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पन्नालाल कोचर
गति जीवन विश्राम मौत है
कोई भी व्यक्ति, समाज या संस्था वही जीवित कहलाती है जिसके लोक कल्याणकारी कार्यों एवं विभिन्न क्रिया कलापों में सतत निरन्तरता कायम रहती। बहता पानी सदा निर्मल रहता है। उपनिषदों में भी इसीलिए 'चरैवेति-चरैवेति' चलते रहो, चलते रहो कहा गया है। यह निरन्तरता, यह सातत्य संस्था का प्राण होता है। इसीलिए गति जीवन विश्राम मौत है, कहा गया है।
श्री श्वे० स्था० जैन सभा कोलकाता भी एक जीवन्त संस्था है। इसकी लोक कल्याणकारी प्रवृतियों एवं मानव सेवी प्रकल्पों ने आठ दशक से इसे प्राणवान एवं ऊर्जा सम्पन्न किया है। कहना न होगा कि इसकी बहुआयामी लोकोपकारी प्रवृत्तियां एवं मानव सेवी क्रिया कलाप इसके कर्मठ सेवा भावी अथक अध्यवसायी एवं दूरदृष्टि सम्पन्न कार्यकर्ताओं की एकजुटता, समवेत प्रयत्नों एवं परिश्रम का सुफल एवं परिणाम है। ये सभी कार्यकर्ता बधाई के पात्र हैं।
फागमल अभानी
श्री श्वे० स्था० जैन सभा अपने कर्ममय जीवन के आठ दशक पूर्ण कर अमृत महोत्सव मनाने जा रही है।
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इस शुभ अवसर पर मुझे उस महामानव कर्मयोगी विलक्षण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी संस्थापक सेठ फूसराज बच्छावत की स्मृति तरोताजा हो रही है। अपने सम्पूर्ण जीवन काल में सदा ही उनके मन में इस संस्था के प्रति सेवा एवं समर्पण की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। मगर जीवन के आखिरी पड़ाव यानि अंतिम श्वांस तक भी संस्था की प्रगति के स्वप्न उनके मन में हिलौरें मार रहा था। अंतिम घड़ी में मैं उनके पास ही बैठा था और चेहरे की भाव भंगिमा से यह स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा था ।
ऐसे निस्वार्थ तपस्वी के कर कमलों से ही इस संस्था रूपी पौधे ने प्रकाश में प्रथम अंगड़ाई ली थी और आज देखतेदेखते विराट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है । यह उन्हीं का
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शिक्षा, सेवा और चिकित्सा के क्षेत्र में सभा ने जो कार्य किये हैं, वे नितान्त स्पृहणीय, अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय तो हैं ही फिर भी इनके विस्तार की और अधिक आवश्यकता है। खास तौर से महिलाओं के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए अच्छे महाविद्यालयों की स्थापना और उसके कुशलता पूर्वक संचालन की वर्तमान में अत्यधिक आवश्यकता है। सरकारी प्रयत्न तो नाकाफी एवं स्वल्य ही हैं अतः सभा अपने नवम दशक में इस ओर लक्ष्य रखकर कार्य करे, यह समय की मांग और समाज तथा राष्ट्र विकास के लिए जरुरी है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी और बहुत कुछ करने की सतत आवश्यकता प्रतीत होती है। अच्छे कामों के लिए कभी भी अर्थाभाव एवं सहयोग की कमी नहीं रहती है लोग आगे बढ़कर अच्छे कार्यों के संपादन के लिए तत्पर रहते हैं। आवश्यकता है उचित समायोजन, कुशल प्रबंधन एवं कार्य दक्षता की एवं हमारी नई युवा पीढ़ी इसके सर्वथा योग्य है एवं सभा की बहुआयामी लोक कल्याणकारी प्रवृतियों को नये क्षितिज प्रदान करेगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। इस अमृत महोत्सव पर मेरी अशेष शुभकामनाएँ।
आशीर्वाद है कि आज भी संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति हेतु समाज के उदारमना भामाशाहों, अनुभवी पदाधिकारियों का अथक सहयोग निरंतर जारी है। संस्था को गौरव है कि युवा शक्ति भी उतनी ही तन्मयता एंव समर्पित भावों के साथ संस्था की उन्नति में भरपूर योगदान कर रही है। स्व० फूसराज जी के वरदहस्त एवं आशीर्वाद के कारण ही मुझे इस संस्था से जुड़ने का अवसर मिला, जिसके लिये मैं उनका थिर ऋणी हूँ।
संस्था के माध्यम से सेवा - शिक्षा आदि की विभिन्न प्रवृत्तियां जारी हैं। चार विद्यालय, अस्पताल, शिल्प केन्द्र, बुक बैंक एवं नेत्र चिकित्सा, विकलांग शिविर, प्लास्टिक सर्जरी शिविर आदि अनेकों सेवाप्रद गतिविधियों से पूरे राज्य की जनता लाभान्वित हो रही है।
मुझे विश्वास है कि भावी पीढ़ी भी इस लोक कल्याणकारी सेवा वृतियों को और आगे बढ़ाकर इस बट वृक्ष को नंदन कानन के रूप में परिणत करने में सक्षम होगी। संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति हो, यही हार्दिक शुभकामना है।
० अष्टदशी / 610
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