SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार दिया है। न चाहते हुए भी शिक्षक व बालकों को अगले पृष्ठ का तो था ही। देखा आपने माध्यम व अभिव्यक्ति का पीरियड में लगना पड़ता है। कालांश पद्धति का एक बड़ा दुर्गुण चमत्कार। यह भी है कि बालक भावनात्मक दृष्टि से किसी भी शिक्षक से स्वामी विवेकानन्दजी ने लिखा है (पुस्तक-शिक्षा) नहीं जुड़ पाता है। उसके लिए तो वे सब विषय शिक्षिक "मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा (Subject Teacher) हैं। जबकि इन्हीं में से उस को दीदी, ताई है।" जन्मजात व वातावरण से प्राप्त शक्तियों का कैसे होगा या मौसी चाहिये किसका जब चाहे पल्लू पकड़कर मन की बात । सुन्दर विकास। कैसे हो जायेगी अभिव्यक्ति? कर सके। ___ आइए, विचार करें हम पालक, शिक्षक व यह शिक्षण दूसरे- बच्चों के नैसर्गिक स्वस्थ विकास में बाधक बनता व्यवस्था। हम क्या चाहते हैं? क्या कर रहे है? और क्या है पहले से तय शुदा दैनिक पाठ्यक्रम। शिक्षक को अपने पाएंगे? पा सकेंगे, बुद्धि व भावना से पूर्ण सुविकसित इन्सान। कालांश में आना है और पहले से तैयार पाठ पढ़ाना है। उसके एक सुसंस्कृत, अनुशासित व प्रसन्नचित्त समाज। पास इसके लिए कोई गुंजाइश नहीं है कि उसके बच्चे आज क्या अभी तक हमारी सारी कथा व्यथा हुई, बच्चे के स्वास्थ्य, जानना चाहते हैं, क्या करना या पढ़ने की इच्छा है, आज शिक्षण व्यवस्था और उसकी दशा पर। अब हम चले घर वातावरण को देखते हुए उनकी उत्सुकता किसमें है? शिक्षक को परिवार में जहां बच्चा पैदा होता है, आंखें खोलता है, किलकारी मासिक, त्रैमासिक वार्षिक विभाजन के अनुसार पाठ्यक्रम पूरा करता है, तुतलाता है, बोलना चहता है-म म म मां मां ब बा, कराने से मतलब है। अमेरिकन शिक्षाशास्त्री जान हाल्ट ने अपनी द द दा। आस पास की वस्तुओं से परिचित होना चाहता है, पुस्तक "बच्चे असफल कैसे होते हैं?'' में विस्तार से प्रकाश उनके नाम जानना-बोलना चाहता है हम सबको बोलते देखकर। डाला है। और हम बड़ा प्यार दिखाते हुए बताते हैं मा मम्मी पापा, एप्पल, तीसरा- बालक की शिक्षा में माध्यम का अति महत्वपूर्ण आंटी, अंकल। थोड़ा और आगे बढ़ें तो टीचर, मेडम, फादर। स्थान है। प्राथमिक स्तर तक हर हालत में शिक्षा का माध्यम । यह सब बताते, रटाते हुए हम अपने बच्चे के प्रति बड़े गौरवपूर्ण बालक की मातृभाषा होना चाहिये। सभी शिक्षा-शास्त्रियों ने उत्तरदायित्व निर्वहन की अनुभूति करते हैं। मा, दादा, बहिन, इसकी अनिवार्यता बताई है। अरे, किस भाषा में बालक ने शिशु ताई, गुरुजी ये सब तो पिछड़े लोगों के सम्बोधन हो गये। अवस्था में ही रोना, गाना, गुनगुनाना सीखा है। जिस भाषा में वह बच्चा कुछ माह का ही हुआ और कच्छी पहनाना घर में वे सारी बातें करता है, आनन्दित होता है। स्कूल में जाते अनिवार्य कर दिया। साल डेढ़ साल का बच्चा कहीं बिना कच्छी ही सब छूट जाते हैं और सौतेली मां अंग्रेजी माध्यम उसकी झोली सामने आ गया। माता-पिता शेम कहते उसे जबरन कच्छी में डाल दिया जाता है। अभिव्यक्ति की शिक्षा का लक्ष्य होता पहनाने दौड़ पड़ते हैं। बच्चा मस्ती में रहना चाहता, खुला घूमना, है जिस बालक की अभिव्यक्ति शक्ति जितनी पुष्ट होगी उसका कूदना, फांदना चाहता है। हम उससे वह सब छीन लेते हैं। सर्वांगीण विकास उतना ही उत्तम होगा। तारीफ की बात यह है कि हम अविवेकी होकर बच्चे पर यह साठ के दशक की बात है। मैं बालनिकेतन जोधपुर में सब लाद रहे हैं। जर्मनी के प्रोफेसर जुस्ट ने अपनी पुस्तक रिटर्न कक्षा ४ का अध्यापक था। एक दिन की बात है कि हिन्दी में टू नेचर में लिखा है कि बच्चे को ५ साल की उम्र तक नंगा अपनी पूर्व निश्चित पाठ्य सामग्री लाया था। अचानक बादल घूमना चाहिये उसे पुष्ट होने दें, निकर न पहनायें। छाने लगे। हल्की बूंदें भी पड़ने लगी। वारिश का मौसम था ही। मेरा पोता जब डेढ़ दो साल का रहा होगा, नंगा खेलता, बच्चे वर्षा व बादलों सम्बन्धी चर्चा करने लगे मैंने रोका नहीं, घूमता रहता था। उसकी मां ने मुझे लाचारी भाषा में कहा "यह प्रोत्साहित किया। कुछ मिनटों बाद अचानक मैंने उनसे कहा बच्चा चड्डी नहीं पहन रहा है। मैने कहा मत पहनने दो, घूमने दो 'आप वर्षा ऋतु पर निबंध लिखना चाहेंगे।' सबने बड़े उल्लास ऐसे ही। फिर मां ने कहा “अच्छा नहीं लगता और उसकी ऐसी के साथ हां भर दी। मैंने कहा- “आज की विशेषता यह होगी आदत पड़ जायेगी।" मैने कहा "डरो नहीं, जब समय आयेगा, कि आज समय कितना भी लगे, हर बालक, बालिका विस्तार वह अपने आप पहनने लगेगा।" और समयानुसार वह अपने से अपने विचार प्रकट करे।" एक कक्षा एक शिक्षकवाली आप पहनने लग गया। व्यवस्था होने से कालांश व शिक्षक बदलने की कोई बरसते पानी में मेरा पोता ६-७ का था तब नहाना चाहता आवश्यकता नहीं थी। आज ५० वर्ष बाद भी मुझे उस सरिता है। मैं, हां भर देता हूँ। हर साल बरसात में वह ४-५ बार तो नहाता का चेहरा याद है जिसने अपनी कापी के १४ पृष्ठ भरे थे। इस ही है। उसकी मां कहती है। सर्दी लग जायेगी। पर कभी नहीं लगी। लेख में पुनरावृत्ति के अंश काट भी दिये फिर भी १० या ११ ● अष्टदशी / 1220 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy