावना नहीं है। कोई उग्रवादी समर्पित बायां घुटना खड़ा करवाया जाता है जो विनम्रता का प्रतीक है होता है तो वह भी दोनों हाथ ऊपर रखकर हथेलियां सामने कर और गौतम स्वामी आदि जब प्रश्न पूछते थे, तब ऐसे ही बैठते देता है कि अब मै खाली हूँ। कोई खोट नहीं है। भीतर में यदि थे। परन्तु जब श्रमण प्रतिक्रमण का पाठ किया जाता है दांया कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच। तब सामनेवाले के हाथ घुटना खड़ा करवाया जाता है। यह वीरता का परिचायक है। का एक्शन देखिये। यदि वह दोनों हाथ थोड़ा ऊपर उठाकर ऐसा अर्थात् लिये हुए व्रतों को दृढ़ता के साथ पालन करने का सूचक करता है कि सच मानिये। मैं जो भी कर रहा हूँ वह सच कर है। यही स्थिति व्यावहारिक जीवन में भी बतलाते हैं कि जब रहा हूँ। यदि सामने वाला ऐसा न करके दाढ़ी पर हाथ फिराएगा बन्दूक चलाई जाती है तो राइट का घुटना आगे खड़ा किया जाता या कान या फिर सिर पर खुजली करने लगता है या नाक के है। जिससे सीना तन जाता है। तभी वह सधे हुए हाथों से गोली नीचे एक अंगुली घुमाता है आदि करे तो साफ है कि वह झूठ चलाता है। अति विशिष्ट व्यक्ति के कक्ष में जब कोई व्यक्ति , बोल रहा है, क्योंकि यह सब सोचने के आकार हैं। सच बोलने जाता है। जिसके मन में सामने वाले व्यक्ति के प्रति पूरा सम्मान वाले को सोचना नहीं पड़ता। वह साफ है। विकल्प झूठ में ही हो तो कक्ष में वह प्रवेश करेगा तो उसका स्वत: ही बांया पैर उठते हैं। पहल प्रवश करेगा। यदि सम्मान का भावना कम हो तो फिर सदियों से यह परम्परा है कि आदेश देने वाले ऋषि महर्षि दायां पैर पहले जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति कुर्सी पर बैठा श्रोताओं से कछ ऊपर बैठते हैं। ऊपर से विचार-तरंगे नीचे की है। वह बैठा-बैठा ही पैर पर पैर को चढ़ा देता है तो ऊपर वाले तरफ प्रवाहित होती है जो श्रोता को प्रभावित करती है। इसी पैर का अंगूठा जिस तरफ गया है समझना चाहिये उस व्यक्ति प्रकार बॉडी लेग्वेज में भी यह बतलाया जाता है कि सेल्समैन को बोलने का कार्य उधर की तरफ बैठे व्यक्तियों की तरफ है। की कुर्सी ऊपर और खरीददार की नीचे हो तो सेल्समेन जो चीज जब वह पैर बदलता है तो जिधर पैर को चढ़ाया है अब वह उधर जितने में बेचना चाहेगा ज्यादा संभावना होगी कि उसमें कोई ही बात करना चाहता है। यह शरीर का संकेत है। चपरासी जब मोल भाव नहीं होगा और वह उतने में ले ही लेगा। यदि बेचने [ अफसर के पास जाता है, तो ज्यादातर वह उसके बायो वाले का आसन कुर्सी नीचे होगा और वह उतने में ले ही लेगा। रफ ही आकर खड़ा होता है। किसी अफसर से काम करवाना यदि बेचने वाले का आसन कुर्सी नीचे है और खरीदने वाले की हो तो उसके सामने नहीं बैठें। उसकी दायें तरफ न बैठें। ऐसा ऊपर है तो ज्यादातर संभावना यह है कि मोलभाव होगा और बैठने पर हो सकता है काम न हो। क्योंकि सामने बैठने पर उसमें खरीदने वाले की इच्छा ज्यादा महत्वपूर्ण बनती चली अफसर के मस्तिष्क में अदृश्य रूप में ऐसा लगता है कि यह जाएगी। क्योंकि ऊर्जा तरंगों का दबाव, ऊपर से नीचे की ओर उसका प्रतिस्पर्धी है। दांयी और बैठने पर भी यही स्थिति हैं। आता है। इसलिए ज्यादातर दकानों पर सेठ की गदी थोडी ऊपर बांयी और बैठना विनय का सूचक है। बांयी तरफ बैठे व्यक्ति होती है। लेने वाले को भले उनल्प के गद्दे पर बिठा देंगे पर पर सामने वाले का साफ्ट कार्नर बन सकता है। क्योंकि वह उसका स्थान थोड़ा नीचे ही रहेगा ताकि देने वाले की ऊर्जा उस' विनय का परिचायक है। भीतरी ऊर्जा का बांयी और झुकाव होने पर असर करे। से उधर प्रवाहित हो जाती है। जब दो तीन व्यक्ति खड़े बात कर ० अष्टदशी / 1910 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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