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________________ रतनलाल सुराना सेवा का पर्याय: श्री जैन सभा श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा एक आदर्श प्रतिष्ठान है। मैं सन् १९८४ में इसकी लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियों से परिचित हुआ हूँ । यहाँ सर्वप्रथम सभा के तत्त्वावधान में विकलांग शिविर का आयोजन हुआ था। उस सयम मैं तीन विकलांगों को लेकर बोलपुर से यहाँ आया था। उसी समय इस नि: शुल्क विकलांग शिविर को देखकर मैं काफी प्रभावित हुआ एवं तब से अब तक मैं सभा की गतिविधियों से जुड़ा हूँ। सभा ने बोलपुर (शान्तिनिकेतन) में विकलांग शिविर आयोजित करने की सलाह दी। यह सभा का हीरक जयन्ती वर्ष था। सभा ने शिक्षा, सेवा एवं साधना के उद्देश्य से मानव सेवा के ६० वर्ष पूर्ण कर लिये थे । | शान्तिनिकेतन के रोटरी क्लब ने इस शिविर हेतु ४०,०००) रुपये देने की घोषणा की। मैं उस समय १९८८१९८९ में रोटरी क्लब का चेयरमेन था । हमारे लिए मानव सेवा का यह अपूर्व अवसर था । श्री भँवरलालजी कोठारी ने जयपुर से सामान सहित कार्यशाला लगाने का वचन दिया था। क्लब की ओर से चालीस हजार एवं अन्य श्रोत से ६० हजार इस तरह एक लाख रुपये का आश्वासन मिल गया । सभा के सहयोग से पूर्वी भारत का पहला निःशुल्क विकलांग शिविर बोलपुर (शान्तिनिकेतन) में आयोजित किया गया। इसमें ५०० से अधिक विकलांग एकत्रित हुए। सात दिन Jain Education International तक मरीजों के लिए भोजन, आवास व्यवस्था, इलाज, कृत्रिम पैर आदि निःशुल्क थे यह अभूतपूर्व शिविर था। इसका श्रेय श्री स्थानकवासी जैन सभा, कोलकाता एवं इसके कार्यकर्ता श्री सरदारमलजी कांकरिया, श्री रिधकरणजी बोथरा, श्री भंसालीजी आदि को है। स्थानीय समाचार पत्रों ने भी इस सेवा कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसमें ३०० से अधिक विकलांगों को डॉ. ए. एस. चूड़ावत की देखरेख में कृत्रिम पैर एवं पोलियो ग्रस्त को केलीपर निःशुल्क दिये गये। श्री महावीर विकलांग सेवा समिति, जयपुर का भी योगदान सराहनीय रहा। मेरे जीवन में इससे एक नया मोड़ आया और मैं सेवा कार्यों में रुचि लेने लगा। सम्प्रति रोटरी इन्टरनेशनल जिला ३२४० वर्ष २००८-२००९ का विकलांग सेवा का मैं चेयरमेन निर्वाचित हुआ हूँ। इसके अलावा सभा के सहयोग से तीन-चार निःशुल्क नेत्र शल्य चिकित्सा शिविर भी बोलपुर में आयोजित किये गये हैं। मैं श्री जैन सभा एवं श्री सरदारमलजी कांकरिया, श्री रिखबदासजी भंसाली, श्री रिधकरणजी बोथरा आदि कार्यकर्त्ताओं का आभारी हूँ । सभा मानव सेवा के ८० वर्ष पूर्ण कर रही है, यह गौरव की बात है। सभा इसी तरह मानव सेवा के कार्यों में अग्रणी रहे, यही मेरी कामना है। रवि बाबू की ये पंक्तियाँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं 'जेथाय थाके अबार अधम दीनेर हते दीन, सेई खाने ते चरण तोमार बाजे सवार पीछे सवार नीचे सर्वहारार माझे इस अवसर पर सभा की ओर से दानवीर भामाशाह श्री सुन्दरलालजी दुगड़ का सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है, यह अत्यन्त प्रसन्नता की बात है। श्री दुगड़जी सस्वस्थ शतायु हो, यही हार्दिक भावना है। श्री दुगड़जी का अनेकशः अभिनंदन । बोलपुर (शान्तिनिकेतन ) अष्टदशी / 76 For Private & Personal Use Only ✰✰✰ www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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