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________________ प्रस्तुति : भूपराज जैन १ पांचागली स्थित यह भवन समाज के शुभकार्यों हेतु समर्पित करते हुए उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता एवं गौरव बोध हो रहा है। श्री डागाजी के इस आदर्श, सहयोग और स्नेह का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। फलत: दिनांक १९ सितम्बर १९२८ ई० को श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा की स्थापना की गई एवं श्री मगनमलजी कोठारी को सर्व सम्मति से अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। सभा का उद्देश्य घोषित किया गया- जैन समाज का सुसंगठन करना तथा निष्पक्ष एवं द्वेषरहित बुद्धि से जैन धर्म के सिद्धांतों ज्ञान-दर्शन चारित्र्य का प्रचार करते हुए समाज एवं राष्ट्र की सतत सेवा करना। इस सभा की संस्थापना में जिन महानुभवों का योगदान रहा है उसकी चर्चा करते हुए सभा के प्रथम मंत्री श्री सुजानमलजी रांका ने अपने मंत्री प्रतिवेदन में उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने अपने वक्तत्व में कहा- “सर्व प्रथम में उन उत्साही बन्धुओं श्रीमान् फूसराजजी बच्छावत, नेमीचन्दजी बच्छावत, नथमलजी श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा की दस्सानी, रतनलालजी तातेड़, सौभाग्यमलजी डागा, अजीतमलजी पारख, लक्ष्मीनारायणजी बख्शी, नेमीचन्दजी रांका, गुलाबचन्दजी इतिहास कथा आंचलिया, धनराजजी बैद, हरखचन्दजी भंसाली, नेमचन्दजी अंग्रेजों की गुलामी एवं शोषण से मुक्त होने के लिए सम्पूर्ण भंसाली, शिवनाथमलजी भूरा, ईश्वरदासजी छल्लाणी, चांदरतनजी भारतवर्ष महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक जुट होकर संघर्ष रत था। मिन्नी, मालचन्दजी बरड़िया, जतनमलजी कोठारी, मगनमलजी अपने सर पर कफन बांधे आजादी के दीवानों की टोलियाँ संगीनों। कोठारी, अभयराजजी बच्छावत, पानमलजी मिन्नी, पूनमचन्दजी एवं गोलियों की परवाह किये बिना स्वातन्त्र्य यज्ञ में अपनी गोलछा, तथा परलोकगत श्रीमान् अमरचन्दजी बोथरा को आहुतियाँ दे रही थी- “सर बाँधे कफनवा हो, शहीदों की टोली धन्यवाद देना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ कि इन महानुभावों निकली।" के सत्प्रयास और प्रेरणा से इस सभा की स्थापना हुई।" भारत का हर नागरिक बिना किसी भेद भाव, जाति-पांति सन् १९२८ ई० में सभा की स्थापना के समय जो और छुआछूत के अपने उत्सर्ग के लिए तत्पर था। सेवा, साधना । पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी सदस्य निर्वाचित किये गये, वे और सहयोग का यह अभूतपूर्व वातावरण चतुर्दिक व्याप्त था। निम्नलिखित हैंऐसे ही क्रान्तिकारी वातावरण में समाज एवं राष्ट्र की सेवा पदाधिकारी की पवित्र भावना से प्रेरित होकर स्थानकवासी समाज के सभापति : श्री मगनमलजी कोठारी कतिपय उत्साही व्यक्तियों के मन में अपना संगठन बनाने का उपसभापति : श्री नेमीचन्दजी रांका शुभ विचार उत्पन्न हुआ एवं उस अभाव को पूर्ण करने का दृढ़ मन्त्री : श्री सुजानमलजी रांका संकल्प किया जो कई दिनों से अनुभव किया जा रहा था। उपमंत्री : श्री अभयराजजी बच्छावत दिनांक २ सितम्बर सन् १९२८ ई० को श्री मंगलचन्दजी कोषाध्यक्ष : श्री मगनमलजी बच्छावत उदयचन्दजी डागा की गद्दी में स्थानीय स्थानकवासी सज्जनों की हिसाब परीक्षक : श्री अजीतमलजी पारख एक बैठक श्री उदयचन्दजी डागा, श्री नथमलजी दस्साणी एवं पुस्तकालयाध्यक्ष : श्री शिखरचन्दजी कोठारी अन्य उत्साही नवयुवकों की प्रेरणा से आयोजित की गई जिसमें अपना संगठन बनाने पर विचार किया किन्तु कलकत्ता जैसे कार्यकारिणी सदस्य । नगर में स्थान की समस्या बहुत विकट थी। फिर भी जहाँ चाह श्री अमरचन्दजी बोथरा श्री दौलतरूपचन्दजी होती है, वहाँ राह निकलती है। श्री उदयचन्दजी डागा ने तत्काल भण्डारी इस विकट समस्या का समाधान करते हुए कहा कि उनका श्री गुलाबचन्दजी आंचलिया श्री सौभाग्यमलजी डागा ० अष्टदशी/80 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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