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________________ जतनलाल रामपुरिया, एडवोकेट पूर्व का-९ जुलाई २००५ का The Telegraph समाचार पत्र हाथ में आया। सम्पादकीय के नीचे SCRIPTS में Stephen Harold Spender के इस उद्धरण को मैंने पढ़ा But reading is not idleness... it is passive, receptive side of civilization without which the active and creative world be meaningless. It is immortal spirit of the dead realised within the bodies of the living. इसे पढ़कर मुझे अपनी किशोरावस्था और स्कूल के दिन याद आए। दशवीं कक्षा तक सुजानगढ़ (राजस्थान) में पढ़ा था। वार्षिक परीक्षा के बाद दो महीने का ग्रीष्मावकाश होता। 'Idleness' की ही मन:स्थिति के साथ उन छुट्टियों में मैंने प्रेमचंद का पूरा साहित्य, जयशंकर प्रसाद का 'कंकाल' और 'चंद्रगुप्त मौर्य', क.मा. मुंशी का 'जय सोमनाथ', आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की 'बाणभट्ट की आत्मकथा' एवं सेक्सटन ब्लेक सीरीज के कुछ जासूसी उपन्यास पढ़े। साथ ही टॉलस्टाय, चेखव और मैक्सिम गोर्की की कुछ कहानियाँ भी। सन् १९५५ में कलकत्ता आया। सन् २००५ के इस मई महीने के साथ पूरे हुए इन पचास वर्षों में, पढ़ने का शौक होते हुए भी, जो पढ़ सका दैनिक जीवन में कुछ बातें बड़े सहज रूप से सामने आती वह केवल इतना-सा ही है - काव्य कृतियों में प्रसाद की 'आँसू' हैं - इतने सहज रूप से कि उस पर ध्यान नहीं जाता। What और 'कामायनी', मैथिलीशरण गुप्त की 'साकेत', is the life that full of care, we have not time to कन्हैयालालजी सेठिया की 'निष्पत्ति' और 'हेमाणी', आचार्य stand and state - नवमी कक्षा के मेरे पाठ्यक्रम की एक महाप्रज्ञ की 'ऋषभायण' और गद्य साहित्य में आचार्य महाप्रज्ञ कविता की इन प्रारंभिक पंक्तियों में चित्रित, यंत्र युग की व्यस्तता का 'चित्त और मन', शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय का 'गृहदाह', में व्यस्त जीवन की विवशता भी बहुत बार चीजों को अनदेखा, टॉल्स्टाय का 'अन्ना कारेनिना', देवकीनंदन खत्री का 'मृत्यु अनसुना करने का कारण बनती है। बाद में घटी घटनाएँ अथवा किरण' व 'रक्त मंडल' और सर आर्थर कोनन डोयल का पूरा समय का अन्तराल उनकी गंभीरता का बोध कराता है, ठीक वैसे कथा-साहित्य। इनके अतिरिक्त गांधी वाङ्मय और पत्रही जैसे कहीं चोट लगने के एक-दो दिन बाद उनकी पीड़ा का पत्रिकाओं में प्रकाशित कुछ मनन योग्य सामग्री पर भी यदाकदा अनुभव होता है। कभी-कभी, भाग्योदय की वेला में, हमारे पास दृष्टि पड़ी। बस यही। समय होता है to stand and stare| मनन चिंतन के लिए Idieness के मनोभावों या मनोरंजन की दृष्टि से पढी अवकाश के ऐसे क्षणों में भी वे बातें बालसखा-सी बिना पूछे गिनती की कुछ पुस्तकें विचारों को वह पुष्टता प्रदान नहीं करती अचानक आकर गले में बाहें डाले कुछ फुसफुसाती-सी अपना जा क्रमबद्ध आर लक्ष्यप्रारत अध्ययन स प्राप्त. हाता ह, प अर्थ बतलाती हैं। अवचेतन मन से चेतन मन में स्थानांतरित स्टीफेन हेरोल्ड स्पेन्डर के उक्त उद्धरण ने, अब तक जो थोडाहोकर वे फिर अनवरत विचारों को झकझोरती रहती हैं। मन में बहुत मैंने पढ़ा था उसके संचित प्रभाव (cumulative effect) उनकी व्याख्या करने की, उनकी संबद्धता खोजने की विकलता। को मेरे मस्तिष्क में जैसे एक साथ ही जीवित कर दिया और होती है, परन्तु दूसरे छोर पर वे उतने ही तीखेपन से व्याख्यातीत- जिस संदर्भ में मैंने इन पंक्तियों को लिखना प्रारम्भ किया था. सी होने का आभास देती रहती हैं। उसे किंचित विस्तार देने के लिए विवश भी। __ अपने कुछ ऐसे ही अनुभवों के बारे में मैं बहुत दिनों से It is immortal spirit of the dead realised within the लिखने का सोच रहा था, पर वही कठिनाई मुझे घेरे रही, जिसका bodies of the living - इस पंक्ति के भावों ने पन्द्रह वर्ष की उल्लेख मैंने ऊपर किया है। जो भावगत रहा उसे शब्दगत करने अवस्था में पढ़ी, हिन्दी की प्रतिनिधि पुस्तकों में एक, आचार्य का सिरा जैसे मैं पकड़ नहीं पा रहा था। आज अचानक दो माह हजारीप्रसाद द्विवेदी की उक्त कृति 'बाणभट्ट की आत्मकथा' को ० अष्टदशी / 1350 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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