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________________ चम्पालाल डागा एक प्राणवान ऊर्जावान संस्था श्री जैन सभा यह जानकर अपार हर्ष हुआ कि श्री श्वेताम्बर स्था० जैन सभा कोलकाता अपनी स्थापना के आठ दशक पूर्ण कर शिक्षा, सेवा और साधना के नित्य नवीन आयामों को स्थापित करते. हुए तथा नवीन प्रतिमानों के साथ उत्कर्ष की अपनी यात्रा के आगामी शतकीय पड़ाव की ओर अग्रसर हो रही है। श्री एस० एस० जैन सभा ने अपनी स्थापना के बाद ग्रहण किये गये प्रत्येक दायित्व को एक पावन कर्तव्य के रूप में पूर्ण करके अपनी अप्रतिम संकल्प शक्ति का परिचय दिया है। सामाजिक जीवन के सहज समभाव्य उत्कर्ष अपकर्ष की सुदीर्घ जीवन-यात्रा में संस्था ने वामन से विराट की अपनी यात्रा अंगद पांवों से सम्पन्न की है। समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संस्था ने अपनी उच्च गुणवत्ता की अमिट छाप छोड़ी है। सामाजिक उत्सवों, धार्मिक समारोहों एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए कोलकाता महानगर में इस संस्था ने विशिष्ट कीर्तिमान स्थापित किये हैं। यह संस्था सच्चे अर्थों में कोलकाता महानगर और विशेषकर जैन समाज की धड़कन है । विद्वत गोष्ठियों के आयोजन जाति, धर्म, पंथ से परे रहकर गुणीजनों का सम्मान और मानव मात्र सेवा में समर्पित इस संस्था ने देशभर के कार्यकर्त्ताओं को कार्य की उन्नत प्रेरणा प्रदान की है । स्वयं मुझे भी एक छोटा-सा कार्यकर्त्ता होते हुए इस महनीय संस्था द्वारा सम्मनित होने का अवसर प्राप्त हुआ है। Jain Education International एक श्रेष्ठ संगठन किस प्रकार उच्च आदर्शो को अपनी मिशन भावना से पूरा करके लक्ष लक्ष जनों को लाभान्वित कर सकता है, इस बात की यह संस्था एक प्रत्यक्ष प्रमाण है। वर्तमान में तो संस्था ने शिक्षा, सेवा और साधना के क्षेत्र में अगणित नवीन प्रकल्प लेकर अपने कार्यक्षेत्र का असीम विस्तार किया है। एक श्रेष्ठ कार्य को सहयोग करने के लिए किस प्रकार हजारों कदम अग्रसर होते हैं, यह संस्था की गतिविधियों में दानवीरों तथा जन-जन के सहयोग से आंका जा सकता है। जैन सभा ने छोटे-छोटे गांवों तक अपने कार्य का विस्तार किया है। साथ ही कोलकाता महानगर में शिक्षा और चिकित्सा के अनेक विशाल केन्द्र स्थापित किये है। यह सब कुशल नेतृत्व और समर्पित कार्यकर्ताओं के सहयोग से संभव हो पाया है। मैं संस्था के दूरदर्शी ओर मनीषी संस्थापकों तथा गत अस्सी वर्ष में अंकुठ योगदान करने वाले कार्यकर्ताओं और वर्तमान नेतृत्व की मुक्तकंठ से सराहना करता हूँ। मेरा विश्वास है कि श्री जैन सभा सरदारमलजी कांकरिया जैसे सेवाभावी और सर्व भावेन समर्पित व्यक्ति के नेतृत्व में आगे और भी अनेक ऊँचाइयों को स्पर्श करेगी। श्री जैन सभा के सर्वतोभावेन विकास की मंगलकामना। नई लेन, बोथरा चौक, गंगाशहर *** आपके पत्र द्वारा श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा की विगत आठ दशक की शिक्षा सेवा एवं साधना विषयक प्रवृत्तियों की जानकारी ने मुझे चकित कर दिया और निरन्तर सार्थक रूप से कर्मशील बने रहने की प्रेरणा दी। सोचता हूँ मनुष्य का कितना समय अपने घोंसले को बनाने में नहीं, अन्यों के बने घोंसले को बिखेरने में चला जाता है। ईर्ष्या द्वेष की आग बड़ी भयावह होती है किनसे प्रेरणा लें। उसके लिए अतीत अधिक आदर्शवान तथा प्रेरक लगता है। लोक कथाओं की दृष्टि से तो हमारा लोक जीवन ही बड़ा जीवंत और स्फूर्त बना हुआ है। अकेले मेरे अपने छोटे से गाँव में ही मैंने प्रारंभ की छोटी उम्र पाई उसी ने मुझे बहुत कुछ सीख दे दी। वे जीवंत पात्र जिन्हें मैं देख चुका, मेरे लिए वे ही बीते इतिहास के अन्यतम उदाहरण बने लगते हैं । वे सबके सब जो अभावग्रस्त थे, उन्होंने जीवन में बड़े संघर्षो से जिलाये रखा, कभी बुझने नहीं दिया । नानपने की, बेसहारे की, अंधेरे की, अभाव की जिंदगी में भी हौसला, स्वाभिमान और सत्व की अटक रखनेवाली जोखिम भरी जीवनी के कई पात्रों के साथ मैं भी जिया हूँ इसलिए मैं सदैव उन व्यक्तियों की टोह में रहा जो सेवा - साधना सुमंगल सुयश तथा सुधर्म-सुकर्म के ताने-बाने से तरंगित होते रहे पर उनका बड़ा अभाव ही मिला। तथाकथित तो बहुत मिले जिनके साथ जयकारे करने वालों को समर्थ कही जाने मंडली थी पर भीतर से उसका आत्मबल आत्मानुराग भी निष्फल और भोथरा ही मिला। अष्टदशी / 750 For Private & Personal Use Only डॉ. महेन्द्र भानावत पूर्व निदेशक भारतीय लोककला मण्डल, उदयपुर संस्थापक एवं अध्यक्ष सम्प्रति संस्थान, उदयपुर www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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