________________
हिम्मतसिंह डूंगरवाल
भारतीय समाज में देशज संदर्भो की अपनी विशिष्टताएँ हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के साथ इन देशज संदर्भो को समझे बिना शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता है। भारतीय सन्दर्भ में विशेष रूप से समाज की जाति आधारित संरचना, स्त्रियों की उपेक्षित स्थिति एवं निर्धनतम असंगठित क्षेत्र है। व्यापक तथा गुणवत्ता युक्त शैक्षिक संदर्भो के लिए इन संदों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। भगवान महावीर की दृष्टि भी समाज के इन्हीं उपेक्षित वर्गों की तरफ गयी थी।
मैं जिस संस्था का संचालक हूँ, वह सुदूर आदिवासी अंचल में अवस्थित है। स्वतन्त्रता सेनानी मेवाड़ मालवीय पं. उदय जैन द्वारा स्थापित जवाहर विद्यापीठ, कानोड़ (युग दृष्टा क्रान्तिकारी
विचारों के धनी आचार्य १००८ श्री जवाहर लालजी महाराज शिक्षा के सामाजिक तथा नैतिक सरोकार की पुण्य स्मृति में स्थापित) में उपेक्षित, पीड़ित और वंचित
HTTRACT भगवान महावीर ने कहा था कि 'शद्र को भी धर्म करने
विद्यार्थियों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं।
मैं भगवान महावीर के बताएँ रास्ते पर अपने जीवन के सरोकारों का, शास्त्र पढ़ने का उतना ही अधिकार है जितना कि एक ब्राह्मण तथा क्षत्रिय को। धर्मसाधना में जाति की कोई महत्ता नहीं
- को विकसित कर सकू तो यह मेरे जीवन की सार्थकता होगी। है। स्त्री को भी धर्मसाधना का पूर्ण अधिकार है। नारी महज
अन्तराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया साधिका ही नहीं, अरिहन्त भी बन सकती है।
में सबसे ज्यादा बाल-मंदिर तथा सबसे ज्यादा स्कूल से वंचित
विद्यार्थी भारत में ही है। हम सभी को इन भयावह स्थितियों के यह देखना एक दिलचस्प तथा स्फूर्तिदायक अनुभव है कि मद्देनजर भविष्य की नीतियों का निर्धारण करना चाहिए। शताब्दियों पहले भगवान महावीर शिक्षा, जीवन तथा धर्म के सामाजिक एवं नैतिक सरोकार से भली-भांति परिचित थे।
सामाजिक सरोकारों का गहरा रिश्ता नैतिक सरोकारों से
है। दुख की बात है कि हमारे समाज में नैतिकता की दुहाई उन्होंने अपने इन संदेशों को अपने आचरण द्वारा जन-जन तक
केवल अनुष्ठानों में देने का चलन-सा हो गया है जिसे हमें अपने पहुँचाने का जीवन-पर्यन्त कार्य किया। दुख की बात है कि हमारे समाज एवं नियामक संस्थानों ने सामाजिक चेतना से
आचरणों में परिलक्षित करना होगा। सुबह से शाम तक जो रहित और नैतिकता बोध से परे एक ऐसे शिक्षातंत्र का विकास
जीवन गुजारा जाता है, उसमें नैतिकता वाचालता के रूप मे तो किया, जिसमें शिक्षा का उद्देश्य महज आर्थिक सरोकारों तक
उपस्थित रहती है परन्तु कर्म क्षेत्र में इसका अभाव मिलता है। सिमट गया। भारत की बहुसंख्यक आबादी आज भी शिक्षा के
हम अपना काम ईमानदारी से करें, सत्य तथा न्याय के प्रति सूरज की वास्तविक रोशनी हासिल करने में असफल है, जब
हमारी प्रतिबद्धता हमारे कर्मों में परिलक्षित हो, इसके लिए हमें कि देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो आसानी से समृद्धत्तम देशों
विशेष रूप से प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है। की शिक्षा हासिल कर सकता है। इन विरोधाभासों के पीछे उस जिन व्यक्तियों ने समाज को सुन्दर बनाने का संकल्प तार्किक दृष्टि और विराट् सपने का अभाव है, जिसमें 'बहुजन लिया, उन्होंने संकटपूर्ण क्षणों में भी अपने आत्मविश्वास को हिताय' का लक्ष्य हासिल होता है।
अडिग रखा। मनीषियों, चिन्तकों तथा धर्मनिष्ठ आत्माओं की वस्तुत: भारत में शिक्षा-परिदृश्य की असमानता चकित
जीवन दृष्टि शिक्षा के मूल्यों में सम्मिलित हों तो एक ऐसे निर्भय
समाज की प्राप्ति सहज ही सम्भव है, जहाँ लोकतान्त्रिक प्रकिया करने वाली है तथा ऐतिहासिक क्रम में भी हम उसे बहुत अधिक बदलता हुआ नहीं पाते। आजादी के पहले भी देश में अनेक ऐसे
में मनुष्यता प्राप्ति सहज है। शिक्षा यदि सामाजिक तथा नैतिक परिवार थे, जिनके बच्चे इंग्लैण्ड के महंगे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त
सरोकारों से रहित हो तो वह उत्पादन प्रक्रिया का माध्यम तो बन करते थे। दूसरी तरफ, देश के सुदूर अंचलों में लाखों बच्चे शिक्षा
सकती है परन्तु व्यक्तित्व विकास का उपादान कभी नहीं हो
सकती। शिक्षाविदों, नीति निर्मताओं तथा समाज को इस दिशा का सपना देख सकने की स्थिति में नहीं थे। आज जब दुनिया के देशों में निकटता और परस्पर आवाजाही बढ़ी है तो भारत का
में प्रयत्नशील होना ही होगा। धनाढ्य वर्ग पश्चिम के पसंदीदा मुल्क में अपने बच्चे को शिक्षा
संचालक, जवाहर विद्यापीठ, कनोड़ दिलाता है। जब कि हम चिंतित रहते हैं कि देश के हर बच्चे को
स्कूल की परिधि में लाने के लिए क्या उपक्रम करें? Jain Education International
० अष्टदशी / 1490
Famvate&Personal Use Only
www.jainelibrary.org