________________
सेवा शिक्षा और साधना की
जयचन्दलाल मिन्नी
सभा का उद्देश्य प्रारम्भ से ही मानव सेवा का था एवं पूर्व मंत्री- श्री श्वे० सभा जैन सभा, कोलकाता
शिक्षा, साधना एवं सेवा को दृष्टिगत रखकर शिक्षा का विस्तार किया गया। सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चरित्र की वृद्धि सभा का स्वप्न था। धीरे-धीरे मानवसेवा के अन्य प्रकल्पों पर भी कार्य होने लगा। हावड़ा में श्री जैन विद्यालय बालकों एवं बालिकाओं के लिए प्रारम्भ किया गया एवं १९९७ में भारत की आजादी के स्वर्णजयन्ती महोत्सव दिनांक १५ अगस्त १९४७ को श्री जैन हास्पिटल एंव रिसर्च सेन्टर हावड़ा में श्री हरखचन्दजी कांकरिया के अनुदान से आऊट डोर विभाग प्रारम्भ हो गया। मैं भी इस सभा का सन् १९८३ में मंत्री बना एवं कई वर्षों तक सक्रिय रहकर मैंने सभा की गतिविधियों को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया।
श्री जैन बुक बैंक जो सभा की एक प्रमुख प्रवृति है, ने ग्रामीण अंचलों के निर्धन छात्र-छात्राओं को पाठयक्रम की पुस्तकें निशुल्क प्रदान करने का प्रतिवर्ष जो क्रम प्रारम्भ किया, वह आज १५०० छात्र छात्राओं तक पहुंच गया है, नि:शुल्क नैत्र शल्य चिकित्सा शिविर, पोलियो कैम्प तथा विकलांगों के लिए आर्टीफिशयल लिम्ब के नि:शुल्क शिविर प्रति वर्ष अनेक बार आयोजित किये जाते हैं। इस तरह सभा तन-मन-धन से
सेवा प्रकल्पों को निरन्तर आगे बढ़ा रही है। यह इसके उत्साही, अनवरत जलती मशाल सजग, कर्मठ, सेवा भावी कार्यकर्ताओं के बल पर ही संभव हो सन् १९२८ में समाज के कतिपय उत्साही महानुभावों ने
रहा है। सभा की स्थापना का निश्चय किया। वे सब संकल्प के धनी,
शिक्षा के क्षेत्र में भी नित नयी योजनाओं को मूर्त रूप दे कर्तव्य परायण एवं समाज के धार्मिक कार्यों को अंजाम देने की रही है। सभा के नवें दशक का भविष्य भी नितान्त उज्ज्वल है। ललक संजोये हुए थे। परिश्रम एवं प्रयत्न की महिमा अपरम्पार __सभी कार्यकर्ता लगनपूर्वक मेहनत से जुटे हुए हैं एवं इन्हीं के है। उनकी मेहनत रंग लाई एवं श्री उदयचंदजी डागा ने पांचां बल बूते पर पश्चिम बंगाल की यह एक महत्पूर्ण संस्था बन गई गली स्थित अपना मकान इस कार्य के लिए दे दिया था। है। मैं इसके सफल भविष्य की कामना करता हूँ। सामायिक, प्रतिक्रमण होने लगे एवं धीरे-धीरे सामाजिक, धार्मिक गतिविधियां बढ़ने लगी एवं यह स्थान अपर्याप्त लगने लगा। नये स्थान की खोज होने लगी एवं १८डी सुकिसन लेन में १७ कट्ठा जमीन खरीद कर सभा के नये भवन का निर्माण कार्य उत्साह पूर्वक प्रारम्भ हो गया। १९३४ में स्थापित श्री जैन विद्यालय भी यहां स्थानान्तरित हो गया एवं सभा की सभी गतिविधियां भी यहीं से संचालित होने लग गई।
कार्यकर्ताओं में अपूर्व जोश था। सर्वश्री फूसराज जी सा० बच्छावत, श्री पारसमलजी कांकरिया, श्री सूरजमलजी बच्छावत के नेतृत्व में सभा का कार्य आगे बढ़ा और युवा कार्यकर्ता उससे जुड़ते चले गये। श्री सरदारमलजी कांकरिया, श्री रिखबचन्दजी भंसाली, श्री रिधकरणजी बोथरा आदि उत्साह पूर्वक गतिविधियों को आगे बढ़ाने लगे।
० अष्टदशी / 620
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org