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________________ अर्गला, बिन ऋतु की वर्षा, प्रतिकूल वायु आदि के रहते यात्रा चन्द्र और विद्याधर भूख से परेशान ऐसा ही करने जा रहे थे के लिए प्रस्थान शुभ नहीं माना जाता है। वज्रसेन मुनि ने देखकर रोका और दूसरे दिन से ही सुकाल की ऐसा भी बतलाया जाता है कि यात्रा करते समय जल से स्थिति बन गई। भरा घड़ा लिये कोई सौभाग्यवती स्त्री मिल जाय। गाय बछड़े को अंग फड़कना भी बाहरी आकार है। इसमें भी भविष्य के दूध पिलाती मिल जाय तो अच्छे शकुन समझे जाते हैं। यदि संकेत मिलते हैं। स्त्री का बायाँ और पुरुष का दायाँ अंग यात्रा चल रही हो और रास्ते में बार-बार लो. ड़ी दिखाई दे। फड़कना सही माना गया है। कहते हैं मस्तिष्क के फड़कने से बांयी ओर से दायी ओर हिरण आता दिखे तो ये सभी लक्षण जमीन की प्राप्ति होती है। ललाट प्रदेश के स्फुरण से स्थान और कार्य में सिद्धि देने वाले होते हैं। सोम और शनि को पूर्व दिशा सफलता की प्राप्ति होती है। आँख की भौहे और नासिक के में मंगल बुध को उत्तर दिशा में बृहस्पति को दक्षिण दिशा में यात्रा मध्य भाग में फड़कने से आत्मीय व्यक्ति के मिलने की संभावना करने का मना किया जाता है। यात्रा करते समय कुत्ता कान बतलाई गई है। नाक और आँखों के मध्य में स्फुरण होने पर फड़फड़ा दे या धरती पर लौटता दिखे तो भी अशुभ कारक मुसीबत में सहायता, धन आदि के प्राप्ति का संकेत होता है। माना गया है। यदि राह में नेवला मिल जाय, बांयी तरफ पक्षी आँखों के अन्तिम भाग में या कंठ के नीचे फड़कन हो रही है चुगा लेते दिख जाय तो कार्य सिद्धि के परिचायक माने गए हैं। तो भी धन लाभ संकेत है। दाहिनी आँख के नीचे फड़क रहा है दस व्यक्तियों का यात्रा में साथ होना भी विघ्न का संकेत देता तो शत्रु बाधा से पीड़ित रह सकते हैं। कान का फड़कना अच्छी है। बिल्लियों का युद्ध यात्रा में प्रतिबंधक है। गधा बांया और सर्प बात सुनने का संकेत है। होंठ, कंधा गले में स्फुरण होने पर दायी दिशा में यात्रा में मिले तो उचित ठहराया जाता है। इस मुख, प्रसन्नता, संतोष सुविधाएँ आने की स्थिति में भुजा के प्रकार विभिन्न प्रकार से शकुन-अपशकुन का विचार भडरी ___ स्फुरण होने पर प्रियवस्तु मिलने वाली है। हाथ के स्पंदन से शास्त्र के माध्यम से मिलता है। सम्पति, पराक्रम की प्राप्ति होती है। रीढ़ का फड़कना पराजय ___ अवन्ति देश में तुम्बवन नामक नगर के धनगिरि नामक का प्रतीक है। अत: उस समय महत्वपूर्ण काम नहीं किया जाय। सद्गृहस्थ ने अपनी सगर्भा पत्नी को छोड़कर आर्य सिंहगिरी के ___ कमर का स्फुरण भारी कामों में सफलता का सूचक है। पास दीक्षा ले ली थी। यह घटना वीर निर्वाण के ४९६ वर्ष बाद इस प्रकार अंगों के स्फुरण से भी अच्छे बुरे संकेत का की बतलाते हैं। वे जब विचरण करते हुए पुन: तुम्बवन पधारे अन्दाज लोगों द्वारा लगाया जाता है। वर्तमान में वैज्ञानिक में और भिक्षा के लिए जाने लगे तो कहते हैं कि उनके आचार्य श्री बाहरी वस्तुओं पर ही विशेष रूप से आधारित रहने वाला इन्सान ने बाहरी शकुन लक्षणों का विचार करके अपने शिष्यों को यहाँ इन सबका अनुभूतिपरक प्रामाणिक ज्ञान नहीं कर पा सकने के तक कहा था कि आज भिक्षा में जो भी सचित अचित मिल जाय कारण भी वह इन सब अवस्थाओं के ज्ञान से वंचित रह गया उसे ले आना और वे गए। इधर उनकी संसारपक्षीय पत्नी ने है। अन्यथा भड्डरी के ज्ञान से तो अनेक महत्वपूर्ण अवस्थाओं बच्चे को जन्म दिया था, वह रोता ही रहता था। छ: महिने तक का ज्ञान किया जाता रहा है। खूब रोया। इधर महाराज को अपने घर आया देखकर उस भडरी कौन हुई और यह ज्ञान कैसे क्या प्रचारित हुआ महिला ने वह बच्चा महाराज के पात्र में बहरा दिया। उसका रोना इसके पीछे भी एक रोचक तथ्य है। बन्द हो गया। महाराज धनगिरी बच्चे को आचार्य महाराज के घाघ नामक ज्योतिषी राजस्थान में जन्मे थे। परन्तु विद्वता पास लाए। उसके पालन-पोषण की व्यवस्था संघ ने की। भविष्य के अनुरूप यहाँ पूरा सम्मान नहीं मिल पाया। तब वे वहाँ से में वही बच्चा व्रजस्वामी के नाम से महान प्रभावक आचार्य हुए। निकलकर मध्यप्रदेश में धारानगरी चले गए। राजा भोज ने उन्हें इस घटना से स्पष्ट होता है कि शकुन तो माने जाते हैं पर शकुन उपयुक्त समझकर राज ज्योतिषी बना दिया। इस पर स्थानीय की सच्चाई को नापना जरूरी है। लोगों को ईर्ष्या भी हुई पर इससे क्या हो। राजा माने जो राणी वीर निर्वाण के ६०० वर्ष बाद भयंकर दुष्काल पड़ा था, और भरे पाणी। ज्योतिषी घाघ बड़े ठाठ-बाट के साथ रह रहे थे। लोग मर रहे थे। उस समय व्रजस्वामी ने अपने शिष्य व्रजसेन से उस वक्त एक घटना घटती है। जो उनके जीवन में एक विशिष्ट कहा था कि जिस दिन एक सेठ एक लाख स्वर्ण मुद्रा में एक मुट्ठी परिवर्तन लाने वाली बनी। राज्य में एक वर्ष अकाल के लक्षण चावल खरीदकर विष खाकर मरने की तैयारी करता पाया जाय, दिखलाई देने लगे। दर-दर तक पानी होने की संभावना ही नजर वही दुष्काल का अन्तिम दिन होगा। हुआ भी यों ही। जिनदत्त नहीं आ रही थी। यह देख राजा भोज विचार में पड़ गए, तुरन्त सेठ, उनकी पत्नी ईश्वरी ओर उनके चार बच्चे नागेन्द्र, निवृत्ति, सारे ज्योतिषियों को एकत्रित किया और पछा कि इस वर्ष पानी ० अष्टदशी / 1890 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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