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________________ जैन ज्योतिष: प्रगति और परम्परा ४०५ . -. -. - . ............................................... ..... गुणाकरसूरि (१५वीं शती)-इनका जातक सम्बन्धी होरामकरन्द ग्रन्थ मिलता है । इसमें ३१ अध्याय हैं। रत्नशेखरसूरि (१५वीं शती)- इन्होंने प्राकृत में दिनसुदि (दिनशुद्धि) नामक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा है। मेघरत्न (१४६३ ई०) यह वडगच्छीय विनयसुन्दरसूरि के शिष्य थे। इन्होंने सं० १५५० के लगभग उस्तरलावयंत्र नामक ज्योतिषग्रन्थ लिखा है। इस पर संस्कृत में स्वोपज्ञ टीका है। मुनि भक्तिलाभ (१५१४ ई०)-यह खरतरगच्छीय मुनिरत्नचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने वाराहमिहिर के 'लघुजातक' पर सं० १५७१ (१५१४ ई.) में विक्रमपुर (बीकानेर) में टीका लिखी है। साधुराज (१६वीं शती)—यह खरतरगच्छीय साधु थे। इन्होंने ज्योतिषचतुविशिका-टीका लिखी है। मुनि मतिसागर (१६वीं शती)-इन्होंने सं० १६०२ (१५४५ ई०) में वराहमिहिर 'लघुजातक' पर भाषा में 'वचनिका' लिखी है। इन्होंने इस पर बार्तिक भी लिखा है। हीरकलश (१५६४ ई०-१६०० ई०) यह खतरगच्छीय हर्षप्रभ के शिष्य थे। मारवाड़ क्षेत्र (जोधपुरबीकानेर) के निवासी थे, ज्योतिष पर इनके दो ग्रन्थ हैं (१) जोइससार (ज्योतिषसार)-यह प्राकृत में है। रचना सं० १६२१ (१५६४ ई०) नागौर । (२) हीरकलश जोइसहीर-रचना सं० १६५७ (१६०० ई०) राजस्थानी में पद्यों में लिखा गया है। कृपाविजय (१५७८ ई०) यह तपागच्छीय मुनि थे। इन्होंने शक सं० १५०० में मोढ़ दिनकर कृत 'चन्द्रार्की पर टीका लिखी है। विनयकुशल (१५६५ ई०)-यह आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६५२ (१५९५ ई०) में प्राकृत में खगोल-ज्योतिष सम्बन्धी मंडलप्रकरण ग्रन्थ लिखा है। इस पर स्वयं लेखक ने सं० १६५२ में स्वोपज्ञटीका लिखी है। मुनिसुन्दर (१५९८ ई०) यह रुद्रपल्लीगच्छीय जिनसुन्दरसूरि के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६५५ (१५९८ ई.) ज्योतिष गणित पर करणराज या करणराजगणित लिखा है। इसमें १० अध्याय हैं। __हर्षकीतिसूरि (१६०३ ई०)-यह नागोरी तपगच्छीय आचार्य चन्द्रकीर्तिसूरि के शिष्य थे। राजस्थान के निवासी थे। व्याकरण, ज्योतिष, वैद्यक, छन्द और कोष के अच्छे विद्वान् थे। ज्योतिष पर इनके तीन ग्रन्थ हैं (१) ज्योतिस्सारसंग्रह (ज्योतिषसारोद्धार)-रचना सं० १६६०=१६०३ ई. (२) जन्मपत्रीपद्धति (३) विवाहपडल-बालावबोध । जयरत्नगणि (१६०५ ई०)-यह पूर्णिमाक्ष के आचार्य भावरत्न के शिष्य थे। इन्होंने त्र्यंबावती (खंभात गुजरात) में सं० १६६२ (१६०५ ई०) में 'वरपराजय' नामक वैद्यक ग्रन्थ तथा ज्योतिष पर दोषरत्नावली य ज्ञानरत्नावली ग्रन्थ की रचना की थी। श्रीसारोपाध्याय (१७वीं शती)-इनका ज्योतिष पर जन्मपत्रीविचार नामक ग्रन्थ मिलता है। समयसुन्दर (१६२८ ई०)-उपाध्याय समय सुन्दर ने लूणकरणसर (बीकानेर) में अपने प्रशिष्य वाचक जयकीर्ति के सहयोग से सं० १६८५ (१६२८ ई०) में ज्योतिष पर दीक्षाप्रतिष्ठाशुद्धि ग्रन्थ लिखा है। इसमें १२ अध्याय हैं। कीर्तिवर्धन या केशव (१७वीं शती)-यह आद्यपक्षीय मुनि दयारत्न के शिष्य थे। इन्होंने मेड़ता में जन्मप्रकाशिका ज्योतिष की रचना की है। लाभोदय (१७वीं शती)-यह उपाध्याय भुवनकीर्ति के शिष्य थे। इनका ज्योतिष पर बलिरामानन्दसार संग्रह ग्रन्थ है । यह संग्रहकृति है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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