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________________ गौरी, गजनी, चंगेज, नादिरशाह एवं मुगलों व अंग्रेजों ने सत्य के अधीन सबको एकता के सूत्र में, सबको मानवता के भारत को दिल भरकर लूटा, तोड़ा, फोड़ा, जलाया और माता- आत्मीय सूत्र में बांधना है। जो जो दयानंद की उपेक्षा कर रहे बहनों को विवश किया, जौहर को अंजाम देने के लिए। किस हैं वे मानवता के, विश्व शांति के और विशेषकर भारत माता विदेशी की हिम्मत थी जो भारत को पराजित कर सके। इतिहास के पैरो में कुल्हाड़ी मार रहे हैं। साक्षी है कि तक्षशिला के मोफी ने पांच हजार योद्धाओं को साथ आज हम भारतीयों को, हमारी राजनैतिक पार्टियों और लेकर सिकन्दर को सहायता दी और पोरस को हराया यानि हम सामाजिक पार्टियों के भारत के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप के अनकल. ही अपनी हार के कारण हैं। दूसरी विजय मुसलमानों की है, विश्वगुरू धर्म प्रधान भारत के वैदिक स्वरूप के अनुकूल अपना जिन्हें बुलाने वाले भी हम ही हैं और अंग्रेजी की विजय का । अस्तित्व कायम करना चाहिए। जब हम विश्वगुरु थे, हैं या रहेंगे तीसरा इतिहास यह है कि कालीकट के राजा ने उन्हें टिकाया तो विश्व में क्या हम हिन्दू, मुसलमान या ईसाई बनकर मित्र और मुसलमान बादशाहों ने तो उन्हें व्यापार करने, जमीन रहेंगे? हमें तो मनर्भव का सच्चा वैदिक, सत्य सनातन संदेश खरीदने, फौज रखने और सिक्का चलाने का मौका दिया, उनका देना है और सम्पूर्ण विश्व में फैली अपवित्रता को अवैज्ञानिक, क्या बिगड़ा और हम भारतीयों ने ही अंग्रेजी फौज में नौकरी की अप्राकृतिक और अधार्मिक ग्रंथों को पवित्रता की ओर अग्रसर और अपने आपको पराजित करते रहे और आजादी के साठ करना है। उनकी गुड़ाई और सर्जरी करनी है बिना सर्जरी के साल की अवधि में हमने ही अपनी संस्कृति और मानवता की बिना संघर्ष के पाप का, आतंक का भंडा नहीं फूटेगा। हत्या कर दी। जो काम मुगल और अंग्रेज नहीं कर सके वह नीमच (म.प्र.) काम अपने ही चुने हुए हिन्दू प्रतिनिधियों ने कर दिखाया। एक तलवार से एक गाय कटती थी, तो हमने यांत्रिक कत्ल कारखाने खुलवाकर एक बटन दबाने से हजारों गायें कटवाना शुरू कर दी। अतिक्रमण, रिश्वत और भ्रष्ट आचरण से आदमी शर्माता था और अब खुले आम मंगतों भिखारियों की तरह मुंह से ऐसे मांग रहे हैं जैसे अवैध वसूली करना उसके डाकू पूर्वजों द्वारा दिया गया जन्म सिद्ध अधिकार है। हमारी राजनैतिक और सामाजिक पार्टियां या राष्ट्रीय संगठन आज भी फूट रोग से ग्रस्त हैं। भूमण्डलीकरण के विकसित और वैज्ञानिक युग में आज भी हम देशकाल परिस्थिति के अनुकूल अपनी विश्वव्यापी नीति या यूं कहूं, मानवीय दृष्टि नहीं पैदा कर पा रहे हैं और ना ही सरकार सबूत दे पा रही है कि वह शासन कर रही है या राम भरोसे गाड़ी चला रही है। जब हमारे ही अपने नहीं हैं तो पराया हमारा क्यों होगा? या यूं कहें कि विदेशी मिट्टी, शक्कर के भाव बिक रही है और हमारी अमूल्य वस्तु को न तो हम प्रचारित कर रहे हैं और ना ही कोई पूछ रहा है। जैसे विदेशियों ने बौद्धिक प्रदूषण फैलाया। वेदों के खिलाफ विष उगला, हमारे ग्रंथों में मिलावट की और आज भी वनवासी और गरीब क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन कर रहे हैं और उनका समर्थन भी हमारी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारें कर रही हैं, जबकि अब उनके पवित्र ग्रंथ बाईबिल को हांगकांग की जनता अपवित्र घोषित करने की घोषणा कर रही है। महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के २३वें अध्याय में बाईबल के कुछ अंशों को उद्धृत करते हुए, उन्हें बुद्धि, तर्क, विवेक और सत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरने का सिद्ध किया है और १४वें अध्याय में पवित्र कुरान और अन्य मुस्लिम ग्रंथों की समीक्षा की है। उनका उद्देश्य मानव मात्र को सत्य बताकर, 0 अष्टदशी / 1340 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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