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जैन साहित्य में कोश-परम्परा ४३३
एवं पत्रिकाओं से ऐसे विषयों अथवा सन्दर्भों को विषयानुसार एकत्रित किया गया है, जिनमें जैन धर्म एवं जैन संस्कृति से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सामग्री प्रकाशित हुई है।
इस बृहदाकार ग्रन्थ में देशी-विदेशी विद्वानों द्वारा लिखित तीन सौ पुस्तकों एवं निबन्धों का उपयोग किया गया है । यह ग्रन्थ निर्विवाद रूप से प्राचीन भारतीय संस्कृति और मुख्य रूप से जैन संस्कृति के ज्ञान के लिए अत्यन्त उपयोगी सन्दर्भ ग्रन्थ है ।
अन्य कोश - इन कोशों के अतिरिक्त भी निम्न मुख्य कोशों का निर्माण हुआ है
श्री वल्लभी छगनलाल कृत — जैन कक्को, एन० आर० कावडिया कृत English Prakrit Dictionary, डा० भागचन्द्र जैन कृत विद्वद्विनोदनी आदि उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से ज्ञात हुआ है कि जैन वाङ्मय में कोश परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पहले पहल यह पांडुलिपियों में एवं अविकसित रूप में हमें उपलब्ध होती है । बाद में परिवर्तित एवं परिमार्जित रूप में प्राप्त हुई है। कई पांडुलिपियों का संकलन एवं सम्पादन करके बृहद् कोश तैयार कर लिये गये हैं । कुछ का कार्य अभी चल रहा है । आशा है, भविष्य में भी यह परम्परा अबाध गति से चलती रहेगी और शोधार्थियों को अत्यधिक लाभ प्रदान करेगी। यह कोश परम्परा जैन धर्म एवं जैन वाङ् मय को अधिक से अधिक प्रकाश में लाकर साधारण जन-मानस में भी व्याप्त हो जायेगी ।
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