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________________ ४३२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन अन्य : पंचम खण्ड -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-................ शब्दों तथा २१०० विषयों का विषद वर्णन किया है। सम्पूर्ण सामग्री संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की लगभग १०० पांडुलिपियों से उद्धृत है । यथा-स्थान तथा रेखाचित्र एवं सारणियां भी हैं। यह कोश भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित किया गया है। मूल उद्धरणों से उद्धृत होने के कारण इस कोश की उपयोगिता और भी बढ़ गयी है। इस कोश की रचना में अधिकांश दिगम्बर ग्रन्थों का सहारा लिया गया है। इसके चार भाग निम्न प्रकार हैं क० भाग वर्ण प्रकाशन काल अ-औ ५०४ ६३४ १. प्रथम भाग २. द्वितीय भाग ३. तृतीय भाग ४. चतुर्थ भाग १९७१ १९७१ १९७२ १६७३ प-व स-ह ६३८ इस प्रकार यह महाकोश वर्णी जी की सतत साधना का प्रमाण एवं शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। सम्पादक-बालचन्द्र जी सिद्धान्त शास्त्री : जैन लक्षणावली-इस कोश के सम्पादक श्री बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री हैं। इनका जन्म संवत् १९६२ में सोरई ग्राम (झांसी) में हुआ। आपकी शिक्षा वाराणसी में पूर्ण हुई। सन् १९४० से आप निरन्तर साहित्य-साधना में मग्न हैं। आपने षट्खण्डागम के दस भागों का भी सम्पादन किया। इसके अतिरिक्त जीवराज जैन ग्रन्थमाला से कई पुस्तकों का प्रणयन एवं सम्पादन, प्रकाशन किया कराया। लक्षणावली भी एक जैन पारिभाषिक शब्दकोश है। इसमें ४०० श्वेताम्बर दिगम्बर ग्रन्थों के पारिभाषिक शब्दों का संकलन है। जैन दर्शन के सन्दर्भ में एक ऐसे पारिभाषिक शब्दकोष की आवश्यकता थी जो एक ही स्थान पर वर्णानुक्रम से दार्शनिक परिभाषाओं को प्रस्तुत कर सके । इस कमी को जैन लक्षणावली ने पूर्ण किया। इसमें लगभग १०० पृष्ठों की प्रस्तावना इस कोश ग्रन्थ की उपयोगिता को बढ़ाती है। इसके दो भाग क्रमश:-१९७२ और १९७५ में प्रकाशित हुए हैं। इसकी पृष्ठ संख्या ७५० है। तीसरा भाग मुद्रणाधीन है। इस प्रकार जैन कोश परम्परा में इस कोश ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। Editor : Mohan Lal Mehta and K. R. Chandra : A Dictionary of Prakrit Proper Names-इस कोश का संयुक्त संकलन एवं सम्पादन डा० मोहनलाल मेहता एवं के० आर० चन्द्र ने किया । १९७२ में अहमदाबाद से इस कोश को दो भागों में प्रकाशित किया गया। इन दोनों विद्वानों के अनेक शोध ग्रन्थ एवं निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं । डा० मेहता ने Jaina Psychology, Jaina Culture, Philosophy आदि ग्रन्थों का प्रणयन किया। डा. चन्द्र ने कई ग्रन्थों के हिन्दी एवं अंग्रेजी के अनुवाद किये। जैन साहित्य, विशेषतः आगमों में उल्लिखित व्यक्तिगत नामों के सन्दर्भ में यह कोश एक अच्छी जानकारी प्रस्तुत करता है ।। Dr. A.N. Upadhyaya : Jaina Bibliography': इस ग्रन्थ का सम्पादन डा० ए० एन० उपाध्याय कर रहे हैं । इसके लगभग २००० पृष्ठ मुद्रित हो चुके हैं। शेष भाग का कार्य डा० भागचन्द जैन कर रहे हैं। आप नागपुर के निवासी हैं। आपकी जैन वाङ्मय में गहरी पैठ है। इस Bibliography में देश-विदेश में प्रकाशित जैन ग्रन्थों . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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