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________________ अत्यधिक व्यस्तता के कारण श्री पारसमलजी कांकरिया ने सभा के कोषाध्यक्ष का पद रिक्त कर दिया। उनके स्थान पर श्री जानकीदासजी मिन्नी कोषाध्यक्ष नियुक्त किये गये। नव निर्वाचित पदाधिकारी पूर्ण मनोयोग से कार्यरत थे। धार्मिक पर्वो, उत्सवों को समारोह पूर्वक आयोजित कर समाज में चेतना की लहर उत्पन्न कर रहे थे। इसी समय द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। महायुद्ध की विभीषिका एवं विपुल नरसंहार तथा संपत्ति की क्षति ने विश्व भर का दिल दहला दिया। कलकत्ता पर बम गिराये जाने के कारण कलकत्ता का समग्र जन-जीवन भी अस्तव्यस्त हो गया एवं भयग्रस्त नागरिक महानगर को रिक्त करने लगे। सभा के अनेक कार्यकर्ता भी स्वदेश चले गये। ऐसी स्थिति में भी सभा के कर्मठ एवं उत्साही कार्यकर्ताओं के मन में सेवा-भावना की अहर्निश ज्योति जलती रही तथा सभा के सर्वांगीण विकास हेतु नवीन स्थान के निर्माण की योजना उनके दिलो-दिमाग में निरन्तर पनपती एवं विकसित होती रही। राजस्थान में रहते हुए भी उन उच्चाभिलाषी सेवाभावी कार्यकर्ताओं ने नवीन भवन के लिए एक लाख रुपये की धनराशि एकत्रित कर ली। कलकत्ता की स्थिति में सुधार होते ही सभा के दूरदर्शी कार्यकर्ताओं ने सन् १९४५ में १८६ क्रास स्ट्रीट (मोहनलाल गली) का भवन नब्बे हजार (९०,०००) रुपयों में खरीद लिया। जिनके हौसले बुलन्द होते हैं, विपत्तियाँ उनका कुछ नहीं बिगड़ सकती- इसी उक्ति को चरितार्थ किया सभा के कार्यकर्ताओं ने, कर्णधारों ने। सभा की प्रवृत्तियों का प्रगति-रथ पुन: वेग से दौड़ने लगा। सभा के कीर्तिस्तम्भ श्री जैन विद्यालय की विकास यात्रा पुनः वेग से प्रारम्भ हो गई। सभा और समाज के कार्यकर्ता अपरिमित उत्साह से शिक्षा, सेवा एवं साधना के कार्य में लीन हो गये। __सन् १९४२ के 'करो या मरो' एवं 'अंग्रेजों भारत छोड़ो" आन्दोलन ने समस्त देश- आसेतु हिमाचल को उद्वेलित कर दिया था एवं देशवासी आजादी की अंतिम लड़ाई (अहिंसात्मक आन्दोलन, सत्याग्रह) के लिए मैदान में कूद पड़े थे। अंग्रेजों के बर्बर एवं पाशविक उपाय भी निरर्थक सिद्ध हो चुके थे। उन्होंने समझ लिया था कि अब उनके दिन पूरे हो चुके है एवं उन्हें अपने बोरिया-बिस्तर बांधकर इस देश से जाना ही होगा। जन जागरण की अभूतपूर्व लहर ने अंग्रेजों को यह देश छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया एवं उन्हें भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने की घोषणा करनी पड़ी। १५ अगस्त १९४७ को भारत का आकाश स्वतन्त्रता के स्वर्णिम सूर्य की आभा में नहा उठा। परतंत्रता की बेड़ियाँ छिन्न-विछिन्न हो गई। आबाल-युवा-वृद्ध नर नारी हर्षोत्फुल्ल हो नाचने लगे। अनेक त्याग एवं बलिदानों से प्राप्त इस आजादी की स्वर्णिम आभा में देश के नवनिर्माण के लिए देशवासियों का मानस कृत संकल्प था। सभा के कार्यकर्ताओं में भी अपरिमित जोश था। विद्यालय के पुनरूद्धाटन का निश्चय किया गया एवं १५ फरवरी १९४८ को वयोवृद्ध कार्यकर्ता श्री गोविन्दरामजी भंसाली के कर कमलों से यह कार्य सम्पन्न हुआ। प्रधान अतिथि के रूप में जैन समाज के कर्मठ कार्यकर्ता शिक्षा प्रेमी श्री छोगमलजी चोपड़ा इस समारोह में उपस्थित थे। श्री चौपड़ा जी ने सभा की प्रवृद्धमान प्रवृत्तियों की प्रशंसा करते हुए कार्यकर्ताओं को साधुवाद दिया। विद्यालय की गौरव वृद्धि के साथ छात्र-संख्या निरन्तर बढ़ रही थी। वर्तमान स्थान अत्यन्त अपर्याप्त था अतः सभा की प्रवृतियों के सुचारु संचालन, विकास एवं उन्नयन हेतु नई जगह खरीदने का निश्चय किया गया। दिनांक ११.९.५५ रविवार को श्री छगनमलजी वैद के सभापतित्व में सम्पन्न बैठक में १८६ क्रास स्ट्रीट के मकान को बेचकर १८ डी, सुकियस लेन स्थित जगह को लेने का निश्चय किया। इस स्थान का स्वामीत्व श्री मनमोहन भाई के पास था। सभा के कार्यकर्ताओं के प्रस्ताव को सुनकर उदार हृदय श्री मनमोहन भाई ने समाज एवं लोककल्याण हेतु इस जमीन को सभा के हाथ विक्रय करने का ही संकल्प व्यक्त नहीं किया अपितु पचास हजार रुपये बाद में लेने का आश्वासन भी दिया। किन्तु इस स्थान के भी अपर्याप्त होने के कारण पास वाली जमीन को लेने का निश्चय सभा के कार्यकर्ताओं ने किया। इस जमीन को श्री मगनमलजी पारख ने क्रय कर लेने पर भी सभा की लोकोपयोगी प्रवृत्तियों के सुचारु संचालन हेतु अत्यन्त उदारता एवं सहृदयता पूर्वक सभा के लिए छोड़ दिया। सभा ने १७ कट्ठा जमीन को खरीद लिया एवं श्री मनमोहन भाई तथा मगनमलजी पारख के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त किया। इस कार्य के सम्पादन में श्री प्रभुदास भाई हेमानी का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ तदर्थ सभा ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। नवीन भवन का शिलान्यास : १५ अगस्त १९५६ की मंगलमय घड़ी, पावन बेला में सभा के नये भवन का शिलान्यास सभा के उत्साही उपाध्यक्ष श्री दीपचन्दजी कांकरिया के कर कमलों से समाज एंव सभा के ० अष्टदशी / 130 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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