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________________ बतलाई गई है। कानों की कूपर पतली हो जाय, नाक की डंडी छींक पीठ की कुशल उच्चारे, बायी छींक कारज सब सादे। टेढी हो जाय, आँख सफेद हो जाय, नासिका लाल, कपाल सम्मुख छींक लड़ाई भाखे, छींक दाहिनि द्रव्य विनाशे।" काला हो जाय, मुख के बाल खिरने लगे, होठ सफेद हो जाय ऊपरी छींक सदा जय कारी, नीची छींक महाभयकारी। तो ३ दिन में मृत्यु की संभावना बतलाई है। भोजन पानी स्वाद अपनी छींक महादु:ख दाई, ऐसे छींक विचारों भाई। न लगे। नाक के श्लेष्म की गंध दूध जैसी हो, छाती की दाहिनी __यह छींकों का स्पष्टीकरण अपने ढंग का दिया गया है। ओर धड़कन बढ़ जाय। हाथ पैर के तलवे लाल हो जाय। नाखून वैसे यह कोई जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो। काले पड़ जायें। शरीर की गध शव जैसी ही जाय, नाड़ा सुस्त एक बार हमें बंबई से विहार का संकेत मिला। आचार्य प्रवर हो जाय, क्रोध बढ़ जाय, विनम्रता या मूर्छा बढ़ जाये। छाती ने चातर्मास की घोषणा हमारे लिए रतलाम की कर दी। इतने में पीली. जंघा श्वेत, गला नीला या लाल दिखाई दे। नाक पर सल एक भाई ने छींक कर दी। हमने कहा- अब देखो क्या होता है। पड़ जाए। हाथ-पैर ठंडे हो जाय और मस्तक गर्म रहे तो मृत्यु कोदोई काम चलता बालवा कोपर होना एकदम निकट बतलाया है। तक रतलाम के लिए विहार हो गया। लेकिन पता नहीं क्या हुआ शरीर के अंगों का स्वाभाविक वर्ण बदल जाय। मांस, वसा । कि आचार्य प्रवर ने अचानक वापस बुलाया। हम लोग घाटकोपर आदि नर्म अंग कड़े हो जाय। अचल अंग चल और चल अंग । से सीधे २२ कि०मी० करीब चलकर पुन: बालकश्वर पहुंचे। अचल हो जाय। आंखें घूम जाय, मस्तिष्क लटक जाय, जोड़ आचार्य प्रवर से बुलाने का कारण पूछा वे बोले- तुम्हें अभी ढीले पड़ जाय, आँखें या जीभ भीतर घूम जाय तो भी मृत्यु को भेजने की लिए मेरी अन्तर आत्मा नहीं मानती। यहाँ भी तुम्हारी निकट जानो। आधा शरीर गर्म और आधा शरीर ठंडा पड़ जाय आवश्यकता है। मैंने कहा- ठीक है आपने ही खोला है चातुर्मास तो सात दिन में मृत्यु की संभावना कही गई है। इस प्रकार और आप बदल लीजिये और वह चातुर्मास बदल दिया गया। अनुभवियों ने अपने-अपने ढंग से मृत्यु की निकटता का बोध चातुर्मास, गुरुदेव के साथ घाटकोपर ही हुआ। कभी-कभी बाहरी अंगों से किया है। वैसे सिद्धान्तवादियों ने देवताओं के काकतालीय दृष्टि से समझें या सच। छींक का परिणाम ऐसा भी लिए भी बतलाया है कि च्यवन मरने से ६ महिने पहले देवताओं देखने को मिलता है। की फूलमाला मुझ जाती है जो उनकी मृत्यु को बतलाती है। कई बार आदमी ज्योतिष रेखाशास्त्र आदि में उलझ जाता कालिया कसाई के लिए भी बतलाया गया कि वह सातवीं नरक है और अपने विलपावर (Will power) को कमजोर कर देता में जाने वाला था। जाने से पहले उसे घोर वेदना हो रही थी। है। जबकि इन सबसे ऊपर आत्मा का विलपावर स्ट्रोंग (Strong) उसके बेटे सुलभ ने उसके दाह ज्वर को शान्त करने के लिए होना ही सफलता का परिचायक है। बावना चन्दन का लेप करवाया। फिर भी कुछ नहीं हुआ। तब कई लोग शकुन के चक्कर में भी रहते हैं कि घर से अभय कुमार के कहने पर उस पर अशुचि का लेप किया। गर्म निकले तब शकुन देखकर निकला जाय। कहीं बिल्ली रास्ता तो गर्म शीशा पिलवाया। कर्ण भेद आवाजें सुनवाई जो उसे प्यारी नहीं काट रही है। ऐसी कई धारणाएं लोगों के दिमागों में घूमती लगने लगी। इसका कारण स्पष्ट करते हुए अभय कुमार ने कहा रहती हैं। कहते हैं शकुनी चिड़ियाँ छ: माह पहले भूकम्प वाले कि यह ७वीं नरक में जाने वाला जीव है। अत: वहाँ जो चीजें स्थान को छोड़कर चली जाती है। जिस बात को वैज्ञानिक कभीअच्छी लगने वाली है वे अभी से अच्छी लगने लगी है। कभी तो एक दिन पहले भी नहीं जान पाते। हमने भी दिल्ली में शास्त्रकार भी कहते हैं कि जिस गति में जो जानेवाला है, उस कुछ सेकेण्ड का चला भयंकर भूकम्प से हिलते मकानों का सम्बन्धी आनुपूर्वी का उदय यहीं पर होने लग जाता है। जाने से अनुभव किया था। शकुन विचार सही है या नहीं, यह स्वतन्त्र पहले गति के अनुरूप ही उसकी विचार-धारा भी बन जाती है। रूप से समीक्षा का विषय है। भड्डरी द्वारा प्रचलित शकुन पर जो उसकी होने वाली गति का संकेत देती है। लोगों का भारी विश्वास देखा जाता है। जैसा कि कहा गया हैकई बार पुराने व्यक्ति छींकने, खांसने, उबासी लेने से भी गौन समे जो अपशकुन, ते आवत सुखदाय। सम्बन्धित फलाफल का विचार करने लगते हैं। उनका मानना है गौन समे जो शुभ शकुन, फर पैठत दुःखदाय।। कि जो छींक, सर्दी, जुखाम या किसी बीमारी के कारण न आकर शकुन शुभाशुभ जानि निकट, हो हितो निकट कल। अगर सहज में आई है इसके पीछे भी कोई कारण है क्योंकि बिना दूर सो दूर बखान, कहे भड्डरी सहदेवल।। कारण कोई काम नहीं होता। इसलिए छींक भी बहुत कुछ स्पष्ट अर्थात् अंगार, शंख, लकड़ियाँ, रस्सी, कर्दमा, खल, करती बतलाती है। अनुभवी लोग यों कहते पाए जाते हैं। __ कपास, तुष, हड्डी, केश, यवधान्य, कूड़ा-करकट, तृण, छाछ, ० अष्टदशी / 1880 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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