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________________ सभा की विभिन्न प्रवृत्तियों एवं गतिविधियों के विस्तार के की सहायता में सभा कभी पीछे नहीं हटती थी। सन् १९३४ कारण सभा भवन का स्थान छोटा लगने लग गया था। सभा में बिहार में भीषण भूकम्प आया जिसने प्रलयंकर दृश्य उपस्थित भवन की लीज का समय भी समाप्त होने के कारण नये स्थान कर दिया था। सभा इस अवसर पर कैसे चुप बैठ सकती थी। की आवश्यकता तीव्रता से अनुभव हो रही थी। समाज के तत्काल श्री दीपचन्दजी सुखाणी के नेतृत्व में सभा के कर्मठ एवं उत्साही, कर्मठ एवं सेवा भावी कार्यकर्ताओं ने १४२ए, क्रास सेवा भावी कार्यकर्ताओं का एक दल कम्बल, वस्त्र, भोजन स्ट्रीट में सभा कार्यालय का स्थानान्तरण कर द्विगुणित उत्साह से आदि की सहायता सामग्री लेकर भूकम्प पीड़ित क्षेत्र में पहुँच कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। गया एवं वहां सराहनीय सेवा कार्य किया। इस तरह सेवा का अधिकांश जैन धर्मावलम्बी वाणिज्य-व्यवसाय एवं उद्योग- यह नया आयाम सभा के इतिहास के साथ जुड़ गया। धंधों में रत रहने के कारण शिक्षा पर विशेष ध्यान केन्द्रित नहीं विद्यालय के बढ़ते हुए कार्य को देखकर सभा ने विद्यालय कर पाते थे एवं न आवश्यक ही मानते थे किन्तु समाज में एवं के पृथक पदाधिकारी निर्वाचित करने का निर्णय किया, तदनुसार देश में शिक्षा के विस्तार के साथ शिक्षा का निरन्तर वर्चस्व बढ़ निम्नलिखित पदाधिकारी निर्वाचित किये गयेरहा था। अत: जैन समाज में भी शिक्षा के प्रति रुचि जाग्रत होने सभापति : श्री भैरोदानजी गोलछा लगी। भावी पीढ़ी को सुनागरिक बनाने हेतु सुशिक्षित एवं मन्त्री श्री मुन्नालालजी रांका सुसंस्कारित करना आवश्यक प्रतीत होने लगा अत: जैन समाज सहमन्त्री श्री सूरजमलजी बच्छावत ने अपनी शिक्षण संस्थाएं स्थापित करना प्रारम्भ कर दिया था। दिनांक २० जनवरी १९३५ को आगामी वर्ष के लिए सभा ने भी अपने बालक-बालिकाओं एवं भावी पीढ़ी को सुशिक्षित तथा सुसंस्कारिक बनाने हेतु विद्यालय की स्थापना सभा के निम्न पदाधिकारियों का निर्वाचन किया गयाकरने का दृढ़ निश्चय किया। जिन उत्साही एवं कर्मठ विश्वस्त मंडल के सदस्य : महानुभावों ने इस निश्चय को मूर्त रूप प्रदान किया उसमें श्री श्री मगनलाल कोठारी फूसराजजी बच्छावत, श्री रावतमलजी बोथरा, श्री बच्छराजजी श्री भैरादानजी गोलछा श्री बदनमलजी बांठिया कांकरिया, श्री धनराजजी बैद, श्री गुलाबचन्दजी आंचलिया, श्री श्री किशनलालजी कांकरिया श्री नेमचन्दजी बोथरा अभयराजजी बच्छावत, श्री तोलारामजी मिन्नी, श्री जानकीदासजी मिन्नी, श्री भैरोदानजी गोलछा, श्री नेमीचन्दजी बच्छावत, श्री पदाधिकारीगण : नथमलजी दस्सानी, श्री किशनलालजी कांकरिया, श्री मुन्नालालजी अध्यक्ष : श्री रावतमलजी बोथरा रांका, श्री अजीतमलजी पारख, श्री बदनमलजी बांठिया, श्री ___ मंत्री : श्री अजीतमलजी पारख जेठमलजी सेठिया प्रमुख थे। कोषाध्यक्ष : श्री लक्ष्मीनारायणजी बख्शी जैन विद्यालय की स्थापना : दिनांक १७ जून १९३४ ई० को समाज के प्रमुख १७ मार्च सन् १९३४ की शुभ घड़ी में १४२ए, कार्यकर्ता श्री जुगराजजी सेठिया, बीकानेर एवं १६ सितम्बर सुत्तापट्टी में विद्यालय का कार्यारम्भ हुआ। सर्वप्रथम सुयोग्य एवं १९३४ को श्री लक्ष्मीचन्दजी जैन ने विद्यालय का निरीक्षण उत्साही अध्यापक श्री बच्चन सिंहजी की नियुक्ति हुई। मात्र दो किया एवं विद्यालय की कार्यप्रणाली तथा प्रगति पर पूर्ण सन्तोष छात्रों को लेकर इस विद्यालय का श्रीगणेश हुआ जिसमें एक श्री व्यक्त किया। श्री सेठियाजी ने बच्चों को शुद्ध उच्चारण सिखाने सोहनलालजी गोलछा थे। छात्रों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने पर जोर दिया एवं बालिकाओं की शिक्षा प्रारम्भ करने की भूरिलगी, फलस्वरूप दो शिक्षकों की नियुक्ति की गई। सभा की भूरि प्रशंसा की। ओर से छात्रों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी, यह एक नव निर्वाचित पदाधिकारियों की देख-रेख में सभा का अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। खर्च स्वयं सभा ही वहन करती थी। कार्य निरन्तर विकासोन्मुख था। अपने उद्देश्यों के अनुरूप सभा दस माह तक सभा के उत्साही एवं कर्मठ कार्यकर्ता श्री के समस्त कार्यकर्ता उत्साहपूर्वक सामाजिक एवं लोकपयोगी अजीतमलजी पारख ने विद्यालय का मंत्रीत्व भार वहन कर कार्यों द्वारा सभा को यशस्वी बना रहे थे। विद्यालय की नींव को सुदृढ़ बनाया। शोक सभा विद्यालय के संचालन के साथ-साथ सभा अन्य सामाजिक महासती श्री इन्द्रकुंवरजी म.सा० के आकस्मिक देहावसान कार्यों में भी अनवरत हाथ बटाती थी। प्रकृति प्रकोप से पीड़ितों के समाचार से समाज में शोक के बादल छा गये। सभा ने ० अष्टदशी / 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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