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जिनेन्द्रकुमार जैन सम्पादक, दैनिक यंगलीडर/जिनेन्दु
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.: एक बहुआयामी संस्था श्री श्वेताम्बर स्थानकासी जैन सभा अपने आप में एक बहुआयामी और आदर्श संस्था/संगठन है। शिक्षा और सेवा के अनेक जनोपयोगी महत्वपूर्ण कार्यों के सफल संचालन के कारण न केवल जैन समाज के लिए ही, अपितु समस्त कोलकाता महानगर के लिए प्रेरणाजनक है।
यद्यपि कहने के लिए स्थानकवासी सभा एक सम्प्रदाय विशेष की संस्था है, लेकिन पदाधिकारियों के व्यापक दृष्टिकोण के कारण हर कार्यक्रम राष्ट्रीय आवश्यकतों को सामने रख कर निर्धारित किया जाता है। यही नहीं कार्यक्रम सिर्फ बनाये ही नहीं जाते, उन्हें हर कार्यकर्ता सम्पूर्ण विवेक और उत्साह के साथ सफल बनाने हेतु जुट जाता है। परिणाम स्वरूप सम्प्रदाय विशेष की यह संस्था कोलकाता महानगर की 'आधार' बन गई है। सेवा, सहयोग और संस्कार जैन धर्म के प्रमुक आधार हैं। जैन धर्म तप-त्याग को विशेष महत्व देता है। इस कारण सभा का हर कार्यकर्ता चारित्र के गुणों का हर क्षण ध्यान रखता है।
स्थानकवासी जैन सभा की विभिन्न प्रवत्तियों को जानने/ समझने और उपयोग करने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ है। 'जिनेन्दु' का प्रथम प्रकाशन सन् १९५३ में कोलकाता से ही शुरू हुआ था। उस समय श्री जैन विद्यालय एक छोटा-सा पौधा
था, जो आज वटवृक्ष बन गया है। अब तो इसकी हावड़ा में भी सहोदर संस्थाएँ सफलता/कुशलतापूर्वक चल रही हैं। विद्यालय की शिक्षा सुविधाओं से सिर्फ जैन ही नहीं, बहुत बड़ी संख्या में जैनेत्तर छात्र भी लाभ उठा रहे हैं। सन् १९३४ से सन् २००८ का काल देखते ही देखते बीत गया। यद्यपि सभा के कई संस्थापक सदस्य आज हमारे समक्ष नहीं हैं और कई ऐसे मौजूद है, जो प्रौढ़ और वृद्ध हो गये हैं। अनेक युवा कार्यकर्ता भी सभा की गतिविधियों से जुड़े हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि कोई कार्यकर्ता वृद्ध होकर थक गया है। सभी कम आयु के अथवा अधिक आयु के सदस्य शक्ति और स्फूर्ति से ओतप्रोत हैं। कार्यकर्ताओं में ऐसा समन्वय और मैत्री भाव अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।
पत्रकार होने के नाते सभा के पुराने चले आ रहे कार्यों की सफलता की जानकारियाँ और हाथ में लिये नये कार्यों के बारे में पता चलता रहता है और उन्हें जान कर गर्व होता है। तब दिल खोल कर सराहना करने की इच्छा होती है।
श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा छात्रों के लिए धर्म, समाज, राष्ट्र सेवा की फैक्ट्री जैसी है। कल के अनेक छात्र आज उच्च और उच्चोत्तर पद पर आसीन हैं। जब कभी इनसे मिलना होता है तो वे संस्था से प्राप्त अपनी शिक्षा का ऐसा बखान करते हैं, जैसे कि उन्होंने आस्ट्रेलिया से एमबीए किया था। मैं पहले भी निवेदन कर चुका हूँ कि सभा के कार्य बहुआयामो हैं। सभा का शिल्प शिक्षा केन्द्र, महिला उत्थान एवं विकास और धर्म प्रचार की विभिन्न प्रवृत्तियाँ सुचारु रूप से चल रही हैं। साथ ही सभा प्रसिद्ध लेखकों और ख्यातिप्राप्त विद्वानों का गरिमामय स्वागत सम्मान करना भी अपना कर्त्तव्य समझती है।
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब सभा ने अपने हीरक जयन्ती महोत्सव पर 'जैन पत्रकार सम्मेलन' का सफल आयोजन किया। दो दिनों में सम्पन्न हुई चार बैठकों में से एक की अध्यक्षता करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। सम्भवत: यह जैन पत्रकारों का वह प्रथम अधिवेशन था, जिसमें पूरे देश के लगभग पचास जाने-पहचाने पत्रकार सम्मिलित हुए थे। सभा ने पत्रकारों की देखभाल और स्वागत सत्कार में पलक पावड़े बिछा दिये। यद्यपि सम्मेलन पत्रकारों का था, परन्तु प्रत्येक बैठक में सभा के प्रायः समस्त कार्यकर्ता उपस्थित रहते थे। चौथे और अन्तिम बैठक में अ.भा. पत्रकार संघ की विधिवत स्थापना की गई और स्व. डॉ. नरेन्द्रजी भानावत उसके संयोजक मनोनीत किये गये। उस समय समाज रत्न गणपतराजजी बोहरा (पिपलियां कलां) भी पधारे हुए थे। उन्होंने पत्रकारों के दूसरे सम्मेलन के लिए रु. एक लाख का अनुदान देने का ऐलान किया। एक
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