________________
४०६
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
0. ... ............. ..................................................
सुमतिहर्ष (१६१६ ई०)-यह अंचलगच्छीय हर्षरत्नमुनि के शिष्य थे। ज्योतिष पर इनके ५ (पाँच) ग्रन्थ हैं
(१) जातकपद्धति-टोका-श्रीपतिकृत 'जातक पद्धति' पर टीका । रचना सं० १६७३ । (२) ताजिकसार-टीका-हरिभट्ट (हरिभद्र) कृत 'ताजिकसार' पर टीका । रचना सं० १६७७ । (३) करणकुतूहल-टीका-भास्कराचार्यकृत करणकुतूहल' पर टीका। रचना सं० १६६७ । (४) होरामकरन्द-टीका-रचना सं० १६७० । (५) बृहत्पर्वमाला-मौलिक ग्रन्थ है।
धनराज (१६३५ ई०)-यह अंचलगच्छीय मुनि भोजराज के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६६२ (१६३५ ई.) में पद्मावतीपतन में महादेवकृत 'महादेव-सारणी' पर दीपिका-टीका लिखी है।
भावरत्न या भावप्रभसूरि (१६५५ ई०)- यह पूर्णिमागच्छ के मुनि थे। इन्होंने व्यंबावती में 'ज्योतिर्विदाभरण' पर स० १७१२ (१६५५ ई०) में 'सुबोधिनी-वृत्ति, नामक टीका लिखी है।
महिमोदय (१६६४ ई०) यह खरतरगच्छीय मतिहंस के शिष्य थे। ये गणित एवं फलित ज्योतिष के प्रकाण्ड पण्डित थे। ज्योतिष पर इनके निम्न ग्रन्थ मिलते हैं
(१) ज्योतिषरत्नाकर (रचना सं० १७२२=१६६५ ई.)-यह फलित ज्योतिष का ग्रन्थ है। (२) जन्मपत्रीपद्धति (रचना सं० १७२१=१६६४ ई०)। (३) गणित साठ सौ (रचना सं० १७३३) गणित विषयक ग्रन्थ । (४) षट्पंचाशिका-टीका-वराहमिहिर के पुत्र पृथुयश कृत 'षट्पंचाशिका' पर टीका। (५) खेटसिद्धि (६) पंचागानयनविधि (रचना सं० १७२२) (७) प्रेमज्योतिष
यशोविजयगणि (१६७३ ई०)-नयनविजयगणि के शिष्य उपाध्याय यशोविजयगणि ने सं० १७३० (१६७३ ई०) में फलाफलविषयक-प्रश्नपत्र नामक ज्योतिष पर छोटा-सा ग्रन्थ लिखा था। इसमें चार 'चक्र' हैं और प्रत्येक चक्र में सात 'कोष्ठक' हैं।
मेघविजयगणि (१६८० ई०)-ये तपागच्छीय साधु थे। मारवाड़ क्षेत्र (राजस्थान) के निवासी थे। 'विज्ञप्ति' की रचना सं० १७३७ (१६८० ई०) में सादड़ी में की थी। ज्योतिष पर इनके निम्न ग्रन्थ मिलते हैं
(१) वर्षप्रबोध-इसमें १५ अधिकार और ३५ प्रकरण हैं। इसे मेघमहोदय भी कहते हैं। (रचना सं० १७३२ से पूर्व)।
(२) उदयदीपिका (रचना सं० १७५२)। (३) प्रश्न सुन्दरी (रचना सं० १७५५) । (४) हस्तसंजीवन (रचना सं० १७३५)। (५) रमलशास्त्र (रचना सं० १७३५) । (६) प्रश्नसुन्दरी।
(७) वीशायंत्रविधि । उभयकुशल (१६८० ई.)-इनका अन्य नाम 'अभयकुशल' है । यह खरतरगच्छीय मुनि पुण्यहर्ष के शिष्य थे। मुहूर्त और जातक के अच्छे विद्वान् थे। ज्योतिष पर इनके दो ग्रन्थ हैं
(१) विवाहपटल-इसमें नक्षत्र, नाडीवेधयंत्र, राशिस्वामी, ग्रहशुद्धि, विवाहनक्षत्र, चन्द्र-सूर्य-स्पष्टीकरण, एकार्गल, गोधूलिका फल आदि का वर्णन है।
(२) चमत्कारचिंतामणि-टीका-राजर्षिभट्ट कृत 'चमत्कारचिंतामणि' पर टीका। रचना सं० १७३७ ।
लाभवर्द्धन (लालचंद) (सं० १६३६ ई.)-यह खरतरगच्छीय जैनयति थे और शांतिहर्ष के शिष्य थे। इनका मूल नाम लालचंद था। इन्होंने सं० १७३६ (१६८२ ई०) में बीकानेर में लीलावती गणित-भाषा, सं० १७३६ (१६७६ ई०) में गूढ़ा में अंकप्रस्तार नामक गणित सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे। सं० १७५३ में स्वरोदयभाषा और सं० १७७० में शकुनशास्त्र पर शकुनदीपिका चौपई लिखी । इनके भाषा काव्य सम्बन्धी अन्य ग्रन्थ भी प्राप्त हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org