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________________ श्री किशनलालजी कांकरिया श्री धनराजजी बैद इसी दृष्टि से जैन पर्यों एवं त्योहारों को समारोह पूर्वक श्री पूनमचन्दजी डागा श्री हरखचन्द्रजी भंसाली आयोजित करने का निश्चय किया जिससे सभी परस्पर मिल श्री अजीतमलजी पारख श्री भैरूदानजी जवेरी सकें एवं स्नेह, सहयोग के आदान-प्रदान के साथ सामाजिक श्री मालचन्दजी बरड़िया श्री रतनलालजी तातेड़ दायित्व के निर्वाह की स्वस्थ भावना प्रत्येक भाई बहन में जाग श्री पूनमचन्दजी गोलछा श्री जुहारमलजी बांठिया सके। "जो जाति अपने त्योहारों को सार्वजनिक रूप से नहीं मनाती है, वह मृत प्राय: हो जाती है।" अतः धार्मिक उत्सवों श्री शिवनाथमलजी भूरा को सार्वजनिक रूप से आयोजित करने की जिस स्वस्थ परम्परा सभा के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चार विभागों की स्थापना का सूत्रपात उस समय किया गया, उसका आज तक पालन की गई किया जा रहा है। धार्मिक क्रिया विभाग पुस्तकालय विभाग सभा द्वारा आयोजित उत्सवों में गुजराती, मारवाड़ी आदि सार्वजनिक उत्सव विभाग एवं वक्तृत्व कला विभाग जैन भाई-बहन सम्मिलित होते थे एवं यह संख्या ५०० से ऊपर पहुँच जाती थी। इन उत्सवों में श्री अमरचन्दजी पुगलिया नागपुर, धार्मिक क्रिया विभाग श्री गोपीचन्दजी धारीवाल, श्री लीलाधर प्रेमजी, सोमचन्द भाई, सभा स्थान में प्रात:काल ५ बजे से ९ बजे तक स्थानीय श्री नेमीदास खुशाल आदि के ओजस्वी भाषण होते थे जिसका महानुभाव, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि धार्मिक क्रियाएँ नियमित उपस्थित श्रोताओं पर यथेष्ट प्रभाव पड़ता था एवं समाज में रूप से करते थे। इस विभाग के संयोजक थे श्री बदनमलजी प्रेरणा तथा उत्साह का समुद्र लहराने लगता था। बांठिया। श्री बांठियाजी अत्यन्त धर्म परायण एवं श्रद्धालु वक्तृत्व कला विभाग : महानुभाव थे। उनकी प्रेरणा से ४०-५० महानुभाव नियमित रूप से सभा भवन में धार्मिक क्रियाएँ एवं स्वाध्याय करते थे। परस्पर विचार विमर्श करने तथा वक्तृत्व शक्ति बढ़ाने की दृष्टि से वक्तृत्व विभाग की स्थापना की गई। इसमें धार्मिक नियमित रूप से मिलने-जुलने, धार्मिक विचारों का आदान एवं राष्ट्रीय विषयों पर भाषण एवं वाद-विवाद आयोजित किये प्रदान करने तथा परस्पर स्वाध्याय रत रहने का प्रभाव समाज जाते थे। वक्तृत्व कला के विकास के साथ विचारों का इससे के सभी अंगों पर पड़ा तथा समाज में धर्म के प्रति श्रद्धा और दृढ़ परिमार्जन एवं ज्ञान वृद्धि होती थी। उसमें कभी-कभी कम हुई। सन् १९२८ में निम्न धार्मिक क्रियाकलाप सम्पन्न हुए। उपस्थिति खटकती थी किन्तु युवा पीढ़ी के विकास एवं ज्ञान सामायिक प्रतिक्रमण पौषध अष्ट प्रहरी चो प्रहरी वृद्धि के लिए इसका आयोजन आवश्यक था। कायकर्ताओं में १३५९५ १३१ १९१ १०१ उत्साह एवं प्रेरणा संवर्द्धन के लिए भी इस की अनिवार्य पुस्तकालय विभाग : आवश्यकता थी। इस विभाग का दायित्व श्री अमरचन्दजी समाज में ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा के प्रचार हेतु पुस्तकालय पुगलिया एवं श्री नेमदास भाई खुशाल ने बड़ी योग्यता एवं स्थापना की तीव्र आवश्यकता अनुभव की गई क्योंकि शहर के कुशलता पूर्वक संभाला तथा समाज में उत्साह एवं प्रेरणा का उस केन्द्र में कोई सार्वजनिक पुस्तकालय नहीं था जहाँ ____ संचार किया। सर्वसाधारण विशेषकर जैन भाई-बहिन जाकर देश-विदेश की कलकत्ता एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र होने के साथ खबरें जान सकें अत: एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना अन्य अनेक दृष्टियों से देश के मानचित्र में अति महत्वपूर्ण स्थान की गई जिसमें पुस्तकों के अतिरिक्त १६ समाचार पत्र नियमित का अधिकारी रहा है। क्रान्तिकारी कार्यों, समाज सुधार आते थे। इनमें दो दैनिक, पाँच साप्ताहिक तथा नौ मासिक पत्र आन्दोलनों तथा धार्मिक उत्क्रान्तियों की ऐसी मशाल यहाँ थे। इस पुस्तकालय में जैन-अजैन आदि भाई नियमित अध्ययन प्रज्वलित हुई है जिसने समग्र देश को मार्गदर्शन दिया है एवं किया करते थे। बाह्य आडम्बरों, कुपरम्पराओं तथा कुरीतियों के उन्मूलन के धार्मिक उत्सव विभाग : लिए प्रेरित किया है। व्यक्ति समाज का अंग है। समाज के सहयोग से ही वह बंकिम, रवि, शरत, सुभाष एवं क्रान्तिकारी शहीदों की अपना विकास तथा उन्नयन करता है अत: समाज के प्रति इस नगरी में बाहर से आने वाले श्री मोतीलालजी मूथा आनरेरी उसका उत्तरदायित्व है एवं उसे उसका निर्वाह करना चाहिये। मजिस्ट्रेट सतारा, भोपाल निवासी श्री फूलचन्दजी कोठारी, कर्मठ सेवा भावी श्री रतनलाल मोहनलाल अहमदाबाद, समाज 0 अष्टदशी/90 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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