SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मठ कार्यकर्ताओं, कर्णधारों एवं गणमान्य सज्जनों की मान्यता प्राप्त कर यह विद्यालय उत्तरोत्तर विकास की ओर उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। इसमें श्री पारसमलजी कांकरिया अग्रसर होने लगा। ४ मई ५८ को विद्यालय की नवीन मालेगांव, श्री लालचन्दजी ढढा मद्रास, दानवीर सेठ श्री कार्यकारिणी का गठन किया गया जिसमें निम्नलिखित पदाधिकारी सोहनलालजी दुगड़ की उपस्थिति उल्लेखनीय है। अत्यन्त प्रेरक और ऐतिहासिक दृश्य था। कार्यकर्ताओं का मन-मयूर अपने अध्यक्ष : श्री फूसराज बच्छावत आदर्शों को साकार होते देखकर नाच रहा था। हर्षोल्लास एवं मंत्री : श्री सरदारमल कांकरिया प्रेरणा का सागर ही उद्वेलित था। प्रधानाचार्य एवं शिक्षक सदस्यों सहित १३ महानुभावों की किसी भी अच्छे कार्य में विघ्न आना स्वाभाविक है। सभा इस समिति के संरक्षण में विद्यालय के सर्वांगीण विकास की के सामने अर्थाभव का संकट मुंह बांये खड़ा था किन्तु दृढ़ आधार शिला रखी गई। सन् १९६० में मान्यता प्राप्त कर व्रतियों के सामने भीषण संकट भी नतमस्तक हो जाते हैं सरकार के निर्देशानुसार प्रबन्ध समिति का पुनर्निवाचन हुआ "अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे" वे व्यक्ति और जिसके निम्नलिखित सदस्य थेहोते हैं जो बाधाओं रूपी शूल के सामने अपने संकल्पों का परित्याग कर अपने लक्ष्य से विचलित हो जाते हैं एवं कार्य अध्यक्ष : श्री फूसराज बच्छावत परित्याग कर लौट जाते हैं। मंत्री : श्री सरदारमल कांकरिया कार्यकर्ताओं के अथक प्रयास, अध्यवसाय एवं दृढ़ सहायक मंत्री एवं प्रधानाचार्य : श्री रामानन्द तिवारी संकल्प के आगे बाधाओं का पर्वत कभी टिक नहीं सकता। सदस्य : श्री युवराज मुकीम, श्री महेन्द्रकुमार जैन, श्री समाज के दानी-मानी सज्जनों के सहयोग से निर्माण कार्य आगे मोतीलाल मालू, श्री माणक बच्छावत, श्री रिखबदास भंसाली बढ़ रहा था। महिलाओं ने भी आगे बढ़कर इसमें योगदान दिया। शिक्षक सदस्य : श्री कन्हैयालाल गुप्त, सभा भवन में दो मंजिल तक का कार्य पूर्ण हो गया। विद्यालय श्री कामेश्वरप्रसाद वर्मा का स्थानान्तरण कर इस नये भवन में प्रारम्भ किया गया। उच्च शिक्षण एवं अनुशासन के कारण विद्यालय अत्यनत आठवीं कक्षा तक छात्रों को शिक्षा प्रदान करने की सुविधा इसमें लोकप्रिय हो गया तथा विद्यार्थियों की संख्या में इतनी वृद्धि हो उपलब्ध हो गई। गई कि फिर स्थानाभाव की समस्या खड़ी हो गई। किन्तु 'साहु अर्थाभाव को दूर करने के लिए सभा ने अपने पुराने ट्रस्ट' से श्री शांतिप्रसादजी जैन ने चवालीस हजार रुपयों का मकान को बेचने का महत्वपूर्ण निर्णय दिनांक ११.९.५५ की ___ अनुदान देकर न कवेल इस समस्या का समाधान किया अपितु बैठक में लिया एवं दिनांक १८.४.५८ को "मेसर्स धनराज सभा के उद्योगी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाकर अपने उत्कृष्ट सेठिया एण्ड कम्पनी" को अस्सी हजार रुपये में विक्रय कर शिक्षा प्रेम का परिचय दिया। सभा श्री शांतिप्रसादजी जैन एवं दिया। इसी समय कार्यकर्ताओं के प्रयास से “हितकारिणी 'साहु ट्रस्ट' की चिर आभारी है। संस्था बीकानेर" से भी पचास हजार रुपये का ऋण प्राप्त हो सभा की प्रवृत्तियों का द्रुत विस्तार हो रहा था एवं गया। इस प्राप्त राशि से भवन निर्माण का कार्य समाप्त हो गया। कार्यकर्ताओं के अथक प्रयास से सभा बहुआयामी रूप धारण दो तल्ले पर "सभागार' के निर्माण ने भवन का महत्व बहुत कर अपनी कीर्ति पताका फहरा रही थी। दिनांक २०.३.१९६० बढ़ा दिया। यही भव्य सभागार सभा एवं अन्य समाजों के को सभा की बैठक में मंत्री श्री सूरजमलजी बच्छावत ने अपने धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक समारोहों के आयोजन का प्रतिवेदन में सभा की प्रगति का विवरण पस्तत किया पतं हृदय स्थल है। कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम तथा सहयोग की भूरि-भूरि ___इसी भवन में २ अप्रैल १९५८ को बहुद्देश्यीय उच्चतर प्रशंसा की। माध्यमिक विद्यालय के रूप में श्री जैन विद्यालय में शिक्षण श्री अखिल भारतवर्षीय स्थानकवासी जैन कान्फरेन्स के प्रारम्भ हुआ। ११ अप्रैल १९५८ को दीर्घ अनुभवी, कुशल अध्यक्ष श्री विनयचन्द भाई जौहरी एवं जनरल सेक्रेटरी श्री प्रशासक एवं सफल शिक्षक श्री रामानन्द तिवारी की प्रधानाचार्य आनन्दराजजी सुराणा ने सभा की प्रवृत्तियों का अवलोकन किया के रूप में नियुक्ति की गई। इनके कुशल नेतृत्व में इस तथा सभा की समाजोपयोगी एवं लोकोपयोगी बहुआयामी विद्यालय ने कलकत्ता के विद्यालयों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त प्रवत्तियों की महती प्रशंसा की। इस बैठक में सभा के नवीन कर सभा को यशस्वी बनाया है। पश्चिम बंग शिक्षा परिषद से पदाधिकारियों का चुनाव किया गया, जो निम्न प्रकारेण है० अष्टदशी / 140 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy