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(Electrode) मशीन फिट करके बैठ गया। जिस-जिस समय पर इन्द्रों के वन्दनीय हैं इनकी समृद्धि का क्या कहना, तब उत्पल नीचे वाले वैज्ञानिकों ने चूहों को मारा, ठीक उसी समय पर को समझ में आया। इन्द्र ने उसे सन्तुष्ट किया। इसी प्रकार चुहिया माँ का दिल हिला ओर मशीन से उसके संकेत रूप ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के पद्मरेख का भी वर्णन आता है। जिसे ग्राफ्स बनते चले गए। जो कि चुहिया के भीतरी संकेतों को देखकर एक ब्राह्मण ने अनुमान लगा लिया था कि यह व्यक्ति स्पष्ट कर रहे थे।
भविष्य में निश्चय ही चक्रवर्ती बनेगा। इसलिए उसने अपनी स्वर विज्ञान से भी बाहरी स्थिति को समझा जा सकता है।
कन्या की उसके साथ शादी कर दी। इस प्रकार रेखाएं भी चन्द्रस्वर में नाक से श्वांस बाएं चलेगा। ऐसा कहा जाता है कि भीतरी जीवन को कुछ अंशों में स्पष्ट करती है। लेकिन रेखा चन्द्रस्वर चल रहा हो तो सभी कामों, बाहर जाने आदि में विज्ञान भी सही हो तब ना। लोग तो मस्तिष्क की रेखाओं को सफलता का संकेत देता है। सूर्यस्वर के चलते विद्या-विवाद,
देखकर ही बहुत कुछ समझ जाते हैं। हर रेखा मस्तिष्क की विघ्न, अशान्ति आदि कार्यों के जीतने में सहयोग मिल सकता
उसके २० वर्ष के उम्र की प्रतीक बतलाते हैं। जितनी रेखाएं है। रात्रि में चन्द्रस्वर और दिन में सर्यस्वर सही माना जाता है। मस्तिष्क पर उभरेगी उतने २०-२० वर्ष जुड़ जाते हैं। मस्तिष्क चन्द्रस्वर में पूर्व उत्तर दिशा में जाना वर्जित है। सूर्यस्वर में
रेखाओं के बारे में कहते हैं कि जिसके एकदम सीधी रेखाएं हो दक्षिण पश्चिम में जाना वर्जित है। यदि कृष्ण पक्ष चल रहा हो उसे तत्पर बुद्धिवाला और ईमानदार समझा जाता है। अधूरी रेखा तो सोम, बुध बृहस्पति को दिन में चन्द्रस्वर और मंगल, शनि
वाले को अस्थिर, चापलूस समझा जाता है। छोटी-छोटी रेखाएं को रात में भी सूर्य स्वर सही माना जाता है। ये दोनों स्वर साथ।
व्यापार आदि में असफलता की प्रतीक हैं। रेखा में आने वाला चलते हो तो कोई भी अच्छा काम करना मना किया है। ऐसा ।
क्रास दुखदायी मृत्यु का सूचक है। प्लस निशान मिलनसार का भी बतलाया जाता है कि यदि स्वर के अनसार दिन नहीं है और सूचक है। एक में से एक रेखा का निकलना साहसहीन. ढलकाम करना जरूरी है तो जिस तरफ का सुर चल रहा है, उस मुलनाति का पारचायक ह आर रखा ऊचा-नाचा चलता हा वह तरफ से पैर से साढ़े तीन कदम चलो। चन्द्र स्वर में बाएं से उस व्यक्ति की समृद्धिशालिता की परिचायक है। इसी प्रकार सूर्यस्वर में दाएं से साढ़े तीन कदम पैर वैसे ही चलने पर भी
हाथ में भी जीवन रेखा, भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा सही हो सकता है। यद्यपि अच्छा या बुरा निश्चय में तो आदमी
आदि होती है। रेखा विज्ञान बहुत विस्तृत एवं गंभीर है। जिसको के शुभाशुभ कर्म के उदय पर निर्भर है फिर भी इन संकेतों का
स्पष्ट एवं प्रामाणिक रूप में जानना आज के युग में बहुत अपनी जगह महत्वपूर्ण स्थान है। स्वर विज्ञान की तरह बाहरी मुश्किल है। आकार के रूप में रेखाएं भी है जो उसकी भीतरी स्थिति को मृत्यु निकट है या दूर इस बात की जानकारी भी व्यक्ति के स्पष्ट करती है। जैन शास्त्रों में बताया गया है कि तीर्थंकरों के बाहरी चिह्नों से की जा सकती है। स्थानांग सूत्र के पांचवें ठाणे शरीर पर १०८ उत्तम लक्षण होते हैं। शंख, कमल, गदा, में कौन आत्मा, शरीर के किस अंग से निकलकर कहाँ जाती स्वस्तिक कलश आदि जो उनके तीर्थंकरत्व को स्पष्ट करते हैं। है। यह बतलाया है। नाक, कान, आँख मस्तिष्क आदि ग्रीगिर्दन पैर में पद्म रेख होती है।
के ऊपर से जिसका प्राण निकलता है उसके लिए देवलोक गमन एक बार भगवान महावीर कहीं जा रहे थे। उनके नंगे पैर बतलाया है। गर्दन के नीचे छाती, पीठ, नाक से श्वांस निकलने मिट्टी में पड़ने से मिट्टी में पद्म रेख अंकित हो गई थी। उत्पल
___ पर मनुष्य गति में जाना बतलाया है। नाभि के नीचे घुटने तक में नाम के नेमितिक ने अनुमान लगाया कि यहाँ से जाने वाला
से किसी भी अंग से श्वांस निकलने पर तिर्यंच गति में जाना निश्चित ही कोई महासमृद्धिशाली चक्रवर्ती होगा। मैं जाऊँ और
बतलाया है। घुटने में पैर आदि से प्राण निकल जाय तो नरकगति उनसे कुछ न कुछ दक्षिणा प्राप्त करूँ। किन्तु जब वह आगे बढ़ा
में जाता है। जो आत्म-प्रदेश शरीर के सारे अंगों से निकलते हैं तो वहाँ एकदम अकिंचन भगवान महावीर को ध्यान करते ह तब उसका मोक्ष होना बतलाया गया है। इसकी जानकारी पाया। उसे देखकर विचार आया कि यह क्या बात हुई। ऐसी अनुभवी व्यक्ति बाहरी श्वांस को देखकर लगा सकता है। पद्म रेखा और फिर यह भिखारी हो नहीं सकता। लगता है कुछ लोग शरीर के बाहरी चिह्नों को देखकर उसकी मृत्यु शास्त्र झूठे हैं। नैमितिक खिन्न होकर अपने शास्त्र नदी में बहाने का अन्दाज भी लगाते हैं। स्वयं को स्वयं की भौंहे, नाक का की तैयारी करने लगा। इतने में प्रभु की वन्दना करने के लिए अग्रभाग जिह्वा का अग्रभाग दिखलाई न दे तो दो दिन में मृत्यु इन्द्र आया। उसने उत्पल को समझाया कि तुम्हारे शास्त्र गलत होने का संकेत मिलता है। स्नान करने के बाद सारा शरीर भीगा नहीं है। यह तो चक्रवर्तियों के भी स्वामी हैं और स्वर्ग के ६४ और यदि मुंह पहले सूख जाय तो १५ दिन में उसकी मृत्यु
० अष्टदशी / 1870
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