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________________ साहित्य मनीषी श्री कन्हैयालालजी सेठिया की अध्यक्षता में एवं दिल्ली जैन समाज के अग्रणी कार्यकर्ता श्री रिखबचंद जैन ८.४.९० को ज्ञानमंच में सभा की हीरक जयन्ती का समापन ने सम्मिलित होकर इसकी शोभा बढ़ाई एवं शिक्षा के क्षेत्र में समारोह सम्पन्न हुआ, जिसमें प्रधान अतिथि के रूप में श्री किए गए कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा कर सभा को साधुवाद दिया गुमानमलजी लोढ़ा संसद सदस्य विद्यमान थे। और प०बंगाल माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त अधिकांश बालक-बालिकाएं या महिलाएं औपचारिक । करने के लिए प्रयास प्रारम्भ कर दिया गया। इस कार्य में शिक्षा पूर्ण कर पाने में अपने को असमर्थ महसूस करते हैं और निरन्तर लगे रहने से सन् १९९४ में विद्यालय को मान्यता भी उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। इसी को दृष्टिगत कर भारत । मिल गई। फिर सन् १९९६ में प० बंगाल उच्तर माध्यमिक सरकार ने मुक्त राष्ट्रीय विद्यालय (National open School) शिक्षा पर्षत् द्वारा भी मान्यता मिली। इस प्रकार आज हावड़ा में प्रस्थापित किया है। जब हमारे पदाधिकारियों को इसके विषय में श्री जैन विद्यालय फॉर गर्ल्स एवं श्री जैन विद्यालय फॉर ब्वायज ज्ञात हुआ तो उन्होंने भी इस योजना की क्रियान्वित किया और के रूप में करीब ४२०० छात्र-छात्राओं को शिक्षा दे रहे हैं। सभा की ओर से नेशनल ओपन स्कूल सन् १९९० में प्रारम्भ विद्यालय को मान्यता दिलाने में श्री राधेश्याम मिश्र का परिश्रम किया गया जिसके प्रथम मंत्री के रूप में श्री मोहनलालजी भंसाली एवं सहयोग प्रशंसनीय रहा। मनोनीत किए गए। सभा की कार्यकारिणी समिति की २५.७.९२ की बैठक श्री जैन विद्यालय, हावड़ा : में श्री कन्हैयालाजी मालू ने साग्रह प्रस्ताव रखा कि श्री सरदारमल जी कांकरिया एवं श्री रिखबदासजी भंसाली का हावड़ा जैसे पिछड़े अंचल में जो मुख्यतः औद्योगिक अभिनन्दन किया जाय। जिसका अनुमोदन श्री सूरजमलजी अंचल के रूप में जाना जाता है, जहां साधारण परिवार के बच्चों बच्छावत ने जोरदार ढंग से किया। सभा के अध्यक्ष पद पर रहने को शैक्षणिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए कलकत्ता की ओर के कारण श्री रिखबदासजी भंसाली अपने नाम के लिए कतई भागना पड़ता था और वहां भी उन्हें प्रवेश पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था, एक अच्छे विद्यालय की आवश्यकता सहमत नहीं हुए। विशेष आग्रह पर किसी प्रकार श्री सरदारमलजी कांकरिया को इसके लिए राजी किया गया। अभिनन्दन समारोह इस क्षेत्र में कई वर्षों से महसूस की जा रही थी। सभा ने इसी को सफल बनाने हेतु श्री भंवरलाल बैद को संयोजक बनाया आवश्यकता की पूति के लिए सन् १९८९ में एक जमीन गया, किन्तु कुछ अपरिहार्य कारणों से यह कार्य आगे न बढ़ बनबिहारी बोस रोड में क्रय की और सन् १९९१ में विद्यालय भवन का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया। दो वर्ष जमीन के सका। फिर श्री तनसुखराजजी डागा को यह कार्य भार सौंपा गया। तदनन्तर इस कार्य को गति मिली। कागजात वगैरह ठीक कराने एवं भवन का नक्शा पास कराने में निकल गए। भूमि पूजन १६.५.९१ को श्री सूरजमल २१.२.९३ की कार्यकारिणी समिति की बैठक में श्री बच्छावत, श्री सरदारमल कांकरिया एवं श्रीमती फूलकुंवर सोहनलाल गोलछा की अपत्ति पर विशेष चर्चा हुई और श्री कांकरिया के करकमलों से सम्पन्न हुआ। भवन के निर्माण कार्य सुन्दरलालजी दूगड़ के इस निर्णय को मान लिया गया कि सभा का भार श्री सरदारमलजी कांकरिया को दिया गया जिन्होंने की हीरक जयन्ती के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका में प्रथम अथक परिश्रम एवं लगन से इस कार्य को सम्पन्न किया। सभापति के रूप में श्री भैरूदानजी गोलछा का नाम अवश्य होना चाहिये और जब कभी इस का पुर्नप्रकाशन हो तो आवश्यक २९ अप्रैल १९९२ को प्रथम प्रधानाध्यापिका के रूप में श्रीमती ओल्गा घोष की नियुक्ति की गई। ४ मई १९९२ को संशोधन कर लिया जाय। विधिवत नवकार मंत्र का जाप, हवन पूजन विधि से सम्पन्न कर श्री सरदारमलजी कांकरिया का अभिनन्दन समारोह विद्यालय का शुभारम्भ किया गया। इस हवन में रिखबदास त्रिदिवसीय कार्यक्रम के रूप में सम्पन्न हुआ। जिसमें विद्वत् भंसाली, श्री सरदारमल कांकरिया आदि सजोड़े सम्मिलित हुए। गोष्ठी, अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ की कार्यकारिणी विद्यालय का प्रथम सत्र २५ जून १९९२ को छात्रों एवं समिति की बैठक आदि आयोजन किया गया। इस अवसर पर छात्राओं के लिए प्रारम्भ किया। प्रथम कक्षा एक से कक्षा ७ 'शिक्षा व सेवा के चार दशक' नामक स्मारिका का लोकार्पण तक लगभग १८०० छात्र-छात्राओं से यह प्रारम्भ किया गया। किया गया। इस स्मारिका को सफल बनाने में श्री गणेश इस अवसर पर आयोजित समारोह में साहित्य मनीषी श्री ललवानी, श्री भूपराज जैन एवं श्री पद्मचन्द नाहटा के अकथनीय कन्हैयालाल सेठिया, पंजाब जैन बिरादरी के वरिष्ठ कार्यकर्ता सहयाग का उल्लख अप श्री जगदीशरायजी, जैन, प्रसिद्ध समासेवी श्री पुष्करलाल केडिया ० अष्टदशी /210 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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