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पहले हम आर्यावर्तीय,
तो केवल उत्तर भारत की भाषा थी और हिन्दू भारत के मूल अर्जुनलाल नरेला
निवासी नहीं है। ये तो कहीं बाहर से आए और सिंधु से हिन्दू हो गये और मध्य भारत व दक्षिण का क्षेत्र हिन्दुस्तान की परिभाषा में नहीं आता है। फिर शुक्लाजी की बात कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दुस्तान की सीमा है, कौन मानेगा? जहां तक इंडिया शब्द का सवाल है, कहा जा सकता है कि यह शब्द अंग्रेजों की देन है। परंतु भारत तो बहुत पुराना है, जिसका करोड़ों साल का इतिहास है। ऋषभदेव, जैनियों के प्रथम तीर्थंकर और हिन्दुओं के आठवें अवतार के पुत्र का नाम भरत था जो लाखों वर्ष पूर्व हुए हैं। राजा दुष्यंत के पुत्र का नाम भी भरत था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम के भाई का नाम भी भरत था
और योगेश्वर कृष्ण ने भी, अर्जुन को भारत शब्द से संबोधित किया था अर्थात् भारत शब्द का इतिहास अतिप्राचीन है और भारत से पूर्व इसे आर्यावर्त कहा जाता था।
महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के आठवें समुल्लास में मनुस्मृति के रचियता महर्षि मनु को उद्धृत करते हुए आर्यावर्त की अवधि लिखते हुए कहा है कि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विंध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र तथा सरस्वती पश्चिम में
अटक नदी, पूर्व में हृषद्वती जो नेपाल के पूर्व भाग पहाड़ से
निकलकर बंगाल के, आसाम के पूर्व और ब्रह्मा के पश्चिम ओर भारतीय गरीब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जबलपुर निवासी
होकर दक्षिण के समुद्र में मिली है, जिसको ब्रह्मपुत्रा कहते हैं स्टेनली लुईस ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर प्रार्थना
और जो उत्तरं के पहाड़ों से निकल के दक्षिण के समुद्र की खाड़ी की है कि देश को भारत इंडिया नहीं अपितु हिन्दुस्तान शब्द से
में अटक में मिली है। हिमालय की मध्य रेखा से दक्षिण और संबोधित करते तथा लिखने के आदेश दिए जायें। सुप्रीम कोर्ट
पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विंध्याचल के भीतर जितने ने याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली है। याचिकाकर्ता के
देश हैं, उन सबको आर्यावर्त्त इसलिये कहते हैं कि यह देश अधिवक्ता अशोक शुक्ला ने बताया कि कश्मीर से कन्याकुमारी
विद्वानों ने बसाया है और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त तक यह देश हिन्दुस्तान के नाम से जाना जाता है, जो कि
कहलाता है। सम्पूर्ण विश्व में सबसे पहले मानव की सृष्टि कालांतर से है किंतु अंग्रेजों ने इसे भारत, इंडिया कर दिया। तिब्बत और हिमालय क्षेत्र में हुई। यहीं से मानव भारत में हरिद्वार
भा.ग.पा. के अध्यक्ष स्वयं विदेशी मूल के लगते हैं और के रास्ते आया और बसता बढ़ता चला गया। इसीलिए कहते हैं उनकी पार्टी गरीबों की पार्टी हो सकती है, परंतु वे स्वयं और कि भारत ही, आर्यों का कालांतर में हिन्दुओं का मूल देश था, भारतीय मूल के उनके वकील श्री शुक्ला भी, मस्तिष्क से गरीब है और रहेगा। आर्य बाहर से नहीं आये और ना ही द्रविड़ों पर ही लगते हैं। याद रहे हिन्दू और हिन्दुस्तान दोनों ही की आयु हमला किया। आर्य और द्रविड़ गुणवाचक हैं, जातिवाचक नहीं। करीब १०००-१२०० साल से अधिक नहीं है। यदि किसी ऋषि दयानन्द कहते थे और लिख भी गये हैं कि जितने भूगोल भी इतिहासज्ञ को मालूम हो तो अवश्य प्रकाश डालकर में देश हैं वे सब इसी देश की प्रशंसा करते और आशा रखते अनुगृहित करें। यदि सु. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की बात मान ली हैं कि पारसमणि पत्थर सुना जाता है वह बात तो झूठी है, परंतु या भा.ग.पा. के सदस्यों ने हिन्दुस्तान विषय पर ही बोलना जारी आर्यावर्त देश ही सच्चा पारसमणि है कि जिसको लोहे रूप दरिद्र रखा या गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं, बोलने वालों ने भी इनकी हाँ विदेशी छूने के साथ ही सुवर्ण अर्थात मालदार हो जाते हैं और में हाँ मिलाना शुरू की तो फिर कोई मैकाले, हम भारतवासियों सष्टि से लेकर महाभारत काल तक आर्यों यानि सज्जन पुरूषों को पुनः कहेगा कि हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द तो केवल उत्तर का सार्वभौम चक्रवर्ती राज्य था। भारत के लिए प्रयुक्त होता था और हिन्दी भाषा या खड़ी बोली
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