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सुधारक एवं क्रान्तिकारी श्री आनन्दराज जी सुराणा आदि
कार्यकारिणी सदस्य बन्धुओं ने सभा के क्रिया-कलापों तथा प्रवृत्तियों को देखकर
श्री धनपतसिंहजी कोठारी श्री गुलाबचन्दजी आंचलिया प्रसन्नता व्यक्त की एवं भूरि-भूरि प्रशंसा की।
श्री बदनमलजी बांठिया श्री जतनमलजी बच्छावत श्री सुजानमलजी रांका ने अपनी मंत्री प्रतिवेदन में सभा की
श्री उदयचन्दजी डागा श्री नेमीदासजी खुशाल उपलब्धियों की चर्चा करते हुए सदस्यों को सामाजिक पुनर्निमाण,
श्री भीमराजजी दुगड़
श्री देवचन्दजी सेठिया उन्नयन एवं विकास के लिए आह्वान किया तथा सभापति श्री
श्री रूपचन्दजी बांठिया श्री शिवनाथमलजी भूरा मगनमलजी कोठारी, श्री उदयचन्द डागा, श्री अमरचन्द पुगलिया
श्री भैरूदानजी गोलछा जैसे कर्मठ सेवाभावी, उदार महानुभावों के महद् योगदान के
श्री फूसराजजी बच्छावत
श्री पूनमचन्दजी गोलछा प्रति आभार व्यक्त किया।
श्री जवाहरमलजी बांठिया श्री धनराजजी बैद
श्री शिखरचन्दजी कोठारी उस समय जिन प्रेरक शब्दों में यह भावना व्यक्त की उसका उल्लेख यहाँ अत्यावश्यक है- "कई सदात्माओं ने
विश्वस्त मण्डल (प्रन्यासी) सत्प्रयास और सत्प्रेरणा से इस पौधे को लगाया। कई उदार श्री मगनमलजी कोठारी श्री बदनमलजी बांठिया सज्जनों ने इस पौधे के बाल्यकाल में नानाविध उदारपूर्ण श्री भैरूदानजी गोलछा श्री श्रीचन्दजी बोथरा आर्थिक, मानसिक तथा शारीरिक श्रम और सहायता रूपी जल
श्री किशनलालजी कांकरिया और प्राणवायु देकर इसे सींचा और पोसा। अब यह समस्त
सन् १९२९ ई० भारतीय इतिहास का एक ज्वलन्त स्थानकवासी समाज का संगठन और सम्पत्ति है। अब इस
दस्तावेज है। रावी नदी के किनारे लाहौर में पं० जवाहरलाल बाल्यावस्था के बाद की कुमारावस्था में इसका पालन करना
नेहरू की अध्यक्षता में सम्पन्न कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण समस्त स्थानकवासी समाज का कर्तव्य और जिम्मेवारी है।
स्वतंत्रता प्राप्त करने की उद्घोषणा की गई थी। पूर्ण स्वतंत्रता अतएव आप समस्त महानुभावों से विनम्र प्रार्थना है कि
के इस शंखनाद से सम्पूर्ण भारतवर्ष में देश प्रेम, साहस, सेवा, मानसिक, शारीरिक बल एवं आर्थिक प्रत्येक प्रकार की
उत्सर्ग, त्याग एवं बलिदान की ऐसी लहर उत्पन्न हुई जिससे सहायता प्रदान कर इस सभा को उन्नति के पथ पर अग्रसर होने
शक्ति, हिंसा एवं दमन-चक्र के बल पर भारतीयों को दबाने में सहायक बनें।"
वाले अंग्रेजों के दिल दहल उठे एवं वे समझ गये कि अब वे उक्त निवेदन और आह्वान से तत्कालीन स्थिति एवं इस देश पर अधिक समय तक शासन नहीं कर सकेंगे। वातावरण का मूल्यांकन किया जा सकता है। सभा के सदस्यों
विभिन्न सामाजिक संगठन एवं संस्थाएं भी अपने ढंग से ने अथक परिश्रम, उत्साह, साहस तथा तन-मन-धन से सींचकर
देश की आजादी में अपना योगदान कर रही थी। जैन सभा के इस पौधे को अंकुरित किया ताकि भावी पीढ़ी इसे पल्लवित,
सदस्यों में भी अपूर्व उत्साह एवं जोश था। मंत्री श्री सुजानमलजी पुष्पित कर इसके मधुर फलों का रसास्वादन करे।
रांका के आह्वान से प्रभावित होकर सभा के सदस्यों ने सभा की प्रथम वर्ष के समापन पर द्वितीय वर्ष १९२९ ई० के। प्रवृतियों के विस्तार के साथ लोक-कल्याणकारी कार्यों में भी कार्य संचालन हेतु नये पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी सदस्यों रुचि लेना प्रारम्भ किया एवं ऐसे अनेक कार्य सम्पादित किये का निर्वाचन किया गया, जो निम्नलिखित है
जिससे सभा अधिक लोकप्रिय हुई एवं यशस्वी बनी। सभा के पदाधिकारी सन् १९२९-१९३०
नये पदाधिकारियों ने भी अपनी कर्मठता एवं सक्रियता से सभा
की गतिविधियों को आगे बढ़ाया एवं ज्ञान-दर्शन चारित्र्य की सभापति : श्री बहादुरमलजी बांठिया
अभिवृद्धि हेतु सतत प्रयत्नशील रहे। उपसभापति : श्री अमरचन्दजी पुगलिया
धार्मिक क्रियाओं, उत्सवों तथा समारोहों के आयोजन मंत्री : श्री प्रतापसिंह जी ढड्डा
अत्यन्त लगन, परिश्रम एवं अध्यवसाय से किये जाते जिसमें उपमंत्री : श्री अभयरायजी बच्छावत
सभी जैन भाई-बहन बड़े उत्साह से भाग लेते थे। कोषाध्यक्ष : श्री लक्ष्मीनारायणजी बख्शी
विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद एवं वक्तव्य आयोजित हिसाब परीक्षक : श्री शिवनाथमलजी भूरा
कर समाज के युवा वर्ग का मानसिक तथा बौद्धिक विकास पुस्तकालयाध्यक्ष : श्री मुन्नालालजी रांका
करने में वक्तृत्व कला विभाग अपने दायित्व का निर्वाह पूर्ण
जिम्मेवारी स कर रहा था। ० अष्टदशी / 100
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