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बाबूलाल माली 'विषपायी'
भूमिका को गौण कर उसे घर की जिम्मेदारी और वंश विकास की जिम्मेदारी से लाद दिया। सनातन धर्म में स्त्री के संपूर्ण जीवन पर पहरा लगा दिया। बाल्य-अवस्था में माता-पिता की देख-रेख, शादी होने पर पति की देख-रेख, विधवा होने पर पुत्र की देखरेख या सास-ससुर की देख-रेख में शरण दी गई। उसमें जेवरों की भूख जगाई गई। कान और नाक फोड़ कर गहने पहनाये गये। उसके हाथ, पाँव और कमर भी बाँध दिये गये। उसको कम उम्र में ही शादी के बंधन में बाँधा गया। वह गोदान की तरह दहेज, दान की वस्तु बना दी गई। इस्लाम में भी कमोवेश यही स्थिति है। वहाँ तो तलाक-तलाक-तलाक बोलने मात्र से स्त्री बेसहारा हो जाती है। वहाँ तो हिन्दुओं के बजाय पर्दा और भी सख्त है। इस्लाम में औरत को इतने सख्त पर्दे में क्यों रखा गया? इस्लाम धर्म का उदय रेगिस्तान में हुआ। आज भले ही अरब मुल्कों में चमचमाती सड़कें, फाईव स्टार होटलें, स्टेडियम, एअरकंडीशन बिल्डिंग हैं परन्तु सिर्फ १०० वर्ष तक वे बहुओं की तरह रहते थे। रेगिस्तान में जब रेत के अंधड़ चला करते थे। उस उड़ती हुई बालूरेत से शरीर को बचाने के लिए लबादा पहनना जरुरी था एवं अरब मुल्कों के निवासियों (औरत मर्द) दोनों ने लबादे
पहने जो परंपरा आज भी चल रही है। राष्ट्रपति पद की भावी उम्मीदवार श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पुरुष ने पर्दे के संबंध में क्या बोल दिया जैसे बर्र के छत्ते में हाथ डाल
अपने शारीरिक बल की श्रेष्ठता के आधार पर स्त्री को अपनी दिया हो। राजपूतों की रानी-महारानियाँ सख्त पर्दे में रहती थीं।
अमूल्य संपत्ति, धन मान लिया। उसकी हिफाजत करना अपना उनके इस पर्दे में रहने का कारण उन्होंने एक जाति विशेष का
दायित्व मान लिया और एक आत्मा व शरीर की बजाय संपत्ति नाम लिया। मुझे लगा वे कोई बुद्धिजीवी महिला नहीं हैं। वे
हो गई। उसके दिल, दिमाग, भावना और विचार पर पुरुष ने अधकचरी राजनीतिज्ञ हैं। राजनेताओं की तरह बयान था,
कब्जा जमा लिया। यह कब्जा अधिकार, अंकुश कोई सौ पाँच अतएव स्वाभाविक था कि इस बयान पर आरोप प्रत्यारोप लगने
सौ साल का नहीं होकर हजारों साल का है। औरत के दिमाग ही थे और लगे भी हैं। प्रथमे ग्राक्षे मक्षिकापात....।
से ही यह निकल गया या निकाल दिया गया कि उसकी कोई पर्दा प्रथा ठीक-ठीक कब प्रारम्भ हुई, यह शोध का विषय स्वतंत्र अस्मिता/हस्ती है। वह तो पुरुष इच्छाओं की मात्र है। परन्तु मानव का आदि अवस्था में जब वह गुफाओं में रहता कठपतली है। जिसने भी तनिक विरोध किया तो उसको
और कच्चा माँस खाता था, फल फूल खाता था, तब कपड़े का लाँछित/प्रताड़ित करके आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया। आविष्कार नहीं हुआ। आदम और हव्वा की तरह स्वतंत्र विचरते अतएव जब वह एक पूँजी/धन/मनी के रूप में पूर्णत: परिवर्तित थे। धीरे-धीरे विकास हुआ। मनुष्य कबीलों में रहने लगा। हो गयी तो उसकी हिफाजत/सुरक्षा भी जरूरी हो गई। सबसे इतिहास के अनुसार पूर्व में 'मातृसत्तात्मक' (मेटरनल) राज्य था पहले उसे घर में ही कैद किया गया फिर उस पर ड्रेस कोड लागू जिसमें स्त्री का निर्णय प्रमुख होता था। स्त्री ही सारी व्यवस्था किये गये ताकि उस संपत्ति को कोई चुरा न ले, लूट न ले। संभालती थी फिर स्थिति में परिवर्तन हुआ और तमाम शक्ति उसका चेहरा भी ढका गया और इसे स्त्री की लज्जा/शालीनता/ स्त्री से पुरुष ने ले ली, जिसे 'पितृ सत्तात्मक' युग कहा जाता सभ्यता से जोड़ा गया। है, जो आज भी चल ही रहा है।
जब खैबर और बोलन के दरों से लूटेरे आने लगे तब पूरे पितृ सत्तात्मक युग में स्त्री पुरुष की गुलाम हो गयी। जब देश में शासक राजपूत ही थे। लूटेरों का उद्देश्य इस सोने की धर्मों का उदय व विकास हुआ उन्होंने समाज रचना में स्त्री की चिडिया को लटना था। इस सोने की चिड़िया में भौतिक हीरे
० अष्टदशी / 1620
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