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समिति के संयोजक मनोनीत किये गये युवकों की अभिरुचि एवं मनःस्थिति को प्रोत्साहित, संस्कारित एवं परिमार्जित करने हेतु श्री सरदारमल कांकरिया के सयोजकत्व में सांस्कृतिक समिति भी गठित की गई।
श्री फुसराजजी कांकरिया के आकस्मिक निधन के कारण समाज को गहरा आघात लगा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु दिनांक १२ नवम्बर १९७६ को श्री देवराजजी गोलछा की अध्यक्षता में शोक सभा आयोजित की गई। स्वर्गस्थ आत्मा की चिरशांति हेतु प्रार्थना करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की एवं शोक प्रस्ताव पारित किया।
सभा अध्यक्ष के रिक्त स्थान पर श्री देवराजजी गोलछा को अध्यक्ष चुनने हेतु श्री सूरजमलजी बच्छावत ने प्रस्ताव किया जिसका अनुमोदन श्री कन्हैयालालजी मालू ने किया एवं श्र देवराजजी गोलछा सर्वसम्मति से सभा के अध्यक्ष निर्वाचित किये गये ।
दिनांक १३.११.७७ को पदाधिकारियों के निर्वाचन के लिए साधारण सभा की बैठक आयोजित की गई जिसमें निम्नरूपेण चुनाव सम्पन्न हुआ
विश्वस्त मंडल के पुराने सदस्यों को ही पुनः निर्वाचित किया गया।
अध्यक्ष
उपाध्यक्ष
मंत्री
सहमंत्री
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श्री झंवरलाल बैद
श्री जयचन्दलाल मिन्नी
श्री निर्मलकुमार नाहर
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कोषाध्यक्ष श्री भंवरलाल कर्णावट इक्कीस सदस्यों की कार्यकारिणी की घोषणा भी इस समय की गई। हिसाब परीक्षक के रूप में श्री एन० सी० कुम्भट एण्ड कम्पनी की नियुक्ति की गई।
श्री जैन भोजनालय की ९ सदस्यीय समिति के श्री भंवरलाल दस्साणी, भवन विस्तार एवं निर्माण की पाँच सदस्यीय समिति के श्री सूरजमल बच्छावत, पाँच सदस्यीय जैन बर्तन वस्तु भंडार समिति के श्री फागमल अब्भाणी एवं श्री मानवसेवा तथा सांस्कृतिक समिति की पाँच सदस्यीय समिति के श्री शांतिलाल मिन्नी संयोजक नियुक्त किये गये।
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श्री माणकचन्द रामपुरिया
श्री रिखबदास भंसाली
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२९ अक्टूबर १९७७ के सभा भवन में निशुल्क नेत्र शल्य चिकित्सा का आयोजन कर सभा ने पीड़ित एवं संत्रस्त जनता की सेवा भावना को मूर्त रूप प्रदान किया। सभा के सेवा
प्रकल्प का यह विस्तार अन्य संस्थाओं के लिए अनुकरणीय आदर्श के रूप में प्रशंसित हुआ ।
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सन् १९२८ ई० में संस्थापित सभा अपने जीवन काल के पचास वर्ष पूर्ण कर रही थी अनेक विघ्न बाधाओं, कष्ट कठिनाइयों एवं झंझावातों के बावजूद भी सभा की प्रगति न केवल अप्रतिहत थी अपितु प्रवृत्तियों के माध्यम से मानव सेवा के फलक का तेजी से विस्तार भी हो रहा था । स्वर्ण जयन्ती महोत्सव :
पाँच दशक की सार्थक यात्रा की सम्पूर्ति के उपलक्ष में सभा का स्वर्ण जयन्ती महोत्सव १९७८ के दिसम्बर माह के अन्तिम सप्ताह में आयोजित करने का निश्चय किया गया।
इस महोत्सव को सफल बनाने हेतु व्यापक तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी गई। अनेक समितियों का गठन कर कार्य का समुचित वितरण किया गया। समाज एवं सभा के सदस्यों में उत्साह का समुद्र ही उद्वेलित हो रहा था। सभा की विगत प्रवृत्तियों एवं भावी कल्पनाओं को जनता के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु इस अवसर पर स्वर्ण जयन्ती स्मारिका के प्रकाशन का भी निश्चय किया गया । तदनुसार सम्पादक मंडल की नियुक्ति कर विद्वानों के लेख आमंत्रित किये गये।
स्थानकवासी समाज की प्रमुख संस्था श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर की कार्यसमिति की बैठक भी बुलाने का निर्णय लेकर संघ के केन्द्रिय कार्यालय, बीकानेर को आमंत्रण भेज दिया गया।
सभा के कार्यकर्ता स्वर्ण जयन्ती महोत्सव की सफलता हेतु अहर्निश कार्य में जुटे थे । अन्ततः वह समय आ ही गया जब स्वर्ण जयन्ती का अनुष्ठान सम्पन्न होना था । दिनांक २३ दिसम्बर से २५ दिसम्बर तक त्रयदिवसीय स्वर्णजयन्ती महोत्सव का शुभारम्भ अत्यन्त समारोह पूर्वक हुआ । कलकत्ता के जैनअजैन समाज के गण्यमान्य सज्जनों तथा समग्र देश से उपस्थित श्री अ० भा० साधुमार्गी जैन संघ के प्रमुखों तथा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में यह भव्य महोत्सव सम्पन्न हुआ। इसी महान् अवसर पर श्री फूसराज बच्छावत को समाज की ओर से सम्मान प्रदान करते हुए इकतीस हजार रुपये की थैली भेंट दी गई। श्री बच्छावत जी ने अपने सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपनी ओर से राशि मिलकर यह थैली महिला उत्थान हेतु सभा को समर्पित कर दी।
इस अवसर पर श्री अ०भा० साधुमार्गी जैन संघ की कार्य समिति बैठक भी हर्षोल्लास से परिपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुई।
छ अष्टदशी / 170
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