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________________ जिले के सिरमौर क्षेत्र से चार छोटी-छोटी नदियां निकलती हैं। सरस्वती नदी ने मैदानों में अपार मिट्टी बिछाई। आज भी ये वर्षा पर आधारित हैं। इनमें से एक का नाम है। सुरसती, यह मिट्टी खेती का आधार है। अन्य हैं - मार्कण्डा, डांगरी व घग्घर। पुरातत्व - सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग में खूब पुरातात्विक घग्घर नदी हरियाणा की वर्षा आधारित सबसे बड़ी नदी है। उत्खनन हुए हैं। इन खुदाइयों में ४० से २० हजार वर्ष पुरानी यह भी शिवालिक से निकलती है। १७५ कि.मी. की यात्रा मानव सभ्यता का पता लगा है। अब तक २६०० स्थानों पर करके घग्घर रसूला नामक स्थान पर सरस्वती से संगम करती खुदाई हो चुकी है जिनमें १९२१ में रावी तट पर हड़प्पा और है। आगे इसके प्रवाह को हकरा और नारा भी कहा जाता है। १९३३ में सिन्धु तट पर मोहेनजोदड़ो महत्वपूर्ण हैं किन्तु वर्तमान में यह जल शून्य है किन्तु इसका सूखा-प्रवाह-मार्ग इस सरस्वती-हषद्वती के मध्य स्थित कालीबंगा (जिला हनुमानगढ़) पूरे क्षेत्र में साफ-साफ दिखाई देता है। विद्वानों का मत है कि अनुपमेय है। बीकानेर संभाग का कालीबंगा सरस्वती सभ्यता यही जल शून्य दिखने वाली घग्घर नदी अतीत की सरस्वती नदी का महान केन्द्र है। रही होगी। आज भी वर्षा में घग्घर बहती है। मरु संस्कृति - हमारा वर्तमान बीकानेर संभाग (पुरानी बीकानेर विद्वानों का मत है कि हिमालय के ऊपर उठने के क्रम ने रियासत) सरस्वती सभ्यता की हृदयस्थली है। हम इस सभ्यता सरस्वती की जीवन रेखा को बाधित किया। उत्तर महाभारत के सही उत्तराधिकारी हैं। वैदिक संस्कृत काल-राजस्थानी में काल में इसमें जलाभाव होने लगा। पुराणकाल में वह ऋतु हळ, खळळ आदि में पाया जाता है। शिव और नांदिया, थूईवाली आधारित लघुरूपधारिणी पूज्य नदी बन गई। धीरे-धीरे वह गौ, गेहूं, जौ, मटर, मतीरा, तिल और खजूर आज भी यहां हैं। इतिहास के पृष्ठों में सिमट गई। ऊंट, घोड़े, खच्चर, हाथी और बिल्ली आज भी हैं। बन्दर, भू-उपग्रह अध्ययन - पुरानदी मार्ग के सहीस्वरूप को स्थापित खरगोश, कमेड़ी, तोता आज भी पाले जाते हैं। मिट्टी के बर्तन, करने में भू उपग्रह छायाचित्रों द्वारा किया गया अध्ययन बहत धातु और मूर्तियों में ४४०० वर्षों (कालीबंगा की अनुमानित उपयोगी सिद्ध हुआ। इसरो के जोधपुर केन्द्र ने अन्त:सलिला आयु) से एकरूपता विद्यमान है। वैदिक दर्शन और तत्कालीन सरस्वती का प्रवाह मार्ग ज्ञात करके उसका वैज्ञानिक स्वरूप सामाजिक रीति-रिवाज की आज भी प्रभावी उपस्थिति है। चित्र भारत के प्रधानमंत्री और राजस्थान के मुख्यमंत्री को भेंट अनुपम देन - सरस्वती समाज ने विश्व मानवता को - खेती, किया। इस प्रयास से पश्चिमी राजस्थान की जल समस्या के पशुपालन, नगरीय सभ्यता, वास्तुकला, आभूषण कला और समाधान को नवीन दिशा प्राप्त हुई। इसरो द्वारा प्रकाशित इन उच्च कोटि की सामाजिक-धार्मिक परम्पराओं का उपहार दिया मानचित्रों के अध्ययनपूर्वक अधिकारी विद्वानों ने प्रवाह क्षेत्र में है। हमें इसके उत्तराधिकारी होने पर गर्व है। १०लाख नलकूप स्थापित होने की संभावना प्रकट की है। इस ब्रह्मपुरी चौक, बीकानेर (राज.) दिशा में योजनाबद्ध कार्य जारी है जिसे गति देने से मरुस्थल फिर से हराभरा हो जाएगा। इसरो के इन चित्रों का रणनीतिक भी अद्भुत महत्व है किन्तु यहां हम इसकी चर्चा नहीं करेंगे। यहां हम इस पुरानदी मार्ग के मीठे जल की चर्चा करेंगे। राजस्थान के हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में सरस्वती नदी के दो से ढाई लाख वर्ष पुराने पुरा मार्ग मिले हैं। इन पुरामार्गो के कुओं में मीठा जल मिलता है जब कि मार्ग से दूर होते ही कुओं का पानी खारा मिलता है। सरस्वती के पुरा मार्ग में जगह-जगह झीलों और रणों का निर्माण हुआ। इनमें से एक भारत प्रसिद्ध कपिल सरोवर (जिला बीकानेर) है। ईसा से ३००० वर्ष पूर्व लूणकरनसर और डीडवाना की झीलों में मीठा पानी सागर की भांति लहराता था। Jain Education International ० अष्टदशी / 1510 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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