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या चरित्र का उदात्तीकरण है। जब तक शिक्षा को केवल करने का साधक तत्व कह सकते हैं-(१) जो अधिक हँसीजानकारियों तक सीमित रखा जायेगा तब तक वह व्यक्तित्व मजाक नहीं करता हो (२) जो अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण की निर्माता नहीं बन सकेगी। दशवैकालिक सूत्र में शिक्षा के चार रखता हो, (३) जो किसी की गुप्त बात को प्रकट नहीं करता उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि
हो (४) जो अशील अर्थात् आचारहीन न हो (५) जो दूषित १. मुझे श्रुत ज्ञान (आगम ज्ञान) प्राप्त होगा, इसलिए अध्ययन आचार वाला न हो (६) जो रस लोलुप न हो (७) जो क्रोध करना चाहिये।
न करता हो और (८) जो सत्य में अनुरक्त हो।१७ इससे यही
फलित होता है कि जैनधर्म में शिक्षा का सम्बन्ध चारित्रिक मूल्यों २. मैं एकाग्रचित्त होऊँगा, इसलिए अध्ययन करना चाहिये।
से रहा है। ३. मैं अपने आप को धर्म में स्थापित करूँगा, इसलिए अध्ययन करना चाहिये।
वस्तुत: जैन आचार्यों को ज्ञान और आचरण का द्वैत मान्य
नहीं है वे कहते हैं- जो ज्ञान है, वही आचरण है, जो आचरण ४. मैं स्वयं धर्म में स्थित होकर दूसरों को धर्म में स्थित करूंगा,
है, वही आगम-ज्ञान का सार है।१८ इस प्रकार हम देखते हैं कि इसलिए अध्ययन करना चाहिये।११
जैन परम्परा में उस शिक्षा को निरर्थक ही माना गया है जो इस प्रकार दशवकालिक के अनुसार अध्ययन का प्रयोजन व्यक्ति का चारित्रिक-विकास या व्यक्तित्व-विकास करने में ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ चित्त की एकाग्रता तथा धर्म (सदाचार) समर्थ नहीं है। जो शिक्षा मनुष्य को पाशविक वासनाओं से ऊपर में स्वयं स्थित होना तथा दूसरों को स्थित करना माना गया है। नहीं उठा सके, वह वास्तविक शिक्षा नहीं है। जैन आचार्यों की दृष्टि में जो शिक्षा चरित्र शुद्धि में सहायक नहीं
जैन आचार्य शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को जीवन और जगत होती, उसका कोई अर्थ नहीं है। चंद्रवेध्यक नामक प्रकीर्णक में
के सम्बन्ध में जानकारियों से भर देना नहीं मानते हैं, अपितु वे ज्ञान और सदाचार में तादाम्य स्थापित करते हुए कहा गया है
इसका उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्त्वि का विकास या सद्गुणों का कि जो विनय है, वही ज्ञान है और जो ज्ञान है उसे ही विनय कहा
विकास मानते हैं, किन्तु इसका तात्पर्य यह भी नहीं है कि वे जाता है।१२ श्रुतज्ञान में कुशल हेतु और कारण का जानकार
शिक्षा को आजीविका या कलात्मक कुशलता से अलग कर देते व्यक्ति भी यदि अविनीत और अहंकारी है तो वह ज्ञानियों द्वारा
हैं। रायपसेनीयसुत्त में तीन प्रकार के आचार्यों का उल्लेख है - प्रशंसनीय नहीं है। १३ जो अल्पश्रुत होकर भी विनीत है वही कर्म
१. कलाचार्य २. शिल्पाचार्य एवं ३. धर्माचार्य।१९ उसमें इन का क्षय कर मुक्ति प्राप्त करता है, जो बहुश्रुत होकर भी
तीनों आचार्यों के प्रति शिष्य के कर्तव्यों का भी निर्देश है। इससे अविनीत, अल्पश्रद्धा और संवेग युक्त है वह चरित्र की आराधना
यह फलित है कि जैन चिन्तकों की दृष्टि में शिक्षा व्यवस्था तीन नहीं कर पाता है। १४ जिस प्रकार अंधे व्यक्ति के लिये करोड़ों
प्रकार की थी। कलाचार्य का कार्य जीवनोपयोगी कलाओं अर्थात् दीपक भी निरर्थक हैं उसी प्रकार अविनीत (असदाचारी) व्यक्ति
ज्ञान-विज्ञान और ललित कलाओं की शिक्षा देना था। भाषा, के बहुत अधिक शास्त्रज्ञान का भी क्या प्रयोजन? जो व्यक्ति
लिपि, गणित के साथ-साथ खगोल, भूगोल, ज्योतिष, आयुर्वेद, जिनेन्द्र द्वारा उपदृष्ट अति विस्तृत ज्ञान को जानने में चाहे समर्थ
संगीत, नृत्य आदि की भी शिक्षा कलाचार्य देते थे। वस्तुतः न ही हो, फिर भी जो सदाचार से सम्पन्न है वस्तुत: वह धन्य
आज हमारे विश्वविद्यालयों में कला, सामाजिक विज्ञान एवं है, और वही ज्ञानी है।१५ जैन आचार्य यह मानते हैं कि ज्ञान
विज्ञान संकाय जो कार्य करते हैं, उन्हीं से मिलता-जुलता कार्य आचरण का हेतु है, मात्र वह ज्ञान जो व्यक्ति की आचार शुद्धि
कलाचार्य का था। जैनागमों में पुरुष की ६४ एवं स्त्री की ७२ का कारण नहीं होता, निरर्थक ही माना गया है। जिस प्रकार शस्त्र
कलाओं का निर्देश उपलब्ध है।२° इससे हम अनुमान लगा से रहित योद्धा और योद्धा से रहित शस्त्र निरर्थक होता है, उसी
सकते हैं कि शिक्षा जीवन के सभी पहलुओं का स्पर्श करती है। प्रकार से रहित आचरण और आचरण से रहित ज्ञान निरर्थक होता है।
कलाचार्य के बाद दूसरा स्थान शिल्पाचार्य का था।
शिल्पाचार्य वस्तुतः वह व्यक्ति होता था जो आजीविका अर्जन जैनागम उत्तराध्ययनसूत्र में शिक्षा प्राप्ति में बाधक निम्न
से सम्बन्धित विविध प्रकार के शिल्पों की शिक्षा देता था। आज पाँच कारणों का उल्लेख हुआ है (१) अभिमान (२) क्रोध (३)
जिस प्रकार विभिन्न औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थायें प्रशिक्षण प्रदान प्रमाद (४) आलस्य और (५) रोग।१६ इसके विपरीत उसमें
करती हैं, उस काल में यही कार्य शिल्पाचार्य करते। इनके ऊपर उन आठ कारणों का भी उल्लेख हुआ है जिन्हें हम शिक्षा प्राप्त
त धर्माचार्य का स्थान था। इनका दायित्व वस्तुतः व्यक्ति के
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