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सुभाष बच्छावत संयोजक, श्री जैन बुक बैंक
श्री जैन बुक बैंक साधना, शिक्षा एवं सेवा को ध्यान में रखकर आठ दशक पूर्व श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा की स्थापना हुई थी। सभा की स्थापना के साथ ही साधना एवं शिक्षा का कार्य प्रारम्भ हो गया था परन्तु सेवा का कार्य संगठित रूप में १९७७ से पू. जयन्तीलालजी महाराज की प्रेरणा से ही गतिशील हो सका। सन् १९७७ में बुक बैंक गठन के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी श्री विनोदजी मिन्नी के संयोजन में गठित की गई जिसमें सदस्य के रूप में मुझे और श्री सुबोध मिन्नी को रखा गया। श्री प्रेमचन्द्र मुकीम, श्री शांतिलाल जैन, श्री कस्तुरचंद मुकीम, स्व. धनराजजी भूरा, श्री निर्मल नाहर, श्री मूलचन्द मुकीम आदि युवा द्वारा १९७८ से बुक बैंक का कार्य प्रारम्भ हुआ। हायर सेकेण्डरी, ग्रेजुएशन एवं पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्र-छात्राओं को लोन पर पुस्तकें दी जाने लगी। धीरे-धीरे कार्य आगे बढ़ने लगा। व्यावसायिक प्रतिबद्धता एवं पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण कार्यकर्ताओं में समयाभाव को देखते हुए १९८६ में बुक बैंक की जिम्मेदारी मुझे दी गयी। कार्य को गति देना एवं नई टीम तैयार करना मेरी प्राथमिकता थी। बुक बैंक से पुस्तक लेकर पढ़ने वाले छात्रों में से ४ छात्रों का चुनाव कर मैंने कार्य करना प्रारम्भ किया। उनमें से एक छात्र श्री तारकनाथ दास अभी तक बुक बैंक के कार्य में सक्रिय हैं। ३-४ साल तक कोई भी नये कार्यकर्ता जुड़ नहीं पाए। उसके पश्चात् धीरे-धीरे श्री अजय
बोथरा, श्री अजय डागा, श्री सुरेन्द्र दफ्तरी, श्री सुशील गेलड़ा, श्री महावीर लुणावत आदि कार्य करने लगे।
१९९१ से सभा ने यह विचार रखा कि कार्य की पूर्ण समीक्षा की जाए एवं नयी रूपरेखा बनाई जाय कि ज्यादा से ज्यादा छात्र इस सुविधा से लाभान्वित हो सकें। हमलोगों ने गाँवगाँव घूम-घूम कर शिक्षकों से यह बात सुनिश्चित की कि अगर माध्यमिक स्तर पर यह कार्य आरम्भ हो सके तो बहुत ज्यादा छात्र-छात्राएँ लाभान्वित हो सकेंगे। पुस्तकों के अभाव में जो छात्र स्कूल छोड़ते हैं, उनकी संख्या कम हो सकती है। विचार किया गया कि स्कूलों मे श्री जैन बुक बैंक खोली जाय जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी उस स्कूल की होगी एवं सभा द्वारा बताए दिशा-निर्देश पर वे कार्य करेंगे तथा सभा को रिपोर्ट करेंगे। १९९२ में ४२ स्कूलों में ५५७ छात्र-छात्राओं के साथ इस योजना का शुभारम्भ हुआ। उन्हें यह कहा गया कि अगले शिक्षा सत्र पर आप इस सत्र में दी गई पुस्तकें वापस देंगे एवं नए सेट्स के लिए अर्जी देंगे। इस तरह दोनों सत्रों की पुस्तकें लाकर पुन: छात्र-छात्राओं में बाँटना एवं उसकी रिपोर्ट करना जिससे और ज्यादा छात्र समूह इससे लाभान्वित हो। ३-४ वर्षों में ही जो कार्य ४२ स्कूलों के ५५७ छात्रों से शुरू हुआ था, वो १०० से ज्यादा स्कूलों के १५०० छात्र-छात्राओं तक पहुँच गया। इसके साथ ही शिक्षकों को यह ट्रेनिंग भी दी जाने लगी कि किस तरह बुक बैंक को बढ़ाया जाय। अब प्रतिवर्ष नयी एवं पुरानी पुस्तकों को मिलाकर लगभग १०००० से ज्यादा छात्र-छात्राएँ इस योजना का लाभ ले रहे हैं। सभा प्रतिवर्ष १२५-१५० स्कूलों के १५०० छात्र-छात्राओं को नये सेट्स उपलब्ध करवाती है। इस तरह से अब तक कुल १५०००० से ज्यादा छात्र-छात्रायें इस योजना का लाभ ले चुके हैं।
इस योजना के शुरू होने के साथ ही हमारा स्कूलों में आनाजाना काफी बढ़ गया, साथ ही वहाँ की समस्याओं से भी रूबरू होने लगे। स्कूलों की आकांक्षाएँ भी हमसे काफी होने लगीं। सभा ने यह विचार किया कि स्कूलों के आधारभूत ढाँचों के निर्माण की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। अब हम प्रतिवर्ष ६० सिलींग फैन देते हैं। स्कूलों में फर्नीचर, अलमारी समय-समय पर दी गयी है। लड़कियों के स्कूलों एवं कॉलेज में टॉयलेट का निर्माण किया जाता है। विभिन्न स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था, साइंस लेबोरेटरी, क्लास रुम का निर्माण आदि कार्य किये गये हैं। १५ स्कूलों में लाइब्रेरी बनवाई गयी है। दो लड़कियों के स्कूल में सिलाई-केन्द्र स्थापित किये गये हैं। इक्कीसवीं सदी में कम्प्यूटर के महत्त्व को समझते हुए ग्रामीण स्कूलों एवं कलकत्ते के स्कूलों में कम्प्यूटर प्रशिक्षण के लिए कम्प्यूटर केन्द्र स्थापित किये गये हैं।
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