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________________ बच्चे को ढीले हल्के खुले खुले वस्त्र पहनाना चाहिए। वे चाहते भी यही हैं। हम हैं जो उस पर जबरन टाई, बेल्ट, जूते, मौजे, पेंट लाद देते हैं। क्या सराहना की जाय बच्चों के हितैषी होने का दम्भ पाले हुए इन अभिभावकों की और उनके ज्ञान की। अतः अन्त में मेरा आग्रह यही है कि हम बच्चे को प्रसन्नचित्त, सुसंस्कारी, सुशिक्षित बनाने की ओर ध्यान दें। आवश्यकतानुसार बालक की वृत्तियों उसकी महान क्षमताओं के विकास सम्बन्धी बालमनोविज्ञान व बाल शिक्षा साहित्य का अध्ययन भी करें और अपने प्रिय लाड़ले को विकास पथ पर आगे बढ़ने में सच्चे सहयोगी बनें। हंसी और आश्चर्य की बात है कि स्कूटर चलाने वाला स्कूटर के बारे में कार चलाने वाला कार के बारे में जरुरी जानकारी रखता है पर अपने बालक की क्षमताओं और विकास प्रक्रियाओं के बारे में अक्सर कुछ नहीं जानता, न जानना चाहता है। कभी-कभी कहता हूँ कि कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि किशोर किशोरी का विवाह होने से पूर्व सुखी दाम्पत्य जीवन एवं बालक के विकास सामग्री का अध्ययन अनिवार्य किया जाये। उसके बाद ही उन्हें विवाह करने की, जीवन साथी बनाने की पात्रता दी जाए। Jain Education International नीमच (म.प्र.) ० अष्टदशी / 1230 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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