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अबीरचन्द सेठिया
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या
कल्याण भारतीय संस्कृति, दर्शन, सभ्यता एवं जैन दर्शन में सेवा को अत्यन्त महत्व दिया गया है। साथ ही सेवा धर्म अत्यन्त कठिन और गहन भी है, यह भी कहा गया है। उसी सेवा एवं मानव कल्याणकारी कार्यों का महत्त्व है जो बिना किसी फल, परिणाम या प्रतिदान की भावना से की जाती है। स्वयं भगवान महावीर स्वामी ने सेवा करने वाले को धन्य एवं महान माना है।
__ श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, कोलकाता भी अपने संस्थापन काल से जैन दर्शन के रत्नत्रय सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को आधार बनाकर शिक्षा, सेवा एवं साधना के माध्यम से लोक कल्याणकारी एवं मानव सेवा के प्रकल्पों में अहर्निश संलग्न है।
श्री जैन सभा ने विगत आठ दशकों में लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियों एवं मानव सेवी क्रिया कलापों में जितना विस्तार किया
है, जिस तल्लीनता से इसके कार्यकर्ता, पदाधिकारी लगे हुए हैं, वह नितान्त आश्चर्यकारी, अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है।
धर्म का निष्कर्ष या निचोड़ यदि कुछ भी है तो वह केवल सेवा है। केवल कोलकाता ही नहीं अपितु पश्चिम बंगाल के ग्रामीण अंचलों में भी संभा ने जो लोक-कल्याण एवं जरुरतमंदों की सहायता के कार्य संपादित किये हैं, उससे वे काफी प्रभावित हैं एवं उन अंचलों में सभा का नाम बड़े आदर एवं श्रद्धा से लिया जाता है। जैन बुक बैंक, कम्प्युटर केन्द्र, सिलाई मशीन केन्द्र, नि:शुल्क नेत्र शल्य चिकित्सा शिविर, नि:शुल्क विकलांग शिविर, निःशुल्क प्लास्टिक सर्जरी कैम्प के माध्यम से जो सेवाकार्य संपादित किये जा रहे हैं, उनकी सुवास से सभी सुवासित हैं।
श्री जैन सभा का यह आठ दशकीय अमृत महोत्सव इसी का जीवंत प्रमाण है। सभा की ये लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियाँ अधिक से अधिक सेवा कार्य में संलग्न रहे। अमृत महोत्सव की सफलता असंदिग्ध है, इसी भावना के साथ।
अभयराज सेठिया
ने लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ की। जैन बुक बैंक, श्री जैन विद्यालय हावड़ा, श्री जैन हॉस्पीटल एवं रिसर्च सेन्टर हावड़ा
आदि प्रमुख हैं। कई स्थानों पर कम्प्यूटर केन्द्र, सिलाई मशीन सभा के बढ़ते कदम
केन्द्र स्थापित कर जरुरतमंदों को रोजगार प्रदान किया। जहाँ कुछ युगदृष्टा व्यक्तियों ने समाज के समुचित संगठन और पीने का पानी नहीं था वहाँ नलकूप लगवाकर मीठे पानी की हित की दृष्टि से सोचा और स्थान लेकर धर्म आराधना का कार्य व्यवस्था की। इस प्रकार श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा शुरू किया। देखा यह स्थान छोटा पड़ रहा है, अत: दूसरे स्थान ।
कोलकाता लोक कल्याणकारी एवं मानव सेवी संस्थाओं में की खोज होने लगी। तब १८डी, सुकियस लेन वाली जमीन प्रमुख एवं अग्रणी स्थान रखती है, यह सब कार्यकर्ताओं की खरीद की एवं वहाँ मकान बनवाना प्रारम्भ किया। ऐसे व्यक्तियों । कर्मठ सेवा भावना, अथक अध्यवसाय, उदारता का प्रतिफल में प्रमुख थे श्री फूसराजजी बच्छावत। विद्यालय जो अन्यत्र चल ।
है। नर्सिंग होम, कॉमर्स कॉलेज एवं डेन्टल कॉलेज की योजनाएँ रहा था, उसे भी १८डी, सुकियस लेन वाले मकान में लाया गया।
क्रियान्वित करने हेतु कार्यकर्तागण उत्साह से कार्य कर रहें हैं, श्री जैन विद्यालय हाई स्कूल से हायर सेकेण्डरी स्कूल में परिणत सभी अभिनन्दन एवं बधाई के पात्र हैं। यह कार्यकर्ताओं की हुआ। यहाँ वाणिज्य और विज्ञान की पढ़ाई होने लग गई।
एकता और मिलजुलकर कार्य करने की उत्कृष्ट भावना है। जैसे-जैसे सभा के क्रिया कलाप बढ़ने लग गये कार्यकर्ता
आठ दशक की पूर्णता पर अमृत महोत्सव का आयोजन एवं भी आगे आये और सोचा कि जिस प्रान्त में हम रहते हैं, उसकी
दानवीर भामाशाह का अभिनन्दन न केवल अपने समाज के भी सेवा, मानव सेवा आवश्यक है अत: नि:शुल्क नेत्र शल्य
लिए अपितु अन्यों के लिए प्रेरणादायी और आदर्श बनेगा. ऐसा
विश्वास है। चिकित्सा शिविर एवं विकलांग शिविर का आयोजन होने लगा। समाज के कर्मठ कार्यकर्ता श्री सूरजमलजी बच्छावत, श्री शुभकामनाओं सहितसरदारमलजी कांकरिया, श्री रिखबदास भंसाली, श्री भंवरलाल
अध्यक्ष, कर्णावट, श्री रिधकरणजी बोथरा, श्री बच्छराजजी अभाणी आदि
श्री साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, हावड़ा
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