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जानकी नारायण श्रीमाली
किया था। मरुस्थल में विनशन किस जगह स्थित था - इसकी अभी खोज हो रही है। इस प्रकार मरुस्थल सरस्वती की क्रीड़ास्थली के साथ ही विलुप्त होने की स्थली भी है। सरस्वती के पुन: प्रवाह की योजना अब प्रारंभ हो चुकी है। ऋग्वेद और सरस्वती - वैसे तो समस्त नैतिक साहित्य में सरस्वती का उल्लेख मिलता है किन्तु सरस्वती ऋग्वैदिक युग की सबसे प्रिय और प्रशंसित नदी थी। ऋग्वेद में इसे अंबीतमें, नदीतमे और सिन्धु मातर: कहा गया है। सरस्वती ३२ मंत्रों की अधिष्ठाता देवता है। वेद में उषा के बाद सरस्वती मंत्रों का माधुर्य है। इसे नदी और देवी दोनों रूपों में वर्णित किया गया है। इसे शत्रुनाशिनी और रक्षा करने वाली माना गया है। यह दिव्य और पार्थिव अन्नों को देने वाली है। यह यज्ञ से वर्षा दिलाती है। यहां दूध और घृत की बहुलता थी और खूब पशुधन था। यह सप्त-स्वसा अर्थात सात बहिनों (सहायक नदियों) वाली कही गई है। सरस्वती का जल रत्नों को धारण करने वाला है। यहां के निवासी मित्र-भाव से रहने वाले हैं। यह 'नदीनां शुचिः'
है। इसके प्रवाह क्षेत्र में ७ प्रकार की धातुएं पाई जाती थीं। सरस्वती की गोद में बसी मरु
इसकी प्रशस्ति में कहा गया है - . संस्कृति अम्बितमे नदीतमे देवीतमे सरस्वती
अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तितम्ब नमरस्कृधि । ऋ:२/४१/१६ भारत सृष्टि का आदि राष्ट्र है। राष्ट्र शब्द की अवधारणा मातृरूप में सर्वप्रथम भारत के लिए ही हुई है। भारत की संस्कृति
लुप्त सरस्वती - कालान्तर में यह महानदी लुप्त हो गई। का आधार धर्म रहा है। वेद प्रतिपादित सत्य और सनातन शाश्वत
अंतिम बार महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज बलदेव जी जीवन मूल्यों से अभिप्रेरित इस दिव्य वसुन्धरा के पुत्रों ने अपनी
द्वारा सरस्वती की यात्रा का उल्लेख प्राप्त होता है। जनजीवन जीवन शक्ति प्रकृति से प्राप्त की है। सौभाग्य से सरस्वती महानदी
में गंगा-यमुना-सरस्वती छाई हुई है। किन्तु वह लुप्त है।
सरस्वती के तटवर्ती क्षेत्रों में आर्य बसते थे। वहीं पर वेदों के के रूप में आर्यावर्त को आधारभूत संजीवनी-शक्ति युग-युग में प्राप्त रही। पुण्यशालिनी सरस्वती नदी के तटों पर मानव संस्कृति
दर्शन हुए। यह भारतीय मान्यता सरस्वती के लुप्त हो जाने से
विश्व स्वीकार्य नहीं हो पा रही थी। इस कारण आर्य आक्रमण का प्रथम प्रस्फुटन हुआ। यह प्रस्फुटन विश्व और मानव इतिहास
का पश्चिमी विद्वानों का सिद्धान्त विश्व मान्य हो रहा था। अत: का स्वर्ण विहान था। बीकानेर क्षेत्र परम सौभाग्यशाली है कि यह सरस्वती नदी की गोद में स्थित है। नवीन खोजों में वेदकालीन
वेद, मनुस्मृति, श्रीमद् भागवत, महाभारत और सभी पुराणों में
पाई जाने वाली सरस्वती को धरती पर भी प्रत्यक्ष प्राप्त करने सुप्रसिद्ध दशराज्ञ युद्ध के विजेता राजा सुदास की राजधानी और
के लिए बाबा साहब आपटे स्मारक समिति नागपुर ने कमर कसी भगवान ऋषभदेव की राजधानी कालीबंगा (वर्तमान हनुमानगढ़ जिले) में प्रमाणितमानी जा रही है। कालीबंगासरस्वती और हृषद्वती
और इस कार्य के लिए वैदिक सरस्वती नदी शोध प्रकल्प, नई नदियों के मध्यस्थित है। यही क्षेत्र प्राचीन चित्रांगल और अर्वाचीन ।
दिल्ली की रचना की गई। बाद में इसका कार्यालय जोधपुर कर लखी जंगल के नाम से विख्यात रहा है। इस प्रकार मरुभूमि का
दिया गया। लाडला बीकानेर क्षेत्र सरस्वती की क्रीड़ा-स्थली रहा है। सरस्वती शोध - सरस्वती नदी का उद्गम हिमालय पर्वत की
शिवालिक पर्वत श्रेणियों में माना जाता है। ये पर्वत श्रेणियां ८ सरस्वती के लुप्त होने के स्थान को विनशन कहते हैं।
से ५० कि.मी. चौड़ी और १००० मीटर ऊंची है। ये पंजाब विनशन पर महाभारत काल में बलभद्र जी ने सरस्वती में स्नान ।
से लेकर सिक्किम तक फैली हुई है। इन्हीं पहाड़ियों में अम्बाला
० अष्टदशी / 1500
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