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कई आयोजनों के अखिल भारतीय स्तर के होने के कारण समग्र देश से विद्वान, मनीषी, चिन्तक, पत्रकार, प्रबुद्ध जन एवं स्थानकवासी जैन समाज के गणमान्य महानुभाव, कार्यकर्ता आदि इनमें सम्मिलित हुए।
१५ जनवरी को प्रमुख महोत्सव कलकत्ता के सुप्रसिद्ध नेताजी सुभाष वातानुकूलित इन्डोर स्टेडियम में दस हजार दर्शकों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विद्यालय की स्वर्ण जयन्ती का यह अभूतपूर्व दृश्य था। किसी विद्यालय ने अपनी स्वर्ण जयन्ती इतने विशाल पैमाने पर आयोजित की हो, यह स्मरण नहीं आता है।
सभा एवं विद्यालय परिवार प्राणपण से इसे सफल बनाने में लगा था। महीनों अहर्निश कार्य करने के परिणाम स्वरूप सफलता अवश्यम्भावी थी। कलकत्ता की शैक्षणिक संस्थाओं एवं देशभर से आये महानुभावों के मन-मस्तिष्क पर इन आयोजनों की ऐसी छाप अंकित हुई है जो कभी मिट नहीं सकती एवं जिसकी सुवास से वर्षों तक अन्तरंग महकता रहेगा। सभा एवं विद्यालय परिवार की ओर से कार्यकर्ताओं का सम्मान भी इस अवसर पर किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय की स्वर्ण जयन्ती स्मारिका भी प्रकाशित की गई। चिन्तकों, विद्वानों के आलेखों से समृद्ध यह स्मारिका मुद्रण-साज-सज्जा आदि की दृष्टि से भी इतनी सुन्दर बन पड़ी है कि सभा एवं विद्यालय की कीर्ति को चार चाँद लग गये।
विद्यालय के छात्रों के स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए सभा ने एक केन्टीन स्थापित करने का निश्चय किया ताकि छात्रों को विश्राम के समय शुद्ध एवं सात्विक खाद्य सामग्री उपलब्ध हो सके एवं बाहर के खोमचे वालों से उन्हें कुछ भी न खरीदना पड़े। स्वर्ण जयन्ती महोत्सव के अवसर पर श्री सरदारमलजी कांकरिया की सुपुत्री श्रीमती कान्ता चौरड़िया, मद्रास ने केन्टीन का उद्घाटन किया। इसमें शुद्ध एवं सात्विक खाद्य सामग्री सुलभ मूल्य पर बालकों को उपलब्ध करायी जाती है। सम्पति केन्टीन समिति के संयोजक श्री मोहनलाल भंसाली हैं। समयसमय पर सभा एवं विद्यालय के अधिकारी खाद्य सामग्री का निरीक्षण करते रहते हैं। इससे २५०० छात्र लाभान्वित होते हैं।
सुख और दुख, उत्थान और पतन, रात और दिन प्रकाश एवं अन्धकार प्रकृति का अटल नियम है। एक के बाद दूसरे का अवतरण अवश्यंभावी है। श्री फूसराज बच्छावत का स्वर्गवास :
स्वर्ण जयन्ती की अभूतपूर्व सफलता की खुमारी अभी मन-मस्तिष्क से उतरी नहीं थी कि सभा एवं विद्यालय के प्राण
श्री फूसराजजी बच्छावत का २४ जुलाई १९८४ को अल्प बीमारी के पश्चात् स्वर्गवास हो गया। सभा, विद्यालय परिवार एवं समाज पर यह महान् वज्रपात था। सभी शोकाकुल एवं मर्माहत थे।
श्री जैन विद्यालय के मानद मंत्री श्री सरदारमल कांकरिया एवं श्री रिखबचन्द भंसाली ने बच्छावत परिवार से अनुरोध किया कि श्री फूसराजजी बच्छावत का अंतिम संस्कार सार्वजनिक रूप से होना चाहिये क्योंकि उनका समग्र जीवन शिक्षा, सेवा एवं साधना के लिए समर्पित था। श्री कांकरियाजी एवं श्री भंसालोजी का यह अनुरोध स्वीकार कर बच्छावत परिवार ने बच्छावत जी का पार्थिव शरीर समाज को सौंप दिया। श्री बच्छावत जी का पार्थिव शरीर दिनांक २५ जुलाई की प्रात:काल विद्यालय प्रांगण में विशेष रूप से तैयार मंच पर रखा गया। कलकत्ता के जैनअजैन भाइयों एवं जैन समाज के सभी सम्प्रदायों तथा जैन-अजैन शिक्षण संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने पार्थिव शरीर पर फूल मालाएँ समर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री जैन विद्यालय एवं सभा परिवार के सभी सदस्यों ने अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी। विद्यालय के बैण्ड वादक छात्रों द्वारा बिगुल पर अंतिम धुन बजाने पर पार्थिव शरीर की अंतिम यात्रा प्रारम्भ हुई। अत्यन्त करुण द्दश्य था वह, उपस्थित समुदाय की आँखों से अश्रु बह चले। नीमतल्ला घाट पर रामधुन के बीच पार्थिव शरीर अग्नि को समर्पित किया गया। देखते ही देखते उस भौतिक शरीर को चिता की अग्नि ने भस्मीभूत कर दिया। पंचभूतों का यह मिश्रण पंच तत्वों में विलीन हो गया। शेष बची उनकी यश: काया जो अजर-अमर रहेगी। श्री बच्छावत ने मृत्यु शय्या पर रहते हुए भी मरणोपरान्त नैत्र दान की घोषणा कर न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाया अपितु अनुकरणीय आदर्श की नींव भी डाली।
सन् १९८५ की निर्वाचन सभा में श्री माणकचन्दजी रामपुरिया के स्थान पर श्री सूरजमलजी बच्छावत सभा अध्यक्ष, श्री झंवरलालजी बैद के स्थान पर श्री भंवरलालजी बैद उपाध्यक्ष एवं श्री भंवरलालजी कर्णावट के स्थान पर श्री पारसमलजी भूरट श्री जैन भोजनालय के संयोजक निर्वाचित किये गये। अन्य पदाधिकारियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
दिनांक ९ मई १९८७ को रवीन्द्र जयन्ती के पावन अवसर पर श्री जैन विद्यालय में 'कम्प्यूटर' केन्द्र का उद्घाटन कर सभा ने समय की मांग को पूरा किया एवं विद्यालय ने इकीसवी सदी में प्रवेश किया। इसमें विद्यालय के छात्रों के अलावा बाहर के छात्रों को निर्धारित शुल्क में कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। विद्यालय के भूतपूर्व छात्र श्री दिलीप सरावगी एवं उनके अग्रज श्री बजरंग जैन के सहयोग से यह
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