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________________ प्रतिभा गहलोत आज का समय महिलाओं के हाथ में है। नारी को अपने अस्तित्व का बोध हुआ है। शिक्षा के विकास ने नारी की बौद्धिक-चेतना के बंद दरवाजों को खोला है। भले ही नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण समय-समय पर बदले हों परन्तु उसकी नैसर्गिक विशेषताओं का महत्व हर युग में विद्यमान रहा है और स्वीकारा गया है। हमारे देश में समाज पितृ-सत्तात्मक है, इसलिये पुरुष वर्ग का प्रतिनिधित्व और प्रभुत्व है। परन्तु हम यह क्यों भूल जाते हैं कि नारी और पुरुष दोनों की स्वतंत्र सत्ता है, अपनी अस्मिता और पहचान है। एक महिला को पुरुष की जितनी जरुरत है उतनी ही जरुरत पुरुष को महिला की है। क्योंकि वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। धरती पर उगे एक समान बीज के दो पौधे हैं एक ही माँ की सन्तान हैं फिर अबल और सबल का अंतर क्यों। शिक्षा और स्वावलम्बन के क्षेत्र में उतरने के पश्चात नारी ने अपने शाश्वत मूल्य को जाना है। शिक्षा, साहित्य, खेल, व्यवसाय सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर नारी ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं। नारी विश्व की जननी है, संस्कृति का गौरव है। एक अच्छी माता सौ शिक्षकों के बराबर है। महावीर और राम जैसे महापुरुषों को जन्म देनेवाली माता त्रिशला और कौशल्या, अपने आत्मबल से रावण जैसे महाबली को पराजित करने वाली महासती सीता आज संपूर्ण नारी जाति के लिये आदर्श है। जैन शास्त्रों में मुक्ति मंजिल में प्रवेश पाने वाले उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ का जीवन उदाहरण है कि नारी भी अपने चरम विकास को प्राप्त करने में सक्षम है। नर और नारी सृष्टि रचना के दो रूप हैं। उनकी आन्तरिक क्षमताओं में कोई अन्तर नहीं है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और रानी पदमावती इतिहास की गवाह है। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का वर्चस्व भी पूरी दुनियाँ में फैला था। भारत में ऐसी एक नहीं अनेक विभूतियाँ हुई है जिन्होंने भक्ति, सेवा परोपकार के क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है, जैसे-मीरा, पन्नाधाय, मदर टेरेसा आदि। अनेक धार्मिक, प्रशासनिक, सामाजिक पदों पर रहकर नारी ने अकल्पनीय कार्यों को विस्तार दिया है। नारी का जीवन एक दृष्टि से समाज का वरदान है। श्रेष्ठ संकल्पों को कार्य रूप में लाना नारी के सशक्तिकरण का द्योतक है। यदि महिलाओं की संयुक्त शक्ति एक जुट हो। जाये तो विश्व को हिलाने में नारी समर्थ है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती नारी शक्ति के ही तीन रूप हैं जिन्हें पूरा विश्व नमन करता है। यह सूक्ति अत्यन्त प्राचीन लोकप्रिय और प्रचलित है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रम्यन्ते तत्र देवता''। नारी पूज्या है, आराध्य है, अन्नपूर्णा है। रमणीयता, सरसता, मधुरता कोमलता, ममता ओर सुन्दरता का पुंज है। अबला कहना नारी का घोर अपमान करना है। वैसे भी अबला का शब्दिक अर्थ होता है जिससे सारी बलायें दूर रहे। एक समय ऐसा था जब हमारे देश में महिलायें जागृत थीं। कर्तव्य और उत्तरदायित्व के प्रति सजग थीं। बीच के दौर में उदासीनता आई तो नारी को अपने बारे में सोचने का अधिकार नहीं था। नारी की भूमिका भोग की वस्तु, बच्चों को पालना और गृह कार्य तक ही सीमित थी। नारी की सहनशीलता ने पुरुषों का हौसला बढ़ा दिया। लेकिन आज युग बदला, विचार बदले, मान्यतायें बदल गई और इसी के साथ नारी घर की चार दीवारी छोड़कर स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों तक क्या आंतरिक्ष तक जा पहुँची। अभी हाल ही मैं सुनीता विलियम्स ६ माह अंतरिक्ष में बिता कर धरती पर लौटी है जिस पर नारी समाज क्या संपूर्ण मानव जाति को गर्व है। नारी जाति में जागृति की जो लहर आई है उससे प्रगति पथ की सारी राहें सुगम हो गई हैं। ० अष्टदशी / 1020 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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