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कोई आदमी नीची गर्दन करके बोलता है तो समझ लीजिये जैन शास्त्रों में बाहरी संकेतों का गहरा विश्लेषण मिलता यह अपराधी है या लज्जावान है। हाथ मिलाते वक्त भी कोई है। यदि हम आज के स्वर विज्ञान, रेखा विज्ञान, शकुन विज्ञान, मजबूती से पकड़ता है और कोई ढीला। जो ज्यादा मिलने वाला नाड़ी विज्ञान तथा शास्त्रीय धरातल की स्थिति को सामने रखते है, उसका हाथ कड़ा पकड़ लेते हैं जो कम मिलने वाला है, हुए क्षीर नीर विवेकिनी बुद्धि के अनुसार कार्य करते हैं तो उसका ढ़ीला पकड़ लेते हैं। याने कि जिस व्यक्ति में आपका लक्ष्यानुरूप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। काया, वचन और मन इन्ट्रेस्ट ज्यादा है उसका हाथ कसकर पकड़ लेते हैं। जिससे के संकेतों को संयम के अनुरूप बनाने का प्रयास किया जाय इन्ट्रेस्ट कम है उसे ढीला पकड़ेंगे।
तो अन्तरंग शक्ति का जागरण हो सकता है। बाहर से भी संयमी सैनिक हमेशा हाथ मजबूती से पकड़ता है। उसका कारण
आचरण को मजबूती के साथ अपनाया जाता है तो धीरे-धीरे वह अलग है। क्योंकि वह बतलाता है कि मैं इज्जत से, शरीर से ।
अन्तरंग को छूता चला जाता है। जब इंजन चाबी से नहीं चलता चरित्र से, मजबूत हूँ। कई बार सामने वाले के प्रति ज्यादा है तो बाहर से हैण्डल (Handle) घुमाकर चलाया जाता है। जब उत्सुक व्यक्ति अपने दोनों हाथ आगे करता है और सामने वाले अन्दर का इंजन चालू हो जाय ता हेण्डल निकाल लिया जाता की उत्सुकता उसमें नहीं है तो वह औपचारिकता निभाने के लिए
है। उसी प्रकार अन्तरंग स्थिति को उज्ज्वल बनाने के लिए बाहर अपना एक हाथ ढीले तरीके से आगे बढ़ा देता है। जिसे वह
से भी पूरी तरह से संयम बरतने वाला व्यक्ति पवित्रता को पा व्यक्ति दोनों हाथों से दबाता है तो स्पष्ट है कि हाथों से दबाने
जाता है। वाला सामने वाले को कुछ कहना चाहता है, उससे कुछ काम करवाना चाहता है चापलूसी करके। कई बार आदमी किसी को अंगूठा दिखाकर हिलाता है तो उसे टकराने का संकेत देता है और यदि तना हुआ अंगूठा खड़ा रखता है तो वह उसके आत्मविश्वास का परिचायक है। कोई प्रवचन दे रहा है और आप कड़क से बैठे हैं तो लगेगा आप सुनने को इच्छुक हैं और यदि ढीले-ढाले बैठे हैं तो लगेगा कि आप सुनना नहीं चाहते हैं। यदि कोई किसी से निकटता से बात कर रहा है तो लगेगा कि वह आपका कोई अनन्य मित्र है, सम्बन्धी है। इस प्रकार शरीर, हाथ पैर, आँख कान के ईशारे ऐसे होते हैं, जिससे व्यक्ति के मनोगत भाव समझे जा सकते हैं। कई बार केवल आँखें ही विभिन्न रूपों में व्यक्ति की मानसिकता का संकेत दे देती है कि वह आपके प्रति क्या रूख रखता है, घृणा, क्रोध, प्रेम आदि अनेक बातें केवल आंखें ही बता देती हैं। वैद्य नाड़ी के बदलते रूप को देखकर बीमारी का अनुमान लगा लेता है, यह भी एक स्वतन्त्र विषय है।
इसलिए साधु को विनय के लक्षण में "इंगियागा संपन्ने" इंगित और आकार में संपन्न होना बतलाया है। जब वह गुरु के इंगितों को समझने में दक्ष हो जाएगा तो वह अन्य व्यक्तियों के इंगितों को समझने में भी दक्ष हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति संयम के साथ हित में प्रवृत्ति और अहित से निवृत्ति ले सकता है। शास्त्रों में हत्थ संजए, पाय संजए आदि विशेषण भी आए हैं। वे हाथ संयम, पैर संयम, इन्द्रिय संयम, वाक्-वचन संयम आदि का संकेत करते हैं। इसलिए कि तुम्हारे अंग-प्रत्यंग भी आस्रव कर्मबन्धन की ओर नहीं जाने चाहिये।
० अष्टदशी / 1920
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